प्रीपेड स्मार्ट मीटर की बाध्यता: केंद्र, राज्य और उपभोक्ता का दृष्टिकोण
भारतीय विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 47(1) और (5) के अनुसार उपभोक्ताओं को पोस्टपेड और प्रीपेड दोनों भुगतान विकल्प उपलब्ध कराए जाने चाहिए। अतः अधिनियम के अंतर्गत जारी नियम एवं विनियम उपभोक्ताओं को केवल प्रीपेड मोड में बिजली लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।
धारा 55(1) एवं 177(2)(ग) के तहत प्राधिकरण को मीटर स्थापित करने एवं संचालन से संबंधित नियम बनाने का अधिकार है, परंतु ये नियम अधिनियम के अनुरूप होने चाहिए। चूंकि अधिनियम उपभोक्ताओं को दोनों विकल्प देता है, केवल प्रीपेड मोड को अनिवार्य बनाना अधिनियम के विरोधाभासी होगा।
मीटरिंग विनियम (संशोधित) 2019 के खंड 4(1)(ख) के अनुसार, मीटरों में प्रीपेड सुविधा अनिवार्य है, पर प्रीपेड मोड में मीटर लगाने की बाध्यता नहीं है। इसी प्रकार, इलेक्ट्रिसिटी कंज़्यूमर्स राइट्स रूल्स, 2020 में भी प्रीपेड फीचर को अनिवार्य किया गया है, लेकिन प्रीपेड मोड में इंस्टॉल करना अनिवार्य नहीं है।
इसलिए, संबंधित प्राधिकरणों को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या अनिवार्यता केवल प्रीपेड फीचर के लिए है या प्रीपेड मोड में मीटर इंस्टॉल करने के लिए भी।
सरकार से निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रश्न हैं:
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क्या अगस्त 2021 में भारत सरकार द्वारा सभी उपभोक्ताओं के यहाँ प्रीपेड मोड में मीटर स्थापित करने की अधिसूचना भारतीय विद्युत अधिनियम, 2003 के अनुरूप और न्यायसंगत है?
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जब विद्युत अधिनियम 2003 उपभोक्ताओं को प्रीपेड विकल्प चुनने का अधिकार देता है, तो सभी स्मार्ट मीटरों में प्रीपेड फीचर को अनिवार्य करना कहाँ तक उचित है? क्या प्रीपेड फीचर वाले स्मार्ट मीटर केवल उन्हीं उपभोक्ताओं के यहाँ लगना चाहिए जो इस विकल्प का चयन करते हैं?
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क्या केंद्र सरकार का राज्यों को निर्देश देना कि वे सभी उपभोक्ताओं के यहाँ प्रीपेड मोड में स्मार्ट मीटर लगाएं (जो मूल अधिनियम के विरुद्ध है), उचित है? इससे राज्यों/डिस्कॉम्स/उपभोक्ताओं पर ₹10,000 से ₹12,000 करोड़ का अतिरिक्त आर्थिक बोझ आएगा। क्या केवल ₹5,000–₹6,000 करोड़ की आरडीएसएस ग्रांट के लिए यह खर्च उचित ठहराया जा सकता है?
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क्या राज्य सरकारों/डिस्कॉम अधिकारियों ने इस भारी खर्च के अनुपात में लाभ का विश्लेषण किया है? या यह केवल एक दावे पर आधारित है? क्या कोई सक्षम अधिकारी इसकी गारंटी दे सकता है?