नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में भारत कार्बन कर से छूट हासिल करने में असमर्थ रहा। इससे ब्रिटेन में भारत के कार्बन का अधिक उत्सर्जन करने वाले उत्पादों के निर्यात पर असर पड़ेगा। आर्थिक शोध संस्थान जीटीआरई ने शुक्रवार को यह बात कही।
ब्रिटेन सरकार ने 2027 से अपने कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) को लागू करने का दिसंबर 2023 में फैसला किया था।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि सीबीएएम (कार्बन सीमा समायोजन तंत्र) पर छूट या छूट का प्रावधान न होने से भारत ने कार्बन का अधिक उत्सर्जन करने वाले उत्पादों के निर्यात में छूट हासिल करने का एक महत्वपूर्ण अवसर खो दिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘ जनवरी 2027 से ब्रिटेन, भारतीय इस्पात एवं एल्युमीनियम पर कार्बन कर लगा सकता है, जबकि हम ब्रिटेन के सामानों को शुल्क-मुक्त पहुंच प्रदान करते हैं। यह एक गंभीर असमानता है। यूरोपीय संघ के साथ भारत के व्यापार समझौते में भी यही व्यवहार अपेक्षित है।’’
जीटीआरआई ने मई में कहा था कि ब्रिटेन के 2027 से लोहा व इस्पात, एल्युमीनियम, उर्वरक और सीमेंट जैसे उत्पादों पर कार्बन कर लगाने के निर्णय के कारण भारत से ब्रिटेन को होने वाले 77.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निर्यात पर असर पड़ सकता है।
यूरोपीय संघ (ईयू) के बाद, ब्रिटेन सीबीएएम लागू करने वाली दूसरी अर्थव्यवस्था होगी। यह कर शुरुआत में लोहा, इस्पात, एल्युमीनियम, उर्वरक, हाइड्रोजन, सिरेमिक, कांच और सीमेंट जैसे क्षेत्रों पर लगाया जाएगा। यह कर 14-24 प्रतिशत तक हो सकता है।
भारत ने पहले इस कर पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी और इसे व्यापार बाधा बताया था।
एक अधिकारी ने कहा कि अगर भविष्य में कोई कदम घरेलू निर्यात को प्रभावित करता है, तो भारत ने जवाबी कार्रवाई करने या रियायतों को पुनर्संतुलित करने का अपना अधिकार सुरक्षित रखा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री केअर स्टार्मर की उपस्थिति में मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर लंदन में बृहस्पतिवार को हस्ताक्षर किए गए।
भाषा निहारिका रमण
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