नयी दिल्ली, 20 जुलाई (भाषा) अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने से बच्चों की स्कूली शिक्षा में 1.5 साल तक की कमी आ सकती है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन का शिक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है और हाल के दशकों में हुई शैक्षिक उपलब्धियों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का खतरा है। एक नयी वैश्विक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
जलवायु संबंधी कारक जैसे गर्मी, जंगल की आग, तूफान, बाढ़, सूखा, बीमारियां और समुद्र का बढ़ता स्तर शिक्षा के परिणामों को प्रभावित करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़्यादातर निम्न और मध्यम आय वाले देश हर साल जलवायु संबंधी तनावों का सामना कर रहे हैं, जिससे शिक्षा का नुकसान और स्कूल छोड़ने की संभावना बढ़ रही है।
यूनेस्को की वैश्विक शिक्षा निगरानी टीम, जलवायु संचार एवं शिक्षा निगरानी एवं मूल्यांकन परियोजना और कनाडा के सस्केचवान विश्वविद्यालय द्वारा संकलित रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 20 साल में चरम मौसम की घटनाओं के कारण कम से कम 75 प्रतिशत समय में स्कूल बंद रहे, जिससे 50 लाख या उससे अधिक लोग प्रभावित हुए।
भीषण गर्मी के संपर्क में आने से बच्चों के शैक्षिक परिणामों पर गंभीर रूप से हानिकारक प्रभाव पड़ता है। वर्ष 1969 और 2012 के बीच 29 देशों में जनगणना और जलवायु संबंधी आंकड़ों में संबंध जोड़ने वाले एक विश्लेषण से पता चला है कि गर्भ में रहने और प्रारंभिक जीवन काल के दौरान औसत से अधिक तापमान के संपर्क में आने का संबंध, विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया में, स्कूली शिक्षा के वर्षों में कमी आने जुड़ा है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘औसत से दो डिग्री अधिक तापमान का सामना करने वाले बच्चे के लिए यह अनुमान लगाया जाता है कि औसत तापमान का अनुभव करने वाले बच्चों की तुलना में उसे 1.5 वर्ष कम स्कूली शिक्षा मिलेगी। उच्च तापमान के कारण चीन में उच्च-स्तरीय परीक्षा में बच्चों के प्रदर्शन पर प्रतिकूल असर पड़ा है और हाई स्कूल स्नातक और कॉलेज प्रवेश दर, दोनों में कमी आई है।’
वैश्विक रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण शिक्षा का नुकसान हाशिए पर रहने वाली आबादी के लिए और भी बदतर है। वर्ष 2019 में चरम मौसम की घटनाओं से सबसे ज़्यादा प्रभावित 10 देशों में से आठ निम्न या निम्न-मध्यम आय वाले देश थे।
भाषा आशीष सिम्मी
सिम्मी