बोलपुर (प.बंगाल), 28 जुलाई (भाषा) पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मतदाता सूची पुनरीक्षण के नाम पर लोगों को परेशान न किया जाए।
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)और निर्वाचन आयोग पर मतदाता सूची में सुधार की आड़ में बांग्ला भाषी प्रवासियों, अल्पसंख्यकों, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और गरीबों को निशाना बनाकर वैध मतदाताओं को हटाने का प्रयास करने का आरोप लगाया।
बनर्जी ने बीरभूम जिले के बोलपुर स्थित गीतांजलि स्टेडियम में प्रशासनिक समीक्षा बैठक को संबोधित करते हुए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर बढ़ते विवाद के बीच निर्वाचन आयोग पर हमला बोला। यह प्रक्रिया पड़ोसी राज्य बिहार में पहले से ही चल रही है, जहां इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं।
बनर्जी ने बैठक में बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) से कहा, ‘‘ निर्वाचन आयोग चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद ही कार्यभार संभालता है। तब तक, और उसके बाद भी, प्रशासनिक जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही रहेगी। आप राज्य सरकार के कर्मचारी हैं। किसी भी व्यक्ति को बेवजह परेशान न करें।’’
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि लंबे समय से मतदाता रहे किसी भी व्यक्ति का नाम मनमाने ढंग से मतदाता सूची से न हटाया जाए। उन्होंने कहा, ‘‘मान लीजिए कोई लड़का चार दिनों की छुट्टी पर जाता है, तो क्या आप उसका नाम हटा देंगे? क्या यह उचित है? इस राज्य में ऐसे लोग हैं, जो वर्षों से मतदाता हैं। सिर्फ इसलिए कि कोई कुछ दिनों के लिए अनुपस्थित है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप उसका नाम काट दें।’’
मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि बिहार में जारी प्रक्रिया पश्चिम बंगाल में भी दोहरायी जा सकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह बांग्ला भाषी लोगों और अन्य जिन्हें ‘अवांछनीय’ माना जाता है,को बाहर करने के लिए एक ‘‘जानबूझकर, राजनीति से प्रेरित कार्रवाई’’ है।
बनर्जी ने कहा, ‘‘सिर्फ धार्मिक अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि गरीब और पिछड़े वर्ग के लोग भी उनके (भाजपा) निशाने पर हैं। हमें सभी उत्पीड़ित बंगाली प्रवासियों के साथ खड़ा होना चाहिए।’’
उन्होंने घोषणा की कि उत्पीड़न की वजह से दूसरे राज्यों से लौट कर आने वाले बंगाली प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिए एक राज्य-संचालित योजना बनाई गई है।
बनर्जी ने कहा, ‘‘योजना में सुरक्षित वापस लौटने में ऐसे लोगों की मदद करने, राशन और जॉब कार्ड जारी करने तथा जिनके पास रहने की जगह नहीं है, उन्हें अस्थायी आश्रय प्रदान करने के प्रावधान शामिल होने चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘राज्य के बाहर नौकरी पाने के लिए एजेंटों या दलालों पर निर्भर रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। जब उन्हें दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है, तो ये एजेंट कहीं नजर नहीं आते।’’
मुख्यमंत्री के मुताबिक, बंगाल के लगभग 22 लाख लोग वर्तमान में अन्य राज्यों में काम कर रहे हैं।
उन्होंने तृणमूल के राज्यसभा सदस्य और राज्य के प्रवासी श्रमिक प्रकोष्ठ प्रमुख समीरुल इस्लाम को श्रमिकों की वापसी को देखने का निर्देश देते हुए कहा, ‘‘ उन सभी को अभी वापस लाएं।’’
बनर्जी ने मुख्य सचिव मनोज पंत को श्रम मंत्री मलय घटक के साथ इस मामले में समन्वय स्थापित करने को भी कहा।
उन्होंने कोविड महामारी के दौरान श्रमिकों की वापसी की पहल को याद करते हुए कहा, ‘‘ उस समय हम अपने लोगों के साथ खड़े थे। आज हम देख रहे हैं कि हमारे कार्यकर्ताओं को बांग्लादेशी बताकर हिरासत शिविरों में भेजा जा रहा है। ऐसा नहीं चल सकता।’’
उनकी टिप्पणी गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान जैसे भाजपा शासित राज्यों में बांग्ला भाषी प्रवासियों के उत्पीड़न और हिरासत में लिए जाने के आरोपों की पृष्ठभूमि में आई है।
इस बीच, मुख्यमंत्री ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण के संबंध में आयोजित किए जा रहे बीएलओ प्रशिक्षण सत्रों के बारे में नौकरशाही की ओर से संवाद की कमी पर निराशा व्यक्त की।
मुख्यमंत्री ने बैठक में मौजूद अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा, ‘‘मुझे दिल्ली में प्रशिक्षण के बारे में सूचित नहीं किया गया था। बंगाल से लगभग 1,000 राज्य सरकार के अधिकारियों को प्रशिक्षण के लिए वहां भेजा गया था। न तो मुझे और न ही मुख्य सचिव को कुछ बताया गया। जिलाधिकारियों को अपनी आंख और कान खुले रखने चाहिए। हमें सूचित किया जाना चाहिए था। यह अस्वीकार्य है।’’
मतदाता सूची के मुद्दे के अलावा, बनर्जी ने प्रशासनिक बैठक के दौरान राज्य द्वारा संचालित विभिन्न कल्याणकारी और विकास योजनाओं की प्रगति की भी समीक्षा की।
भाषा धीरज दिलीप
दिलीप