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Sunday, July 20, 2025

रसोइया की आपबीती से 11 साल बाद 300 आदिवासियों की गांव वापसी हुई

Newsरसोइया की आपबीती से 11 साल बाद 300 आदिवासियों की गांव वापसी हुई

अहमदाबाद, 19 जुलाई (भाषा) भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की एक अधिकारी द्वारा अनौपचारिक बातचीत के दौरान अपनी रसोइया से उसकी ससुराल के बारे में पूछे जाने के बाद करीब 11 साल से अपना गांव छोड़ दूसरी जगह रहने को मजबूर 300 आदिवासियों की घर वापसी संभव हुई।

आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, 29 परिवारों के कोडवा जनजाति के सदस्य बृहस्पतिवार को बनासकांठा जिले के आदिवासी बहुल दांता तालुका स्थित अपने पैतृक गांव मोटा पिपोदरा लौटे। राज्य के गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने स्वयं गांव में उनका स्वागत किया।

विभिन्न स्थानों पर रह रहे विस्थापित आदिवासियों की घर वापसी तब संभव हुई जब दांता संभाग की सहायक पुलिस अधीक्षक सुमन नाला को अपनी रसोइया अल्का से उनकी दुर्दशा के बारे में पता चला।

जब नाला ने अल्का से उसकी ससुराल के बारे में पूछा तो आदिवासी महिला ने आईपीएस अधिकारी को बताया कि वह कभी ससुराल के गांव नहीं गई, क्योंकि उसकी जनजाति के सदस्यों को 2014 में एक व्यक्ति की हत्या और उसके बाद हमले की वजह से मोटा पिपोदरा छोड़ना पड़ा था, जिसे आदिवासी ‘चढोतरा’ कहते हैं।

अल्का ने पुलिस अधिकारी को बताया कि उनके एक आदिवासी समूह पर दूसरे आदिवासी समूह के एक व्यक्ति की हत्या का आरोप है।

मोटा पिपोदरा बनासकांठा ज़िला मुख्यालय पालनपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है।

नाला के अनुसार, ‘चढोतरा’ आदिवासियों के बीच प्रचलित एक अनौपचारिक न्याय प्रणाली है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस व्यवस्था के तहत, गांव के बुजुर्ग या पंच दो पक्षों के बीच विवाद को सुलझाने की कोशिश करते हैं। अगर वे किसी सौहार्दपूर्ण समाधान पर नहीं पहुंच पाते, तो मामला हिंसक रूप ले लेता है – जिसे चढोतरा कहते हैं। इसके परिणामस्वरूप एक समूह दूसरे पर हमला कर देता है और उनकी संपत्ति को भी नष्ट कर देता है।’’

पुलिस अधिकारी ने बताया कि इसकी वजह से 300 आदिवासियों ने बाद में बनासकांठा के अन्य हिस्सों में शरण ली, जबकि कुछ अन्य मजदूरी करने सूरत चले गए।

विज्ञप्ति में कहा गया कि निर्वासन में रह रहे इन आदिवासी परिवारों के बारे में जानकारी मिलने के बाद बॉर्डर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक चिराग कोराडिया और जिला पुलिस अधीक्षक अक्षयराज मकवाना ने उन्हें उनके मूल स्थान पर फिर से पुनर्वासित करने के प्रयास शुरू किए।

विज्ञप्ति के मुताबिक, पुलिस अधिकारियों ने दोनों जनजातियों के सदस्यों और बुजुर्गों से बातचीत की और उन्हें अतीत की कटुता को समाप्त करने के लिए राजी किया। खबरों के अनुसार, यह पहल सफल रही और 11 साल बाद इन 300 आदिवासियों की अपने गांव में वापसी सुनिश्चित हुई।

संघवी ने बृहस्पतिवार को आयोजित इस कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा कि राज्य सरकार ने उनके पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाए हैं।

संघवी ने कहा कि चूंकि इन परिवारों के पास गांव में 8.5 हेक्टेयर (लगभग 21 एकड़) जमीन थी, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने राजस्व कर्मचारियों की मदद से जमीन की पहचान कराई और उसे खेती के लिए उपयुक्त बनाने के बाद उन्हें सौंप दिया।

उन्होंने बताया कि गैर सरकारी संगठन की मदद से गांव में मुफ्त बिजली, पानी की आपूर्ति और रसोई गैस कनेक्शन वाले दो घर बनाए गए हैं, शेष परिवारों के लिए भी इसी तरह के आवास जल्द ही बनाए जाएंगे।

भाषा धीरज नेत्रपाल

नेत्रपाल

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