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Monday, September 1, 2025

सुंदरता और दमदार अभिनय के दम पर नायकों की पसंदीदा रहीं सरोजा देवी

Newsसुंदरता और दमदार अभिनय के दम पर नायकों की पसंदीदा रहीं सरोजा देवी

बेंगलुरु, 14 जुलाई (भाषा) महज 17 साल की उम्र में बी सरोजा देवी ने जब कन्नड़ फिल्म ‘महाकवि कालिदास’ (1955) से अपने अभिनय के सफर की शुरुआत की, तो पर्दे पर उनकी आकर्षक उपस्थिति ने तुरंत लोगों के दिलों में जगह बना ली।

वह न केवल कन्नड़, बल्कि तमिल, तेलुगु और हिंदी सिनेमा में भी मशूहर हुईं।

सरोजा देवी सफलता ऐसी थी कि फिल्म ‘महाकवि कालिदास’ में उनके सह-कलाकार रहे अभिनेता-फिल्म निर्माता होन्नप्पा भगवतार ने अपनी उपलब्धियों में इस बात को भी शामिल किया है कि उन्होंने ‘‘सरोजा देवी को सिनेमा में पदार्पण कराया’’।

अभिनेता एवं फिल्मकार होन्नप्पा भगवतार को कन्नड़ सिनेमा के प्रारंभिक स्तंभों में गिना जाता है।

बेंगलुरु में जन्मी सरोजा देवी को अंततः कन्नड़ सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार का खिताब दिया गया।

तमिल फिल्मों के दिग्गज और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन उर्फ एमजीआर ने सरोजा देवी के साथ 48 फिल्मों में अभिनय किया हुआ है। वह उन्हें भाग्यशाली मानते थे।

फिल्मों में सरोजा देवी और एमजीआर की जोड़ी को लोगों को बहुत पसंद किया है। उनकी कुछ फिल्मों जैसे कि ‘अनबे वा’ (1966) को सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली।

उनकी पहली फिल्म ‘नादोडी मन्नान’ (1958) ने सरोजा देवी को रातोंरात सुपरस्टार बना दिया।

सरोजा देवी ने दक्षिण भारत की लगभग सभी भाषाओं के साथ-साथ हिंदी फिल्मों में भी काम किया — उन्हें ‘चतुर्भाषा तारे’ की उपाधि भी मिली — लेकिन तमिल सिनेमा में उनका सितारा सबसे अधिक दमकता रहा।

तमिल भाषा की फिल्मों में उन्होंने बी. आर. पंथुलु की फिल्म ‘थंगमलाई रागसियाम’ (1957) में एक नृत्यांगना के रूप में शुरुआत की। वह तमिल फिल्म जगत में ‘कन्नड़थु पैंगिली’ (कन्नड़ का तोता) के रूप में पहचाने जाने लगीं।

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फिल्म ‘नादोदी मन्नान’ से तमिलनाडु में रातोंरात ख्याति पाने वाली सरोजा देवी ने हिंदी सिनेमा में अभिनय की शुरुआत की, जहां उन्होंने मुख्य भूमिका नहीं निभाई थी।

दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला अभिनीत फिल्म ‘पैगाम’ (1959) को लोगों ने बहुत पसंद किया और सरोजा देवी ने इसमें ‘छोटी भूमिका’ निभाई थी, इसके बावजूद उन्होंने लोगों और निर्देशकों के दिलों में अपनी जगह बना ली।

उन्होंने राजेंद्र कुमार के साथ फिल्म ‘ससुराल’ (1961), सुनील दत्त के साथ बेटी बेटे (1964) और शम्मी कपूर के साथ ‘प्यार किया तो डरना क्या’ (1963) जैसी फिल्मों में काम किया।

सरोजा देवी अभिनीत सभी फिल्मों में मुख्य अभिनेता के साथ जबरदस्त तालमेल के कारण वह नायकों की पसंदीदा बन गईं। उन्होंने सिर्फ एमजीआर के साथ ही नहीं बल्कि उस समय के अन्य प्रमुख अभिनेताओं के साथ भी काम किया। चाहे वे किसी भी भाषा के हों, जिसमें शिवाजी गणेशन, जेमिनी गणेशन, डॉ. राजकुमार और एन.टी. रामा राव (एनटीआर) शामिल थे।

भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को मान्यता देते हुए भारत सरकार ने सरोजा देवी को न केवल पद्मश्री (1969) और पद्म भूषण (1992) से सम्मानित किया बल्कि 2008 में भारत के 60वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान उन्हें ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ भी प्रदान किया।

उन्होंने कई राज्य पुरस्कार भी जीते, जिनमें 2009 में तमिलनाडु सरकार द्वारा दिया गया प्रतिष्ठित कलैमामणि लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार भी शामिल है।

सरोजा देवी ने तमिल टेलीविजन चैनल को दिए साक्षात्कार में बताया था कि किस तरह सभी पीढ़ियों के सितारों ने हमेशा उन पर प्यार बरसाया है और उन्होंने उनके साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो।

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अभिनेत्री खुशबू ने सरोजा देवी के निधन पर दुख जताया और बताया कि उन दोनों के अच्छे संबंध थे।

उन्होंने कहा, ‘‘उनसे मिले बिना मेरी बेंगलुरु की यात्रा अधूरी रहती थी। और जब भी चेन्नई में होती, वो फोन करती थीं। उनकी बहुत याद आएगी। अम्मा, आपकी आत्मा को शांति मिले।’’

भाषा प्रीति प्रशांत

प्रशांत

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