बेंगलुरु, 17 जुलाई (भाषा) कर्नाटक सरकार ने आईपीएस अधिकारी विकास कुमार विकास के निलंबन को उच्च न्यायालय में उचित ठहराते हुए बृहस्पतिवार को दलील दी कि पुलिस अधिकारी और उनके सहकर्मियों ने आईपीएल जीत के जश्न की तैयारियों के दौरान ‘‘आरसीबी के नौकरों’’ की तरह काम किया।
चार जून को इस जश्न के दौरान मची भगदड़ में 11 लोगों की जान चली गई थी और 33 अन्य घायल हुए थे।
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी एस राजगोपाल ने अदालत को बताया कि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का फाइनल मैच खेले जाने से पहले ही रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) ने अपनी जीत के जश्न के संबंध में पुलिस अधिकारियों को एक प्रस्ताव सौंपा था।
इतनी बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति वाले आयोजन के लिए अनुमति लेने के बजाय, अधिकारियों ने अपने वरिष्ठों से परामर्श किए बिना या आवश्यक अनुमति की पुष्टि किए बिना ही सुरक्षा इंतजाम शुरू कर दिए।
राजगोपाल ने कहा, ‘‘आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी की ओर से सबसे स्पष्ट प्रतिक्रिया यह होनी चाहिए थी: आपने अनुमति नहीं ली है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘तब, आरसीबी को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ता और कानून अपना काम करता।’’
उन्होंने कहा कि जिम्मेदारी से काम न करने की इस विफलता के कारण संचालन संबंधी खामियां और कर्तव्य की गंभीर अवहेलना हुई।
यह दलील देते हुए कि 12 घंटे से कम समय में भारी भीड़ के लिए व्यवस्था करना अव्यावहारिक था, राजगोपाल ने सवाल किया कि निलंबित अधिकारी ने उस दौरान क्या कदम उठाए थे।
उन्होंने कर्नाटक राज्य पुलिस अधिनियम की धारा 35 का हवाला दिया, जो पुलिस को आवश्यक कार्रवाई करने का अधिकार देती है तथा अधिकारियों द्वारा उस अधिकार का उपयोग न करने की आलोचना की।
राजगोपाल ने कहा कि वरिष्ठ स्तर पर कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया था।
न्यायमूर्ति एस जी पंडित और न्यायमूर्ति टी एम नदाफ की खंडपीठ ने जब पूछा कि (एम चिन्नास्वामी) स्टेडियम के अंदर सुरक्षा की निगरानी कौन कर रहा था, तो राजगोपाल ने जवाब दिया कि यह राज्य पुलिस के कर्मी थे तथा उन्होंने माना कि सुरक्षा व्यवस्था स्पष्ट रूप से अपर्याप्त थी।
उन्होंने निलंबन रद्द करने के केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के तर्क, खासकर पुलिस की सीमाओं के प्रति सहानुभूति रखने वाली उसकी टिप्पणियों पर भी सवाल उठाए।
कैट के आदेश को पढ़ते हुए, राजगोपाल ने अधिकरण की इस टिप्पणी की आलोचना की कि ‘‘पुलिसकर्मी भी इंसान हैं, भगवान या जादूगर नहीं,’’ और इसे एक अनुचित विमर्श बताया जो नानी दादी की कहानियों के लिए ज्यादा उपयुक्त है।
मामले की पृष्ठभूमि —
राज्य सरकार की ओर से यह दलील कैट के एक जुलाई के आदेश को चुनौती देते हुए दी गई, जिसमें विकास कुमार विकास का निलंबन रद्द कर दिया गया था और उन्हें पूर्ण वेतन और भत्तों के साथ तत्काल बहाल करने का निर्देश दिया गया था।
अधिकरण ने निष्कर्ष निकाला था कि लापरवाही का कोई ठोस सबूत नहीं था और यह भी कहा था कि पुलिस के पास आरसीबी द्वारा जश्न मनाये जाने की सोशल मीडिया पर अचानक घोषणा के बाद तैयारी करने के लिए बहुत कम समय था।
इसने कहा कि अनुमानित तीन से पांच लाख लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उपलब्ध समय और तैयारी से कहीं अधिक समय और तैयारी की जरूरत थी।
यह मानते हुए कि आरसीबी की घोषणा के कारण भीड़ एकत्र हुई थी, अधिकरण ने कहा कि पुलिस से चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा सकती।
इसके बाद, 2 जुलाई को महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि विकास ने अपनी ड्यूटी फिर से शुरू कर दी है।
हालांकि, अदालत ने कैट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और मामले को अगले दिन विस्तृत सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
तीन जुलाई को, एक खंडपीठ ने मौखिक रूप से सवाल उठाया कि क्या निलंबन आवश्यक था और सुझाव दिया कि विभाग बदलना पर्याप्त रहता।
अटॉर्नी जनरल ने जोर देकर कहा कि निलंबन का रिकॉर्ड से पर्याप्त समर्थन मिलता है और उन्होंने कैट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की।
विकास की ओर से वरिष्ठ वकील ध्यान चिन्नप्पा ने अदालत को आश्वासन दिया कि कोई अवमानना कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी। पीठ ने मामले के अंतिम समाधान तक जल्दबाजी में कोई कार्रवाई न करने की सलाह दी।
विकास उन पांच निलंबित अधिकारियों में से एकमात्र हैं, जिन्होंने अधिकरण के समक्ष इस फैसले को चुनौती दी। अन्य निलंबित अधिकारियों में बेंगलुरु पुलिस आयुक्त बी दयानंद, पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) शेखर एच टेक्कन्नावर, सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) सी बालकृष्ण और निरीक्षक ए के गिरीश शामिल हैं।
भाषा सुभाष नरेश
नरेश