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Monday, September 1, 2025

विशेष अदालतें स्थापित नहीं की गईं तो एनआईए-यूएपीए के आरोपियों को रिहा करना पड़ेगा: न्यायालय

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नयी दिल्ली, 18 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को विशेष कानूनों के तहत दर्ज मामलों के लिए अदालतें स्थापित नहीं करने के लिए केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने चिंता जताते हुए कहा कि इससे आरोपियों को जमानत देने के लिए अदालतें मजबूर होंगी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यदि सरकार एनआईए अधिनियम और अन्य विशेष कानूनों के तहत त्वरित सुनवाई के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे वाली अदालतें स्थापित करने में विफल रहती है, तो अदालत को अनिवार्य रूप से आरोपियों को जमानत पर रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा क्योंकि समयबद्ध तरीके से मुकदमे को पूरा करने के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है।

पीठ ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजकुमार भास्कर ठाकरे से कहा कि मौजूदा अदालतों को विशेष अदालतें नामित करना उच्च न्यायालय को उन्हें पुनः ‘रीलेबल’ करने के लिए ‘मजबूर’ करने के समान है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस बात से संतुष्ट हैं कि एनआईए अधिनियम और अन्य विशेष कानूनों के तहत मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने के लिए कोई प्रभावी या प्रत्यक्ष कदम नहीं उठाए गए हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि विशेष अदालतों की स्थापना के लिए वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों, कर्मचारियों, अदालत कक्ष और बुनियादी सुविधाओं के लिए पदों का सृजन करना होगा।’’

पीठ ने कहा कि उसके आदेशों के विपरीत, यह धारणा बनाई गई कि एनआईए अधिनियम के तहत मौजूदा अदालत को विशेष अदालत के रूप में नामित करना निर्देशों का पर्याप्त अनुपालन होगा।

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पीठ ने कहा कि अदालतों को विशेष अदालतों के रूप में नामित करना या एनआईए अधिनियम और अन्य विशेष कानूनों के तहत मौजूदा अदालतों को विशेष सुनवाई सौंपना, जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों और वृद्ध कैदियों, समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों की कीमत पर होगा।

पीठ ने प्रतिवादियों (केन्द्र और महाराष्ट्र सरकार) द्वारा दी गई दलील को सिरे से खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि अदालतों को विशेष अदालतों के रूप में नामित करना या एनआईए अधिनियम और अन्य विशेष कानूनों के तहत मौजूदा अदालतों को विशेष मामले सौंपना, एक तरह से जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों, वृद्धों, समाज में हाशिए पर रहने वाले वर्गों के कैदियों की कीमत पर किया जाएगा।

शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के नक्सल समर्थक कैलाश रामचंदानी की जमानत याचिका पर यह आदेश पारित किया जिसपर 2019 में एक आईईडी विस्फोट में राज्य पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया टीम के 15 पुलिसकर्मियों के मारे जाने के बाद मामला दर्ज किया गया था।

शीर्ष अदालत ने 17 मार्च के अपने पहले के आदेश को वापस ले लिया, जिसमें मुकदमे के निपटारे में अत्यधिक देरी के आधार पर दायर उसकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि केंद्र और राज्य सरकारें एनआईए मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत स्थापित करने में विफल रहती हैं, तो राहत के लिए उसकी याचिका पर अगली सुनवाई पर विचार किया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा, ‘‘केंद्र और राज्य सरकार को अदालत के अनुसार निर्णय लेने का अंतिम अवसर दिया जाता है।’’ पीठ ने इस मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।

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ठाकरे ने पहले दलील दी थी कि उच्च न्यायालय की मंजूरी से एनआईए मामलों के लिए मुंबई में एक विशेष अदालत नामित की गई है।

ठाकरे ने पहले दलील दी थी कि उच्च न्यायालय की मंज़ूरी से मुंबई में एनआईए मामलों के लिए एक विशेष अदालत नामित की गई थी। इस बयान से पीठ नाराज हो गई और उसने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से उन मामलों के बारे में सवाल किया जिनकी सुनवाई अदालत को विशेष एनआईए अदालत नामित किये जाने से पहले से न्यायाधीश कर रहे थे।

पीठ ने कहा, ‘‘यह अन्य वादियों की कीमत पर क्यों किया जाना चाहिए? अगर आप नए कानून ला रहे हैं, तो आपको पर्याप्त बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा और उच्च न्यायिक सेवाओं में पदों को मंजूरी देनी होगी।’’

पीठ ने न्यायाधिकरणों की स्थिति पर चिंता जताई, जहां सरकार ने रिकॉर्ड रखने के लिए ‘आउटसोर्स’ कर्मचारियों को नियुक्त किया है।

पीठ ने पूछा, ‘‘क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि सेवा प्रदाताओं द्वारा नियुक्त ये कर्मचारी हजारों करोड़ रुपये के मामलों का रिकॉर्ड रख रहे हैं? अगर कुछ हुआ, तो कौन जिम्मेदार होगा? क्या कोई जवाबदेही होगी?’’

अदालत ने कहा कि वह प्रतिकूल आदेश पारित करने से खुद को रोक रही है, लेकिन ‘अगर मजबूर किया गया’ तो वह कड़ी सख्ती करेगी और न्यायाधिकरणों में भी स्थिति का दस्तावेजीकरण करेगी।

शीर्ष अदालत ने 23 मई को एनआईए मामलों के लिए समर्पित अदालतों की आवश्यकता पर जोर दिया था।

इसने कहा कि एनआईए को सौंपे गए मामले जघन्य प्रकृति के थे, जिनका प्रभाव पूरे भारत में था और ऐसे प्रत्येक मामले में सैकड़ों गवाह थे और मुकदमा अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ पाया, क्योंकि अदालत के पीठासीन अधिकारी अन्य मामलों में व्यस्त थे।

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शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि एकमात्र उचित उपाय विशेष अदालतों का गठन करना है, जहां केवल विशेष कानूनों से संबंधित मामलों की सुनवाई दिन-प्रतिदिन की जा सके।

भाषा संतोष रंजन

रंजन

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