नयी दिल्ली, पांच जून (भाषा) कोई दिल्ली का नाम ले और मिर्ज़ा ग़ालिब ख्यालों में न आएं, कोई श्रीनगर को याद करे और आगा शाहिद की नज़्में होंठों पर न उतर आएं, कोई कोलकाता का नाम ले और कमला दास की याद न आए, ये मुमकिन ही नहीं। अपनी शायरी और कविताओं से शहरों को नई शिनाख्त बख्शने वाले ऐसे ही नामचीन शायरों, अदीबों की रचनाओं को एक किताब की शक्ल में ढाला गया है।
पेंग्विन द्वारा प्रकाशित ‘दी पेंग्विन बुक आफ पोयम्स आन दी सिटी’ ही वह किताब है जिसमें हिंदुस्तान के 37 ऐसे शहरों के अदीबों और मुसन्निफ़ को शामिल किया गया है, जिनके नाम से उनके शहर पहचाने गए।
बिलाल मोइन द्वारा संपादित और पेंग्विन रैंडम हाउस द्वारा प्रकाशित किताब में कुल 375 कविताओं को पेश किया गया है, जिनमें मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गईं और देश की करीब 20 विभिन्न भाषाओं से अनूदित कविताएं भी शामिल हैं।
हिंदुस्तान के 1500 से अधिक सालों के काव्य संसार को एक साथ लाने वाली अपने किस्म की यह पहली किताब है, जिसमें महान कवियों, शायरों के साथ ही नई आवाज़ों को भी जगह दी गई है।
मोइन बताते हैं कि इस किताब में वाल्मीकि से लेकर सूरदास, कबीर, अमीर खुसरो और फिर आधुनिक समय के मीर तकी मीर, रूडयार्ड किप्लिंग और रवीन्द्रनाथ ठाकुर तक को साथ लेकर भारत के शहरों की समृद्ध संस्कृति, साहित्यिक विरासत और लयात्मकता को शामिल किया गया है।
कुल 1062 पन्नों में सिमटे कविताओं और शायरी के इस खजाने में पाठक समकालीन कवियों की रचनाओं का भी रसास्वादन कर सकता है, जिनमें अरविंद कृष्ण मल्होत्रा, विक्रम सेठ, अरुण कोलातकर, अमृता प्रीतम, अमित चौधरी और गुलज़ार भी शामिल हैं।
और ये सब मिलकर पाठक के समक्ष कविताओं के माध्यम से शहरों का चित्रण पेश करते हुए साम्राज्यवादी राजधानियों, औपनिवेशिक चौकियों और निरंतर विकसित होते ऐसे स्थानों तक ले जाते हैं जो उत्तर-आधुनिक जीवन के लिए पृष्ठभूमि के रूप में काम करते हैं।
प्रकाशक के अनुसार, ‘‘यह संग्रह न केवल उन शहरों में रहने वालों के लिए है, जिन्हें इसमें शामिल किया गया है बल्कि यह किताब हर उस पाठक को पसंद आएगी जो हिंदुस्तानी शहरों की अराजक, विरोधाभासी और चमत्कारिक झांकी में रचा बसा है और जिसके लिए यही जीवन भी है।’’
पेंग्विन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘यह किताब शहर को यहां के बाशिंदों के लिए एक पेचीदा और सामूहिक चेतना की जीवंत अभिव्यक्ति के रूप में चित्रित करती है।’’
भाषा नरेश सुरेश
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