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Saturday, July 19, 2025

कारगिल युद्ध से पहले जम्मू कश्मीर के लिए गुप्त वार्ता, चिनाब फॉर्मूला का पुस्तक में किया गया खुलासा

Newsकारगिल युद्ध से पहले जम्मू कश्मीर के लिए गुप्त वार्ता, चिनाब फॉर्मूला का पुस्तक में किया गया खुलासा

नयी दिल्ली, 19 जुलाई (भाषा) एक नयी पुस्तक में यह खुलासा किया गया है कि 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध शुरू होने से कुछ हफ्ते पहले, क्रमश: अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकारों ने कश्मीर मुद्दे का समाधान तलाशने का प्रयास किया था।

इस पहल के तहत, दोनों देशों के बीच जम्मू कश्मीर के सांप्रदायिक आधार पर विभाजन के लिए चिनाब नदी को भौगोलिक सीमा रेखा मानने पर सहमति बनी थी, जिसे ‘‘चिनाब फॉर्मूला’’ नाम दिया गया।

अभिषेक चौधरी ने ‘बिलीवर्स डायलेमा : वाजपेयी एंड हिंदू राइट्स पाथ टू पावर’ में लिखा है कि वाजपेयी की 1999 की ऐतिहासिक पाकिस्तान यात्रा और लाहौर घोषणा के बाद दिल्ली के एक होटल में सेवानिवृत्त पाकिस्तानी राजनयिक और पूर्व उच्चायुक्त (भारत में नियुक्त रहे) नियाज नाइक तथा भारतीय वार्ताकार आर.के. मिश्रा के बीच सिलसिलेवार गुप्त वार्ता हुई थीं।

पुस्तक के अनुसार, ‘‘मार्च 1999 के अंतिम सप्ताह में शरीफ के दूत नियाज नाइक… गुप्त रूप से दिल्ली के एक होटल में रुके और आर. के. मिश्रा के साथ बातचीत शुरू की।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘अगले पांच दिनों में उन्होंने कश्मीर पर अपने असंभव प्रस्ताव पर चर्चा की: एक ऐसा समाधान जो न केवल तीनों संबंधित पक्षों (जिनमें से एक पक्ष कश्मीरी भी थे) के लिए उचित हो, बल्कि लागू करने के लिए व्यावहारिक भी हो।’’

वाजपेयी द्वारा दोनों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किये जाने के बाद, मिश्रा और नाइक कई दौर की चर्चा के बाद, दोनों देशों के बीच जम्मू कश्मीर के विभाजन के लिए एक ‘‘चिह्नित किये जाने योग्य भौगोलिक सीमा’’ पर राजी हुए – जिसे ‘‘चिनाब फॉर्मूला’’ कहा गया।

इसमें कहा गया है, ‘‘नाइक द्वारा सुझाए गए फार्मूले में नदी के पश्चिम के सभी मुस्लिम बहुल जिलों को पाकिस्तान को देने का प्रस्ताव था, जबकि पूरब के सभी हिंदू बहुल जिलों को भारत द्वारा रखा जाना था।’’

खारिज किये गये विकल्पों में शामिल थे, ‘‘नियंत्रण रेखा (एलओसी) को अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में रखना (नाइक द्वारा अस्वीकृत), कश्मीर के लिए स्वायत्तता (नाइक द्वारा अस्वीकृत), कश्मीर की स्वतंत्रता (मिश्रा द्वारा अस्वीकृत) और क्षेत्रवार जनमत संग्रह (मिश्रा द्वारा अस्वीकृत)।’’

पुस्तक के अनुसार, एक अप्रैल को इस्लामाबाद लौटने से पहले, नाइक ने वाजपेयी से मुलाकात की, जिन्होंने नवाज शरीफ के लिए एक गुप्त संदेश भेजा, ‘‘गर्मियों के महीनों में घुसपैठ और सीमा पार से गोलाबारी बंद करें।’’

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और गुप्त कूटनीति के आगे बढ़ने के साथ ही, समस्याएं बढ़ती जा रही थीं। मई की शुरुआत तक, भारतीय खुफिया और गश्ती इकाइयों ने नियंत्रण रेखा पर बढ़ती आक्रामकता की सूचना दी।

बाद में, स्थिति से चिंतित होकर, वाजपेयी ने मिश्रा को एक स्पष्ट संदेश के साथ इस्लामाबाद भेजा।

पुस्तक में दावा किया गया है, ‘‘17 मई को, आर. के. मिश्रा, वाजपेयी का संदेश लेकर इस्लामाबाद पहुंचे। उन्होंने शरीफ से सीधे पूछा कि क्या उन्हें ‘लाहौर घोषणा’ पर हस्ताक्षर करते समय कारगिल के बारे में पता था।’’

वाजपेयी और शरीफ द्वारा 21 फरवरी 1999 को हस्ताक्षरित ‘लाहौर घोषणा पत्र’ भारत और पाकिस्तान के बीच एक शांति समझौता है, जिसका उद्देश्य संबंधों में सुधार लाना और परमाणु संघर्ष के जोखिम को कम करना है।

विडंबना यह है कि 17 मई को ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को कारगिल अभियान पर ‘‘पहली ब्रीफिंग’’ मिली थी — ठीक उसी दिन जब वाजपेयी के दूत ने शरीफ से कारगिल के बारे में पूछताछ की थी।

पुस्तक में कहा गया है, ‘‘यह कारगिल गुट द्वारा एक चुनिंदा ब्रीफिंग थी, जिसे बिना विस्तृत नक्शों के प्रस्तुत किया गया था, जिसका उद्देश्य शरीफ को सेना के निजी अभियान को सरकारी कवर प्रदान करने के लिए राजी करना था।’’

पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अजीज और अन्य अधिकारी कथित तौर पर स्तब्ध थे, वहीं शरीफ ने उनकी चिंताओं को खारिज करते हुए कहा था, ‘‘सरताज अजीज साहब, क्या हम कभी कागजी कार्रवाई के माध्यम से कश्मीर को प्राप्त कर सकते हैं?’’

पैनमैकमिलन इंडिया द्वारा प्रकाशित पुस्तक में दावा किया गया है कि कारगिल की रणनीतिक महत्व की चोटियों से सामरिक लाभ के साथ, उन्होंने (शरीफ ने) पाकिस्तानी सेना को सलाह दी कि ‘‘अल्लाह का नाम लो और इस अभियान को जारी रखो, यह मुद्दा बसें परिचालित कर नहीं सुलझ सकता।’’

कारगिल युद्ध, जिसे ‘ऑपरेशन विजय’ के नाम से भी जाना जाता है, मई 1999 में शुरू हुआ और जुलाई में भारतीय सेना द्वारा सामरिक महत्व के स्थानों से पाकिस्तानी घुसपैठियों को सफलतापूर्वक खदेड़ने के साथ समाप्त हुआ।

भाषा सुभाष पवनेश

पवनेश

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