नयी दिल्ली, दो अगस्त (भाषा) सरकार द्वारा गठित एक समिति ने चेतावनी दी है कि उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में अवैज्ञानिक खनन के कारण ढलान अस्थिर हो रहे हैं, गांवों और कृषि के सामने खतरा पैदा हो रहा है और संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में जल स्रोत बाधित हो रहे हैं।
तीस जुलाई को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपी गई “बागेश्वर जिले में सतत खनन प्रक्रियाओं का भूवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं सिफारिशें” रिपोर्ट में खनन के तौर-तरीकों में व्यापक सुधार और जोखिमों को कम करने के लिए कड़ी निगरानी का अनुरोध किया गया है।
बागेश्वर के आसपास के कई गांवों में भूस्खलन, घरों में दरारें, सूखते झरनों और फसलों को नुकसान की बढ़ती शिकायतों के बाद यह मूल्यांकन किया गया था।
स्थानीय निवासियों ने आरोप लगाया था कि जिले में पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों की परवाह किए बिना खनन किया जा रहा है, जिसके बाद अधिकरण ने विशेषज्ञों से मूल्यांकन कराने को कहा था।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, उत्तराखंड भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र, भूविज्ञान एवं खनन विभाग तथा भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के विशेषज्ञों वाली समिति ने बागेश्वर, कांडा और दुगनाकुरी तहसीलों में 61 खदानों की जांच की।
रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर खदानों की खड़ी कटाई की वजह से प्राकृतिक ढलानों का रूप बदल गया है।
टीम ने कई जगहों पर दरारें, जमीन धंसने और चट्टानों के खिसकने का निरीक्षण किया। इसने पाया कि खनन से निकला मलबा अकसर प्राकृतिक धाराओं में बेतरतीब ढंग से फेंक दिया जाता है, जिससे जल निकासी अवरुद्ध हो जाती है तथा जलभराव व ढलानों की दरारें और भी बदतर हो जाती हैं।
समिति के अनुसार, बागेश्वर भूकंपीय क्षेत्र पांच में आता है, जो देश के सबसे ज़्यादा भूकंप संभावित क्षेत्रों में से एक है। अगर ऐसे क्षेत्रों में खनन गतिविधियों को वैज्ञानिक रूप से नियंत्रित नहीं किया गया, तो भूमि अस्थिरता बढ़ सकती है।
समिति ने कहा कि जिले में अवैज्ञानिक खनन के कारण ढलान अस्थिर हो रहे हैं, गांवों और कृषि के सामने खतरा पैदा हो रहा है और संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में जल स्रोत बाधित हो रहे हैं।
भाषा जोहेब नेत्रपाल
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