(कैरिन हैली, क्वींसलैंड विश्वविद्यालय)
ब्रिस्बेन, 11 अगस्त (कन्वरसेशन) स्कूलों में बच्चों पर धौंस जमाने का बहुत बुरा प्रभाव हो सकता है। अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि इसके कारण बच्चों के शिक्षा प्रदर्शन में कमी आ सकती है तथा उन्हें अवसाद, उद्विग्नता की समस्या का सामना करना पड़ सकता है या उनके भीतर आत्महत्या की प्रवृत्तियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए लिए दूसरों पर धौंस जमाने की प्रवृत्ति की रोकथाम और इसे कम करना सरकार के साथ साथ परिवारों एवं स्कूलों की फौरी प्राथमिकता होनी चाहिए।
बहरहाल, धौंस जमाने की प्रवृत्ति का सामना करने के लिए एक सामान्य अड़चन यह है कि अभिभावक एवं स्कूल प्राय: इस बात पर सहमत नहीं होते हैं कि कौन सी परिस्थिति में यह माना जाए कि धौंस जमायी गयी।
नार्वे के एक स्कूल में किए गए अध्ययन में पाया गया कि जब अभिभावकों को लगा कि उनके बच्चे को धौंस दी जा रही है तो दो-तिहाई बार ऐसा हुआ कि स्कूल इससे सहमत नहीं हुआ। इस प्रकार के मामले भी सामने आये जब स्कूल ने कहा कि कोई बच्चा धौंस दे रहा है, किंतु बच्चे के अभिभावक ने इसे स्वीकार नहीं किया।
यह मामला इतना जटिल क्यों है? अभिभावक इस स्थिति का मुकाबला कैसे कर सकते हैं?
धौंस देने का क्या अर्थ होता है?
जब हम धौंस जमाने या धमकाने की परिभाषा पर विचार करते हैं तो इसे लेकर असहमति होना, आश्चर्यजनक नहीं है। धौंस जमाने के मामले की पहचान करना सरल नहीं है।
आस्ट्रेलिया के स्कूलों में जो परिभाषा प्रयुक्त की जाती है, उसमें उन प्रमुख बिन्दुओं को शामिल किया गया है जिसे अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने परिभाषित किया है। धौंस जमाना एक प्रकार की ऐसी आक्रामकता होती है:-
(1) जो पीड़ित को आहत करती है।
(2) जिसकी पुनरावृत्ति कई बार होती है।
(3) जो आहत करने की मंशा से की जाती है।
(4) जिसमें ताकत का असंतुलन रहता है और पीड़ित समस्या को रोक पाने में असमर्थ महसूस करता है।
धौंस जमाने की शिकायत मिलने पर स्कूल क्या करता है?
जब कोई छात्र या अभिभावक धौंस जमाने की शिकायत करते हैं तो स्कूल आमतौर पर छात्रों, अध्यापकों एवं अभिभावकों से बातचीत करते हैं और छात्रों के बीच संवाद करवाते हैं।
हालांकि यह तय कर पाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है कि कोई व्यवहार धमकी देने वाला या धौंस देने वाला है।
पहली बात, धौंस जमाने की घटना प्राय: तब होती है जब कोई वयस्क आसपास नहीं होता और छात्र प्राय: अध्यापकों को नहीं बताते अत: प्रत्यक्ष निगरानी कर पाना हमेशा संभव नहीं हो सकती।
दूसरी बात, यदि अध्यापक उपस्थित हो तब भी धौंस जमाने के सामाजिक प्रकार बहुत सूक्ष्म हो सकते हैं जैसे किसी को अलग-थलग कर दिया या चेहरा की मुखमुद्राओं के जरिये किसी का मजाक उड़ाया जाए। इस प्रकार की बातों की आमतौर पर अनदेखी कर दी जाती है।
तीसरी बात, यह तय करना बड़ा मुश्किल होता है कि आहत करने की मंशा थी क्योंकि धमकी देने वाला छात्र यह (गलत या सही) दावा कर सकता है कि उसका इरादा आहत करने का नहीं था और वह केवल मजाक कर रहा था।
चौथी बात, ताकत की बात तय करना भी आसान नहीं होता। यदि कोई छात्र आयु में बड़ा हो या शारीरिक रूप से मजबूत हो अथवा कई सारे छात्र धौंस जमाने में शामिल हों तो ताकत का असंतुलन प्रत्यक्ष पर तौर पर देखा जा सकता है। किंतु जब लोकप्रियता के आधार पर ताकत बनी हो तो ताकत का अंतर पता लगाना कठिन हो जाता है। ऐसे भी मामले होते हैं जहां छात्र जानबूझ कर अन्य छात्रों पर धमकी देने का आरोप लगाते हैं ताकि उन्हें समस्या में डाल सकें (यह कृत्य भी अपने आप में धौंस जमाना होता है)।
अंतिम बात, सभी आक्रामक व्यवहार धौंस जमाना नहीं कहे जा सकते। उदाहरण के लिए समान लोगों के बीच बहस या लड़ाई को धौंस जमाना नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें ताकत का असंतुलन नहीं है। हालांकि यह स्थिति परेशान करने वाली होती है।
एक और भी कठिन परिस्थिति तब उत्पन्न होती है जब धौंस जमाने से पीड़ित हुआ पक्ष आक्रामक रूप से प्रतिक्रिया करता है-जैसे वह क्रोधित होकर वार करे या तंज कसे। धौंस का शिकार हुआ पीड़ित जब आक्रामक रूप से प्रतिक्रिया व्यक्त करता है तो वह अध्यापकों की नजर में अधिक आ जाता है बनिस्बत उस व्यक्ति के जिसने धमकी दी। ऐसे मामलों में दोषी का पता लगाना स्कूल के लिए बहुत कठिन हो जाता है।
यदि स्कूल एवं अभिभावक जब असहमत होते हैं, तब क्या होता है?
ऐसा हो सकता है कि धौंस जमाने के मामले में स्कूल इस आरोप को सही नहीं माने और इसका पता लगाने के लिए अपने सीमित संसाधनों का इस्तेमाल भी नहीं करे। इस स्थिति में छात्र मुश्किल परिस्थिति में गुजरने लगता है और अभिभावक भी काफी हताश महसूस करते हैं।
बहरहाल, अध्ययन से इस बात का पता चला है कि जो अभिभावक इस बात की जानकारी देते हैं कि उनके बच्चे को धमकी दी गयी तो बाद में इस बात का जोखिम बढ़ जाता है कि उनका बच्चा उद्विग्नता और अवसाद का शिकार हो सकता है। इस स्थिति में इस बात का कोई असर नहीं पड़ता कि स्कूल यह बात मान रहा है कि बच्चे को धमकी दी गयी अथवा वह इस दावे से सहमत नहीं हो।
लिहाजा, प्रारंभिक स्तर पर भले ही स्कूल इस बात से सहमत हो या न हो कि बच्चे को धमकी दी गयी है, यह महत्वपूर्ण होता है कि स्थिति में सुधार किया जाए।
क्या किया जाना चाहिए?
कई बार स्थिति का सामना करने के लिए कुछ कदम उठाकर स्कूल यह पता लगा सकता है कि धौंस दी गयी या नहीं। मिसाल के तौर कई बार छात्र इस प्रकार के अहानिकारक व्यवहार से परेशान हो सकता है, जैसे भिनभिनाने की आवाज निकालना, मेज थपथपाना या बहुत नजदीक खड़े हो जाता।
यदि इस तरह का व्यवहार किसी को आहत करने की मंशा से नहीं किया गया है तो हम यह उम्मीद करते हैं बच्चा इस बात से अवगत होने पर अपने व्यवहार में सुधार ले आएगा। किंतु यह व्यवहार जारी रहता है या बढ़ जाता है तो इस बात को मानने का पुख्ता आधार होगा कि वह जानबूझ कर उकसाना चाहता है (जो धौंस जमाना ही है)।
अभिभावकों के लिए यह एक सहायक रणनीति हो सकती है वह बच्चों के अनुभवों का एक सतर्कतापूर्ण रिकार्ड बनाये, जिसमें यह बात लिखी हो कि बच्चों को क्या अनुभव हुआ और इससे उस पर क्या प्रभाव पड़ा। यह लंबे समय में आहत करने वाले व्यवहार के चलन को स्थापित करने में मददगार हो सकता है।
अभिभावकों के लिए यह महत्वपूर्ण होता है कि वह स्कूल के साथ अच्छे व्यवहार एवं मौजूदा संवाद को कायम रखे (भले ही यह कठिन हो)। धौंस जमाना एक जटिल और दिन प्रतिदिन बदलने वाला मुद्दा है, अच्छी तरह से संवाद रखने से मुद्दों को समुचित ढंग से निबटाया जा सकता है।
अभिभावक बच्चों को स्थिति का सामना करने के लिए प्रशिक्षित कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर उन्हें यह समझाया जाए कि जब उनका कोई मित्र या सहपाठी ऐसा व्यवहार कर रहा है जिसे वह पसंद नहीं करता तो इस बात को उसे मित्रतापूर्ण एवं विश्वस्त ढंग से कह देना चाहिए। अभिभावकों को बच्चों को इस बात के लिए समझाना चाहिए कि उन्हें अध्यापकों से सहायता मांगने के लिए कब सोचना चाहिए।
एक-दूसरे के साथ मिलकर और समय के साथ समस्या को समझ कर स्कूल एवं परिवार आहत करने वाले व्यवहार का मुकाबला कर सकते हैं। इसमें यह बात अधिक महत्वपूर्ण नहीं है कि दोनों पक्षों के बीच शुरुआत में इस बात को लेकर सहमति थी या नहीं कि ‘‘धमकी दी गयी।’’
द कन्वरसेशन
माधव मनीषा
मनीषा