नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह इस प्रश्न की पड़ताल करेगा कि क्या किसी राजनीतिक नेता को दोषसिद्धि और मतदान के लिए अयोग्य घोषित होने के आधार पर किसी राजनीतिक दल या संगठन का नेतृत्व करने के संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा सकता है या नहीं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने 2017 की जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दे को एक ‘दिलचस्प प्रश्न’ करार दिया।
उच्चतम न्यायालय के अनुसार, यह विचारणीय प्रश्न है कि क्या एक संवैधानिक अदालत यह निर्देश दे सकती है कि भले ही आपको संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अधिकार प्राप्त हो, फिर भी आप केवल इसलिए किसी राजनीतिक विचारधारा वाले संगठन का गठन नहीं कर सकते, क्योंकि आपको वोट देने का अधिकार नहीं है?
पीठ ने इस मुद्दे से संबंधित अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका को 19 नवंबर के लिए स्थगित कर दिया।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति को वैधानिक अधिकार के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया है, आप उसे उसके संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं कर सकते।’
उपाध्याय ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर कहा कि वोट देने से अयोग्य घोषित किया गया व्यक्ति उम्मीदवारों को पार्टी टिकट वितरित नहीं कर सकता।
उन्होंने कहा, ‘‘इस मुद्दे की पड़ताल की जानी चाहिए क्योंकि यह एक अस्पष्ट क्षेत्र है। विधि आयोग सहित कई आयोगों ने दोषी व्यक्ति को राजनीतिक दल का प्रमुख बनने की अनुमति नहीं देने की आवश्यकता पर बल दिया है।’’
पीठ ने इस मुद्दे को ‘विचारणीय’ बताया और कहा कि उसके मन में ‘कुछ विचार’ हैं, लेकिन इस पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है।
उपाध्याय ने कहा कि जो व्यक्ति वोट नहीं दे सकता या चुनाव नहीं लड़ सकता, वह जेल से भी राजनीतिक दल बना सकता है, और राजनीतिक दल पूरे देश पर शासन करते हैं।
न्यायमूर्ति कांत ने पूछा, ‘‘मान लीजिए कल संसद एक कानून बना देती है कि कोई भी व्यक्ति 80 वर्ष की आयु के बाद सार्वजनिक पद पर नहीं रहेगा, तो क्या आप उसे राजनीतिक दल का नेतृत्व करने से भी वंचित कर सकते हैं?’’
उपाध्याय ने दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को अयोग्य घोषित किए जाने की अवधि तक राजनीतिक दल बनाने और उसके पदाधिकारी बनने पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया है।
भाषा नोमान सुरेश
सुरेश