स्वस्थ आहार लेने वाले बुजुर्गों को बीमारियां भी धीमी गति से होती हैं : अध्ययन

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(एड्रियन कार्लबेलो कैस्ला एवं अमाया काल्डेरोन-लारैनागा, कैरोलिन्स्का इन्स्टीट्यूट एवं डेविड अब्बाद गोमेज, हॉस्पिटल डेल मार रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बार्सीलोना)

स्टॉकहोम/बार्सिलोना, 29 जुलाई (द कन्वरसेशन) कल्पना कीजिए कि 70 वर्षीय दो व्यक्ति हैं, दोनों सक्रिय हैं, स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत करते हैं और जीवन का आनंद लेते हैं। लेकिन अगले 15 वर्षों में, एक व्यक्ति को हृदय रोग, मधुमेह और अवसाद जैसी दो-तीन बीमारियां हो जाती हैं, जबकि दूसरा व्यक्ति अपेक्षाकृत स्वस्थ रहता है। ऐसा क्यों होता है?

स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट के एजिंग रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि इसका एक महत्वपूर्ण कारण आहार हो सकता है।

इस दीर्घकालिक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2,400 से अधिक बुजुर्ग स्वीडिश नागरिकों के स्वास्थ्य पर 15 वर्षों तक ध्यान रखा। उन्होंने पाया कि जो लोग निरंतर रूप से स्वस्थ आहार लेते हैं, उनमें दीर्घकालिक बीमारियां धीमी गति से विकसित होती हैं, जबकि प्रसंस्कृत मांस, परिष्कृत अनाज और शर्करा-युक्त पेय जैसे असंयमित आहार लेने वाले लोगों में बीमारियां अधिक तेजी से पनपती हैं।

यह निष्कर्ष इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि एक साथ कई बीमारियों का होना बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। इससे विकलांगता, अस्पताल में भर्ती होने और समय से पहले मृत्यु का खतरा बढ़ता है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर भी अत्यधिक बोझ पड़ता है।

अध्ययन में चार प्रमुख आहार प्रवृत्तियों की जांच की गई जो क्रमश: माइंड डाइट (मस्तिष्क स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उपयोगी), ऑल्टरनेटिव हेल्दी ईटिंग इंडेक्स (कम बीमारी के जोखिम से जुड़े खाद्य पदार्थों पर आधारित), भूमध्यसागरीय आहार और एक प्रो-इंफ्लेमेटरी डाइट यानी अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से भरपूर आहार हैं।

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पहली तीन आहार प्रवृत्ति को बीमारी की धीमी वृद्धि से जोड़ा गया, जबकि चौथे को बीमारी के तेज विकास से संबद्ध किया गया।

अध्ययन में हृदय रोग और अवसाद, डिमेंशिया जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर आहार का सबसे मजबूत प्रभाव दिखा। हालांकि, हड्डी और मांसपेशियों की बीमारियों जैसे गठिया या ऑस्टियोपोरोसिस में आहार का सीधा प्रभाव स्पष्ट नहीं था।

यह भी देखा गया कि महिलाओं और 78 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों में आहार के लाभ अधिक स्पष्ट रूप से सामने आए। यह संकेत देता है कि उम्र चाहे जितनी भी हो, स्वस्थ आहार का असर हमेशा फायदेमंद होता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि स्वस्थ आहार जलन तथा पेट संबंधी कुछ समस्याओं को नियंत्रित कर सकता है। सब्जियाँ, फल, साबुत अनाज और स्वास्थ्य के लिए उपयोगी वसा इस जलन को कम करते हैं, जबकि अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ इसे बढ़ाते हैं।

स्वस्थ आहार प्रतिरक्षा प्रणाली, मांसपेशियों की ताकत और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी मदद करती है जिससे वृद्धावस्था की समस्याएं थोड़ी कम होती हैं।

शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन को ‘‘अपने तरह का सबसे दीर्घकालिक और व्यापक’’ अध्ययन बताया है। उन्होंने 60 से अधिक दीर्घकालिक बीमारियों पर ध्यान केंद्रित कर विभिन्न विश्लेषण विधियों से अपने निष्कर्षों को परखा।

हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह भी स्वीकार किया कि आहार ही सब कुछ नहीं है — व्यायाम, सामाजिक संबंध और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भी वृद्धावस्था को प्रभावित करते हैं। लेकिन उनका मानना है कि आहार की गुणवत्ता को सुधारना सबसे सरल और सुलभ तरीकों में से एक है जिससे बुजुर्ग लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

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बुजुर्गों को क्या खाना चाहिए?

शोधकर्ताओं का संदेश स्पष्ट है कि खूब सब्जियाँ, फल, दालें, मेवे और साबुत अनाज खाएं, रेपसीड तेल और मछली जैसी स्वास्थ्य के लिए उपयोगी वसा को प्राथमिकता दे, लाल मांस, प्रसंस्कृत मांस, शक्कर युक्त पेय और ठोस वसा का सेवन सीमित करें।

ये वे बुनियादी आहार हैं जिनके प्रभावों पर अध्ययन में गौर किया गया और जो वृद्धावस्था में बीमारी की धीमी वृद्धि, बेहतर मानसिक स्वास्थ्य और लंबी उम्र से जुड़े पाए गए।

कुल मिला कर अध्ययन का निष्कर्ष है : बुज़ुर्ग होना अवश्यंभावी है, लेकिन स्वस्थ रहना विकल्प है। आहार में छोटे-छोटे बदलाव भी जीवन की दिशा और गुणवत्ता को बदल सकते हैं — चाहे उम्र कुछ भी हो।

द कन्वरसेशन

मनीषा गोला

गोला

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