नयी दिल्ली, 19 जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि सिर्फ इसलिए कि नाबालिग लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में चोटों का जिक्र नहीं है, उसके साथ हुए हमले के बारे में उसके ‘‘स्पष्ट बयान’’ को खारिज नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया ने यह टिप्पणी की साथ ही एक निचली अदालत को एक व्यक्ति और उसकी पत्नी के खिलाफ हमले और गलत तरीके से बंधक बनाने के आरोप पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया। यह मामला आरोपी की कंपनी में रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करने वाली कथित पीड़िता ने 2016 में दर्ज कराया था।
निचली अदालत ने व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध का आरोप तय किया था, जबकि उसे और उसकी पत्नी को मारपीट और गलत तरीके से बंधक बनाने के आरोपों से बरी कर दिया था।
न्यायाधीश ने 18 जुलाई के आदेश में कहा, ‘‘केवल इसलिए कि अभियोक्ता की एमएलसी (चिकित्सा विधि प्रमाणपत्र) में चोटों का उल्लेख नहीं है, अभियोक्ता का यह स्पष्ट बयान कि उसे पीटा गया था खारिज नहीं किया जा सकता।’’
निचली अदालत ने कहा था कि चूंकि लड़की के एमएलसी में किसी चोट का उल्लेख नहीं है, इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) के तहत अपराध के लिए आरोप तय नहीं किया जा सकता।
अदालत ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए गए अपने बयान में लड़की ने आरोप लगाया था कि उसके पेट पर लात मारी गई और उसका सिर दीवार पर मारा गया लेकिन एमएलसी में कोई चोट नहीं दिखाई गई और इससे आईपीसी की धारा 323 के तहत आरोप लगाने का कोई मामला नहीं बनता।
भाषा शोभना रंजन
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