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Thursday, September 4, 2025

काला जादू पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून नहीं बनाएगी केरल सरकार

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कोच्चि, 24 जून (भाषा) केरल की वामपंथी सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा है कि वह काला जादू, टोना-टोटका और अन्य अमानवीय प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने की दिशा में आगे नहीं बढ़ेगी।

केरल सरकार ने इसके लिए राज्य मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय का हवाला दिया है।

मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार की अध्यक्षता वाली केरल उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष दायर एक हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि कानून सुधार आयोग की सिफारिशों के आधार पर ‘केरल अमानवीय कुप्रथाओं, जादू-टोना और काला जादू निवारण एवं उन्मूलन विधेयक-2022’ शीर्षक से एक मसौदा विधेयक तैयार किया गया है।

हालांकि, विचार-विमर्श के बाद मंत्रिपरिषद ने पांच जुलाई, 2023 को इस विधेयक पर आगे न बढ़ने का निर्णय लिया।

राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में दलील दी कि यद्यपि न्यायालय ने जनहित याचिका में उठाई गई सामाजिक चिंताओं पर गौर किया होगा, लेकिन वह विधायिका को कानून पारित करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।

केरल सरकार ने अपने हलफनामे में कहा, ‘‘परमादेश रिट के माध्यम से विधायिका को किसी विशेष विषय पर कानून बनाने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।’’

इस बीच, उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि वह जादू-टोना और काले जादू पर नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाने का इरादा रखती है। सरकार का कहना है कि मौजूदा समय में वह ऐसे किसी कानून पर विचार नहीं कर रही है।

अदालत ने कहा कि यद्यपि के.टी. थॉमस आयोग की रिपोर्ट में काले जादू और उससे संबंधित अमानवीय प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाने की सिफारिश की गई थी, लेकिन सरकार ने रिपोर्ट पर कोई अनुवर्ती कार्रवाई नहीं की।

उच्च न्यायालय ने अब राज्य सरकार से स्पष्ट रूप से यह बताने को कहा है कि वह कानून के अभाव में भी काले जादू और टोना-टोटके की प्रथा को रोकने की किस प्रकार योजना बना रही है।

अदालत ने सरकार को तीन सप्ताह के भीतर विस्तृत हलफनामा दायर करने का भी निर्देश दिया।

केरल के गृह विभाग ने 21 जून, 2025 को एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि मंत्रिपरिषद ने शुरू में इस मामले पर चर्चा की थी लेकिन बाद में कानून बनाने पर आगे न बढ़ने का फैसला किया।

उच्च न्यायालय ने इससे पहले केरल युक्तिवादी संघम की ओर से दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) के बाद राज्य से अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा था, जिसमें अलौकिक शक्तियों के नाम पर किए जाने वाले हानिकारक अनुष्ठानों पर रोक लगाने के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक में लागू कानूनों के समान कानून बनाने की मांग की गई थी।

भाषा रवि कांत प्रशांत

प्रशांत

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