नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि पति-पत्नी के बीच तलाक के बाद परिवार के सदस्यों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने का कोई मतलब नहीं है।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने दहेज अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) सहित अन्य प्रावधानों के तहत दर्ज ससुर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए यह निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के मामलों में पूर्ण न्याय के लिए अनुच्छेद 142 (पूर्ण न्याय करने) के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, “जब तलाक हो जाता है और पक्षकार अपने जीवन में आगे बढ़ जाते हैं, तो परिवार के सदस्यों के खिलाफ सबूतों के अभाव में आपराधिक कार्यवाही जारी रखना किसी वैध उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है।”
आदेश के मुताबिक, “यह केवल कड़वाहट को बढ़ाता है और आपराधिक न्याय प्रणाली पर ऐसे विवादों का बोझ डालता है, जो अब अस्तित्वहीन हैं। कानून को इस तरह लागू किया जाना चाहिए कि वास्तविक शिकायतों के समाधान की आवश्यकता और उसके दुरुपयोग को रोकने के समान रूप से महत्वपूर्ण कर्तव्य के बीच संतुलन बना रहे।”
शीर्ष अदालत में दायर इस अपील के जरिये मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें व्यक्ति की पुत्रवधू द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि 2021 में तलाक के आदेश के बाद पति-पत्नी अलग अलग हो गए थे और मौजूदा समय में अपना-अपना जीवन जी रहे हैं।
भाषा जितेंद्र दिलीप
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