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Sunday, July 20, 2025

मेरा साक्षात्कार 21 मार्च 1977 को हुआ था, जिस दिन आपातकाल हटाया गया था : जयशंकर

Newsमेरा साक्षात्कार 21 मार्च 1977 को हुआ था, जिस दिन आपातकाल हटाया गया था : जयशंकर

नयी दिल्ली, 20 जुलाई (भाषा) विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रविवार को सिविल सेवा में अपने प्रवेश को याद करते हुए कहा कि दिल्ली में उनका यूपीएससी साक्षात्कार 21 मार्च, 1977 को हुआ था – जिस दिन आपातकाल हटाया गया था।

जयशंकर ने यहां एक कार्यक्रम में कहा, “(1977) चुनाव के नतीजे एक दिन पहले से आ रहे थे…आपातकालीन शासन की हार का एहसास साफ दिख रहा था। एक तरह से, इसी चीज ने मुझे साक्षात्कार में सफलता दिलाई।”

पुरानी यादों को ताजा करते हुए, उस समय 22 साल के रहे जयशंकर ने कहा कि वे साक्षात्कार से दो महत्वपूर्ण बातें लेकर लौटे – दबाव में संचार का महत्व और यह कि महत्वपूर्ण लोग “एक दायरे से बाहर” नहीं देख रहे थे।

सिविल सेवा में प्रवेश पाने वाले नए बैच के लोगों को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने यूपीएससी परीक्षा को अग्नि परीक्षा के समान बताया और कहा कि सेवाओं के लिए उम्मीदवारों का चयन करने के लिए यह दुनिया की एक “बहुत ही अनोखी” परीक्षा प्रणाली है।

जयशंकर ने कहा कि असली चुनौती साक्षात्कार है और उन्होंने 48 साल पहले हुए अपने यूपीएससी साक्षात्कार का उदाहरण दिया।

अब 70 साल के हो चुके जयशंकर याद करते हैं, “मेरा साक्षात्कार 21 मार्च, 1977 को था। उसी दिन आपातकाल हटा लिया गया था। तो, मैं शाहजहां रोड पर साक्षात्कार के लिए गया… उस सुबह सबसे पहले पहुंचने वाला मैं था।”

लगभग एक महीने पहले, मोदी सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की 50 वीं बरसी मनाई थी, जिसके तहत देश भर में कार्यक्रम आयोजित किए गए थे, ताकि उस घटना को याद किया जा सके जिसे उसके नेताओं ने भारतीय लोकतंत्र का “काला अध्याय” करार दिया था।

देश में 21 महीने का आपातकाल 25 जून 1975 को लगाया गया था और 21 मार्च 1977 को हटा लिया गया था।

विपक्षी नेताओं का गठबंधन जनता पार्टी, 1977 के चुनावों में विजयी हुई तथा इंदिरा गांधी को पराजित किया और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।

जयशंकर ने कहा कि साक्षात्कार में उनसे पूछा गया था कि 1977 के चुनावों में क्या हुआ था।

एक छात्र के रूप में जेएनयू से अपने जुड़ाव और राजनीति विज्ञान विषय का हवाला देते हुए विदेश मंत्री ने कहा, “मैं भाग्यशाली था”।

जयशंकर ने कहा, “हमने 1977 के चुनाव अभियान में हिस्सा लिया था। हम सभी वहां गए थे और आपातकाल के खिलाफ काम किया था।”

उन्होंने कहा, तो जवाब देते वक्त, “मैं भूल गया था कि मैं साक्षात्कार में हूं”, और उस समय, “किसी तरह मेरा संवाद कौशल काम करने लगा।”

एक अनुभवी राजनयिक और इससे पहले विदेश सचिव के तौर पर व्यापक रूप से सेवा दे चुके जयशंकर ने कहा था कि उन लोगों को, जो “सरकार से काफी जुड़े हुए हैं, सहानुभूति रखते हैं, उन्हें आहत किए बिना यह समझाना कि क्या हुआ था, वास्तव में एक बड़ी चुनौती थी।”

और दूसरी बात जो उन्होंने उस दिन सीखी, वह थी इस “लुटियंस बबल” (लुटियंस दिल्ली के दायरे तक सिमटने) के बारे में।

विदेश मंत्री ने उनके साक्षात्कार के अनुभव को याद करते हुए कहा, “वो लोग सचमुच हैरान थे, उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये चुनाव परिणाम आए हैं, जबकि हम आम छात्र देख सकते थे कि आपातकाल के खिलाफ लहर थी।”

उन्होंने कहा कि उस दिन से उन्होंने दबाव में भी संवाद करना तथा लोगों को नाराज किए बिना ऐसा करना सीख लिया।

केंद्रीय मंत्री ने कहा, “आप लोगों को कैसे समझाते हैं, कैसे उन्हें मनाते हैं—यह एक बड़ी सीख थी। दूसरी अहम बात जो उस अनुभव से मिली, वह यह थी कि कई बार महत्वपूर्ण लोग एक तरह के ‘बबल’ (सिमटे दायरे) में रहते हैं और उन्हें यह एहसास ही नहीं होता कि देश में वास्तव में क्या हो रहा है।”

उन्होंने कहा कि जो लोग जमीन पर काम कर रहे थे- जैसे कि उनके जैसे छात्र जो चुनाव अभियानों का हिस्सा थे और मुजफ्फरनगर जैसे इलाकों में गए थे—“हमें जमीन पर एक माहौल का अंदाजा हो गया था”, लेकिन दिल्ली में बैठे लोग, जिनके पास सभी तंत्र से सारी जानकारियां थीं, “किसी तरह वो उसे समझ नहीं पाए”।

अपने संबोधन में उन्होंने यह भी पूछा कि सफल लोकतंत्र का आकलन करने का पैमाना क्या है, उन्होंने कहा कि इसका आकलन मतदान रिकॉर्ड या मतदान प्रतिशत से नहीं होता।

जयशंकर ने ज्यादा विवरण दिये बगैर कहा, “मेरे लिए, एक सफल लोकतंत्र वह है जब पूरे समाज को अवसर मिले; तभी लोकतंत्र काम कर रहा है। उन्हें अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन यह कुछ लोगों का, पूरे समाज की ओर से… अपनी बात कहने का अधिकार नहीं है।”

भाषा प्रशांत रंजन

रंजन

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