मुंबई, 17 जुलाई (भाषा) महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल शिवसेना और विपक्षी शिवसेना (उबाठा) के सदस्य बृहस्पतिवार को विधानसभा में आमने-सामने आ गए, जिसके कारण हंगामा हुआ और सदन की कार्यवाही दस मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी।
विधानसभा में नियम 293 के तहत आवास और शहरी विकास विभाग से संबंधित मुद्दों पर चर्चा पर उपमुख्यमंत्री एवं शिवसेना अध्यक्ष एकनाथ शिंदे का जवाब पूरा होते ही हंगामा शुरू हो गया।
जैसे ही शिंदे ने अपना जवाब समाप्त किया, शिवसेना (उबाठा) विधायक भास्कर जाधव अपनी सीट से खड़े हो गए और विधानसभा अध्यक्ष से मांग करने लगे कि उन्हें सरकार के जवाब पर बोलने के अपने अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति दी जाए।
हालांकि, अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने कहा कि यह अधिकार केवल उस सदस्य को है, जिसने चर्चा शुरू की है और वह विधायक (इस मामले में शिवसेना-उबाठा के आदित्य ठाकरे) उस समय सदन में मौजूद नहीं थे।
जाधव ने अध्यक्ष की आलोचना की, जिस पर शिवसेना सदस्यों ने जोरदार आपत्ति जताई। इस दौरान हंगामे के बीच, नार्वेकर ने सदन की कार्यवाही दस मिनट के लिए स्थगित कर दी।
सदन के दोबारा शुरू होते ही, कैबिनेट मंत्री शंभूराज देसाई (शिवसेना) ने जाधव और ठाकरे के आचरण पर आपत्ति जताई और उन पर आसन तथा सत्तारूढ़ दल की ओर इशारा करने का आरोप लगाया।
उपमुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि जाधव ने आसन को उन्हें निलंबित करने की चुनौती दी थी और ऐसा व्यवहार स्वीकार्य नहीं है।
शिवसेना (उबाठा) के अजय चौधरी ने कहा कि जिस सदस्य (ठाकरे) ने बहस शुरू की थी, उन्हें कुछ काम था और इसलिए वह सदन से बाहर चले गए।
उन्होंने कहा, ‘‘किसी अन्य सदस्य को बोलने की अनुमति दी जा सकती है। जवाब मांगना विपक्ष का अधिकार है।’’
अध्यक्ष नार्वेकर ने कहा कि आसन का अपमान पूरे सदन का अपमान है। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने भास्कर जाधव से यह पूछा है कि मैं नियमों का पालन किए बिना सदन की कार्यवाही कैसे चला रहा हूं।’’
अध्यक्ष ने कहा कि वह ठाकरे को जवाब के अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति देंगे, लेकिन सदस्य को सदन में उपस्थित रहना होगा।
बाद में, विधान भवन परिसर में पत्रकारों से बात करते हुए, जाधव ने आरोप लगाया कि नार्वेकर ने सदन में शिंदे के जवाब पर उन्हें बोलने का अधिकार न देकर पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया।
जाधव ने आरोप लगाया, ‘‘यह स्पष्ट है कि अध्यक्ष नार्वेकर सदन की कार्यवाही पक्षपातपूर्ण तरीके से चला रहे हैं और हमारे अधिकारों की रक्षा नहीं कर रहे हैं। वह ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे वह भी राज्य सरकार का हिस्सा हों।’’
भाषा वैभव सुरेश
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