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Monday, July 21, 2025

राज्य का दर्जा हमारा अधिकार है, ‘हाइब्रिड’ प्रणाली स्वीकार्य नहीं: उमर अब्दुल्ला

Newsराज्य का दर्जा हमारा अधिकार है, ‘हाइब्रिड’ प्रणाली स्वीकार्य नहीं: उमर अब्दुल्ला

(सुमीर कौल)

श्रीनगर, 20 जुलाई (भाषा) मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बिना किसी देरी के बहाल करने की जोरदार अपील की और संकेत दिया कि इस संबंध में सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस कानूनी विकल्पों सहित सभी रास्ते तलाश रही है।

केंद्र शासित प्रदेश में नेशनल कॉन्फ्रेंस के सत्ता में आने के लगभग दस महीने बाद अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य का दर्जा लोगों का मौलिक अधिकार है।

उन्होंने कहा, “केंद्र ने संसद और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इसका वादा किया था।”

अब्दुल्ला ने सरकार की “हाइब्रिड प्रणाली” की बात को खारिज कर दिया जिसके तहत राज्य का दर्जा बहाल होने के बाद भी कानून-व्यवस्था केंद्र के पास रहेगी और कहा कि ऐसी बातें उन लोगों की ओर से आ रही हैं जिन्होंने पिछले साल के विधानसभा चुनाव होने पर संदेह जताया था।

विधानसभा चुनावों में 64 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने भाग लिया था।

अब्दुल्ला ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिये एक साक्षात्कार में कहा, “बहरहाल, यह स्पष्ट रूप से आदर्श स्थिति नहीं है। बार-बार किए गए वादों, संसद में जतायी गई प्रतिबद्धताओं और उच्चतम न्यायालय में दिये गये आश्वासनों के बावजूद, यह मामला अभी तक सुलझ नहीं पाया है। और हम ऐसी कोई चीज नहीं मांग रहे जो हमारा हक नहीं है। राज्य का दर्जा हमारा अधिकार है, इसका वादा लोगों से किया गया था।”

उन्होंने कहा, “तो, हम कोई नई या असामान्य मांग नहीं कर रहे हैं। यह कोई ऐसी बात नहीं है जो सार्वजनिक चर्चा का हिस्सा न रही हो। लेकिन, केंद्र सरकार में जिनके पास सत्ता है, उन्हें ही बेहतर पता है कि अब तक ऐसा क्यों नहीं हुआ। फिर भी, हम लगातार दबाव बना रहे हैं।”

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ “सौहार्दपूर्ण” संबंध रखने वाले अब्दुल्ला ने इस मामले पर अपनी निजी चर्चाओं का विवरण देने से परहेज किया तथा केवल इतना कहा कि राज्य के दर्जे का मुद्दा “कई बार, कई स्तरों पर” उठाया गया है।

उन्होंने कहा, “मेरे और प्रधानमंत्री, गृहमंत्री आदि के बीच जो व्यक्तिगत बातचीत हुई है, वे ऐसी बातें नहीं हैं जिन्हें सार्वजनिक किया जाए। लेकिन आप निश्चिंत रहें, राज्य का दर्जा और जम्मू-कश्मीर से जुड़े अन्य मुद्दे कई बार, कई स्तरों पर उठाए गए हैं। और हम लगातार इन्हें उठाते रहेंगे।”

उन्होंने केन्द्र सरकार के साथ बातचीत करने के अपने व्यावहारिक दृष्टिकोण का बचाव किया तथा इस बात पर जोर दिया कि सहयोग के लिए जनता की सराहना उन्हें आवश्यकता पड़ने पर बोलने से नहीं रोकती।

अब्दुल्ला ने कहा, “जहां तक अच्छे रिश्तों का आनंद लेने की बात है, मुझे नहीं लगता कि इस पर इतनी आलोचना होनी चाहिए। आखिरकार, राजनीतिक दलों के बीच राजनीतिक समीकरण तो होते ही हैं।”

उन्होंने कहा, “नेशनल कॉन्फ्रेंस का भाजपा की नीतियों को लेकर जो मतभेद है, या इसके उलट जो भी स्थिति है, वे अपनी जगह बने रहते हैं। लेकिन इससे इतर, सरकार से सरकार के बीच जो संबंध होते हैं, वो एक अलग विषय होते हैं।”

उन्होंने कहा, “आप बताइए, एक-दो अपवादों को छोड़ दें तो आमतौर पर देश में, केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय के बीच संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाए रखने की कोशिश दोनों तरफ से की जाती है।”

अब्दुल्ला ने कहा, “जम्मू-कश्मीर के मामले में, हालात सौहार्दपूर्ण बनाए रखने की जिम्मेदारी फिर से मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री दोनों पर है।”

अब्दुल्ला ने अतीत की राजनीतिक परिस्थितियों की तुलना करते हुए विशेष रूप से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) द्वारा भारतीय जनता पार्टी के साथ किए गए गठबंधन का उल्लेख किया, जो मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में हुआ था।

उन्होंने कथित राजनीतिक लाभ की ओर इशारा करते हुए कहा, “मुफ्ती सईद के सामने भाजपा के साथ गठबंधन करने की क्या मजबूरी थी? और महबूबा प्रधानमंत्री और उनके व्यक्तित्व के बारे में क्या-क्या कहा करती थीं। वे यह भूल गए हैं।”

उन्होंने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा, “टकराव तब होता है जब टकराव जरूरी होता है। अगर अब तक भारत सरकार मददगार रही है, तो क्या मुझे कम से कम सार्वजनिक रूप से उसकी सराहना नहीं करनी चाहिए? लेकिन जहां चीजें अच्छी नहीं हैं या जहां चीजें गलत हैं, मैं उस पर चुप नहीं हूं।”

यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी पार्टी पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए उच्चतम न्यायालय जाने की योजना बना रही है, मुख्यमंत्री ने कहा, “हम विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। पार्टी के भीतर और कुछ विशेषज्ञों के साथ इस बारे में बातचीत हुई है कि हमें क्या करना चाहिए”।

मुख्यमंत्री ने ऐसी किसी भी “हाइब्रिड प्रणाली” के सुझाव को खारिज कर दिया, जहां राज्य का दर्जा बहाल होने के बाद भी कानून-व्यवस्था केंद्र सरकार के पास रहेगी।

उन्होंने कहा, “इस देश में ऐसा कोई मॉडल नहीं है। और लोग अटकलें क्यों लगा रहे हैं? जो लोग ये अटकलें लगा रहे हैं, ये वही लोग हैं जो यह अटकलें लगा रहे थे कि चुनाव नहीं होंगे। या चुनाव नहीं होने चाहिए।”

अब्दुल्ला ने कहा, “इसके बावजूद यही लोग पहलगाम की विफलताओं या उग्रवाद के प्रसार के बारे में चुप हैं।”

उन्होंने ऐसी प्रणाली का प्रस्ताव देने वालों को चुनौती दी कि वे जनवरी 2015 में उनके पद छोड़ने के बाद से जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी ढांचे के “नाटकीय प्रसार” के बारे में बताएं, जिसमें हाल ही में पहलगाम हमला भी शामिल है, जिसमें 26 लोग, मुख्य रूप से पर्यटक, आतंकवादियों द्वारा मारे गए थे।

अब्दुल्ला ने कहा, “मेरे समय में हमने इसे लगभग दो से ढाई जिलों तक सीमित कर दिया था। आज घाटी में शायद ही कोई जिला बचा है और जम्मू का एक बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित है।”

उन्होंने तर्क दिया कि उग्रवाद का यह विस्तार तब हुआ जब जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश था, जो केंद्रीय नियंत्रण में था, न कि एक निर्वाचित सरकार के अधीन।

उन्होंने कहा, “लगता है कि निर्वाचित सरकारों ने बेहतर काम किया है।” उन्होंने इस धारणा को खारिज कर दिया कि निर्वाचित सरकार सुरक्षा स्थिति का प्रबंधन करने में असमर्थ है।

अब्दुल्ला ने कहा, “हमने अतीत में बहुत अच्छे तरीके से चीजों को संभाला है और भविष्य में भी हम अच्छा प्रबंधन करेंगे। यह हाइब्रिड प्रणाली स्वीकार्य नहीं है।”

उन्होंने केंद्र शासित प्रदेश मॉडल की अंतर्निहित खामियों को रेखांकित करते हुए सवाल उठाया कि यदि ऐसी प्रणाली “आदर्श” है, तो वह केवल कुछ छोटे क्षेत्रों तक ही क्यों सीमित है।

उन्होंने चुनौती देते हुए कहा, “यदि यही शासन का सर्वोत्तम तरीका है… तो कृपया इसे उत्तर प्रदेश में कीजिए। इसे महाराष्ट्र में कीजिए। इसे छत्तीसगढ़ में कीजिए। इसे सभी पूर्वोत्तर राज्यों में कीजिए। इसे मध्य प्रदेश में कीजिए।”

अब्दुल्ला ने बताया कि 2019 के बाद से जम्मू-कश्मीर का क्षेत्रफल कम हो गया है, लेकिन इसकी आबादी काफी हद तक समान बनी हुई है, जिससे शासन का वर्तमान मॉडल इसके पैमाने और जरूरतों के लिए अनुपयुक्त है। उन्होंने कहा, “शासन का यह मॉडल कारगर नहीं है।”

उन्होंने वर्तमान दोहरी सत्ता संरचना की आलोचना करते हुए इसे “सरकार का आदर्श स्वरूप नहीं” बताया।

उन्होंने स्वीकार किया कि अब तक एक पूर्ण “आपदा” टली हुई है। लेकिन उन्होंने कहा कि कोई एकल कमान श्रंखला नहीं होने के कारण अंतर्निहित अक्षमताएं हैं और जवाबदेही की कमी है। उन्होंने इन परिचालन चुनौतियों और लंबित कामकाज के नियमों के संबंध में केंद्र सरकार के साथ चल रही बातचीत में शीघ्र समाधान की आशा व्यक्त की।

भाषा

प्रशांत नरेश

नरेश

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