नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) संसद की एक समिति ने मंगलवार को कहा कि यूरोपीय संघ का ‘वन-कटाई निरोधक नियम’ एक तरह की गैर-शुल्क बाधा है और भारत को यह मामला विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) एवं अन्य व्यापार मंचों पर उठाना चाहिए।
यूरोपीय संघ के वन-कटाई निरोधक नियम (ईयूडीआर) के तहत किसी देश को यूरोपीय संघ में अपने उत्पाद भेजने के लिए यह सुनिश्चित करना होगा कि उन उत्पादों को तैयार करने की प्रक्रिया में जंगल की कटाई न हुई हो।
संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि ईयूडीआर के अनुपालन के लिए भारतीय उत्पादकों, विशेषकर रबर एवं कॉफी उत्पादकों, की व्यवस्था अभी कॉफी बोर्ड विकसित कर रहा है। इसमें तेजी लाई जानी चाहिए ताकि 2026 की बढ़ी हुई समयसीमा तक भारत इसके लिए पूरी तरह तैयार हो सके।
रिपोर्ट कहती है कि ईयूडीआर यूरोपीय बाजारों को लक्ष्य बनाने वाले रबर उत्पादकों एवं निर्यातकों पर कड़े नियम लागू करता है, जो गैर-शुल्क बाधा की श्रेणी में आता है। इसमें सरकार से यह मामला डब्ल्यूटीओ एवं अन्य व्यापार मंचों पर उठाने के लिए भी कहा गया है।
समिति ने मसालों के व्यापार पर मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के प्रभाव की भी समीक्षा की सिफारिश की है। एफटीए भारतीय मसाला किसानों और निर्यातकों के हितों की रक्षा करते हुए नए बाजारों तक पहुंच सुनिश्चित करने वाले होने चाहिए।
रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता जताई गई है कि आसियान देशों से मिर्च कम कीमत पर घोषित मूल्य के आधार पर सीमा शुल्क विभाग से मंजूर की जा रही है।
समिति ने भारत-श्रीलंका व्यापार समझौते के तहत आयात पर कड़ी निगरानी के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने और आयातकों को सरकारी लाइसेंस जारी करने की सिफारिश की, ताकि तीसरे देश इस समझौते का दुरुपयोग न कर सकें।
इस बीच, चमड़ा उद्योग पर आई एक अन्य संसदीय समिति रिपोर्ट कहती है कि यूरोपीय संघ एवं अमेरिका जैसे बड़े बाजारों के साथ एफटीए करने और जापान, ऑस्ट्रेलिया एवं यूएई जैसे देशों के साथ मौजूदा समझौतों का बेहतर उपयोग करने से भारत के चमड़ा निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
समिति ने ‘ब्रांड इंडिया’ की वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने, नए बाजार तलाशने और विशेषकर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को वित्तीय सहायता बढ़ाने की सिफारिश की।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
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