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Monday, September 1, 2025

निठारी कांड: न्यायालय ने कोली, पंढेर को बरी करने के खिलाफ सीबीआई, अन्य की याचिकाएं खारिज कीं

Newsनिठारी कांड: न्यायालय ने कोली, पंढेर को बरी करने के खिलाफ सीबीआई, अन्य की याचिकाएं खारिज कीं

नयी दिल्ली, 30 जुलाई (भाषा) सीबीआई और 2006 के निठारी कांड के पीड़ितों के परिवारों को बड़ा झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को जांच एजेंसी और कुछ परिवार के सदस्यों की 14 याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें इस जघन्य हत्याकांड में सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को बरी किए जाने को चुनौती दी गई थी।

राष्ट्रीय राजधानी से सटे नोएडा के निठारी में 29 दिसंबर, 2006 को पंढेर के घर के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिलने के बाद यह हत्याएं प्रकाश में आईं।

पंढेर के घर के आस-पास के इलाके में और खुदाई एवं नालियों की तलाशी से और भी कंकाल मिले। इनमें से ज़्यादातर अवशेष उस इलाके से लापता हुए गरीब बच्चों और बच्चियों के थे। 10 दिनों के अंदर, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मामला अपने हाथ में ले लिया और उसकी तलाशी में और भी अवशेष बरामद हुए।

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने बुधवार को 14 याचिकाएं खारिज कर दीं। 12 याचिकाएं सीबीआई की ओर से और दो अन्य पप्पू लाल और अनिल हलधर की ओर से दायर की गई थीं।

सीजेआई ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद कहा, ‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में कोई खामी नहीं है… (याचिकाएं) खारिज की जाती हैं।’

सुनवाई की शुरुआत में, प्रधान न्यायाधीश ने सीबीआई की ओर से पेश राजा बी ठाकरे और पीड़ितों के परिवार के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा से पूछा कि वे बताएं कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निष्कर्षों में क्या गलत और ‘खामी’ है।

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लूथरा और सीबीआई के वकील ने जब अपहृत बच्चों की खोपड़ियों और उनके सामान की बरामदगी का जिक्र किया तो प्रधान न्यायाधीश ने पूछा, ‘मुझे एक भी ऐसा फैसला दिखाइए जिसमें कहा गया हो कि पुलिस के समक्ष आरोपी का बयान दर्ज किए बिना कोई भी बरामदगी कानूनन जायज है।’

पीठ ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 का हवाला दिया और कहा कि आरोपियों की निशानदेही पर की गई बरामदगी और पुलिस के समक्ष दिए गए उनके बयान साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हो सकते हैं।

शीर्ष अदालत ने आरोपी के घर के पास नाले से बरामद सामग्री का भी उल्लेख किया।

न्यायालय ने कहा कि केवल उन बरामदगी को ही साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, जो केवल आरोपियों की पहुंच वाले स्थान से की गई हों, तथा जो मुख्य रूप से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामले में साक्ष्य के रूप में स्वीकार की जा सकती हैं।

लूथरा ने कहा कि 16 गरीब बच्चे लापता हो गए थे और पीड़ितों की खोपड़ियां और अन्य सामान नाले से बरामद किए गए थे।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए जाने के खिलाफ अपील में, आपको यह दिखाना होगा कि उच्च न्यायालय का फैसला गलत था।’

धारा 27 पुलिस हिरासत में आरोपी द्वारा दी गई सूचना के उस भाग को स्वीकार्य करने की अनुमति देती है, जिससे किसी प्रासंगिक तथ्य का पता चलता है, भले ही वह सूचना स्वीकारोक्ति के बराबर ही क्यों न हो।

प्रावधान के अनुसार, यदि कोई आरोपी ऐसी जानकारी प्रदान करता है जिससे पुलिस को अपराध से संबंधित कोई जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलती है, तो उस विशिष्ट जानकारी, तथा केवल उसी भाग को साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

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चार मई, 2024 को शीर्ष अदालत ने मामले में कोली को बरी करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की थी। इसने पीड़ितों में से एक के पिता पप्पू लाल द्वारा दायर अपील पर भी नोटिस जारी किया था।

लाल ने अपनी याचिका में उच्च न्यायालय के 16 अक्टूबर, 2023 के आदेश को चुनौती दी और केवल कोली को ही पक्षकार बनाया। कोली पंढेर का घरेलू सहायक था।

लाल के मामले में, पंढेर को सत्र न्यायालय ने बरी कर दिया था, जबकि कोली को 28 सितंबर, 2010 को मृत्युदंड सुनाया गया था। मामले की जांच सीबीआई ने की थी।

उच्च न्यायालय ने 16 अक्टूबर को कोली और पंढेर द्वारा दायर कई अपीलों पर फैसला सुनाया, जिन्हें निचली अदालत ने मृत्युदंड सुनाया था।

उच्च न्यायालय ने पंढेर और कोली को मौत की सज़ा के मामले में यह कहते हुए बरी कर दिया कि अभियोजन पक्ष उनके अपराध को ‘‘संदेह से परे’ साबित करने में विफल रहा और इसे एक ‘विफल’ जांच बताया।

इस फैसले ने बच्चों को निशाना बनाकर किए गए उस खौफनाक अपराध की यादें ताजा कर दीं, जो नोएडा में एक बंगले के पीछे कंकाल मिलने के बाद प्रकाश में आया था।

कोली को 12 मामलों में और पंढेर को दो मामलों में दी गई मौत की सजा को पलटते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि जांच ‘जिम्मेदार एजेंसियों द्वारा जनता के साथ विश्वासघात से कम नहीं है।’

पंढेर और कोली के खिलाफ 2007 में कुल 19 मामले दर्ज किए गए थे। सीबीआई ने सबूतों के अभाव में तीन मामलों में ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल कर दी थी। बाकी 16 मामलों में से तीन में कोली को पहले ही बरी कर दिया गया था और एक मामले में उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था।

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भाषा आशीष पवनेश

पवनेश

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