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Monday, September 1, 2025

मणिपुर में लोकटक झील पर पूर्वोत्तर का इकलौता तैरता स्कूल अस्तित्व के लिए कर रहा संघर्ष

Newsमणिपुर में लोकटक झील पर पूर्वोत्तर का इकलौता तैरता स्कूल अस्तित्व के लिए कर रहा संघर्ष

इंफाल, एक अगस्त (भाषा) मणिपुर की लोकटक झील पर मछुआरा समुदाय के बच्चों के लिए स्थापित किया गया पूर्वोत्तर भारत का पहला तैरता प्राथमिक विद्यालय आठ साल बाद अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।

मछुआरा समुदाय के पास अब इस स्कूल को चलाए रखने का कोई तरीका नहीं बचा है, जिसके कारण उन्होंने सरकारी मदद मांगी है।

‘लोकटक फ्लोटिंग एलीमेंट्री स्कूल’ की स्थापना 2017 में चम्पू खांगपोक के लंगोलसाबी लैकै में की गई थी, जो लगभग 330 निवासियों का एक तैरता हुआ गांव है।

यह स्कूल फुमदी नामक मोटे एवं तैरते जलीय वनस्पति के ऊपर बनाया गया था, जो लोकटक झील की एक खास पहचान हैं। ये तैरते हुए जैविक द्वीप झोपड़ियों और स्कूल दोनों का भार संभालते हैं। इन जैविक द्वीप की मोटाई लगभग चार से पांच फुट होती है।

‘ऑल लोकटक लेक एरियाज फिशरमेन यूनियन मणिपुर’ के सचिव राजेन ओइनम ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘यह एक कमरा वाला स्कूल है, जिसका आकार 24X15 फुट है और इसमें डेस्क और मेज जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। जब हमने इसे शुरू किया था तब काफी उम्मीदें थीं, लेकिन इस साल ही सात छात्र बीच में पढ़ाई छोड़ चुके हैं। वर्तमान में केवल 23 छात्र नामांकित हैं, जो दूसरी कक्षा तक के हैं। कक्षाएं सप्ताह में दो दिन सुबह आठ बजे से दोपहर 12 बजे तक चलती हैं।’’

उन्होंने बताया, ‘‘चम्पू खांगपोक ही नहीं, बल्कि दूरदराज की तैरती झोपड़ियों से भी बच्चे यहां पढ़ना-लिखना सीखने आते हैं। लेकिन जब से राज्य में जातीय हिंसा भड़की है, तब से हमारा ध्यान स्कूल से हटकर आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के राहत शिविर चलाने पर केंद्रित हो गया है।’’

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ओइनम ने बताया कि फुमदी पर बनी झोपड़ियों की एक अनोखी बात यह है कि ‘‘अक्सर तूफान और तेज हवाओं के कारण ये झोपड़ियां रातोंरात तीन किलोमीटर दूर तक बह जाती हैं। इससे बचने के लिए झोपड़ियों को बांस के खंभों से झील की सतह में गाड़कर स्थिर किया जाता है। स्कूल को भी रस्सियों से बांधकर रोका गया है ताकि वह बह न जाए।’’

स्कूल तक पहुंचना भी एक बड़ी चुनौती है।

ओइनम ने बताया, ‘‘बिष्णुपुर जिले के निंगथौखोंग प्रोजेक्ट गेट से पारंपरिक लकड़ी की नाव से लगभग डेढ़ घंटे का समय लगता है।

गांव वाले अपनी ओर से भरसक प्रयास कर रहे हैं, लेकिन स्कूल को अब तक आधिकारिक मान्यता नहीं मिली है।

ओइनम ने कहा, ‘‘हमने बिष्णुपुर जिले के अधिकारियों को कई आवेदन दिए हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है। अगर सरकार से मान्यता मिल जाए तो अवसंरचना और शिक्षकों के वेतन के लिए सहायता मिल सकती है। फिलहाल, बिष्णुपुर की ‘पीपल रिसोर्सेज डेवलपमेंट एसोसिएशन’ किताबें, स्टेशनरी और शिक्षकों के न्यूनतम वेतन का प्रबंध कर रही है।’’

भाषा

गोला सुरेश

सुरेश

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