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Friday, August 29, 2025

SI भर्ती, किसान-युवा और अब जोजरी नदी का मुद्दा…क्या राजस्थान में फिर से पांव जमाने के लिए बैचेन हैं हनुमान?

Fast NewsSI भर्ती, किसान-युवा और अब जोजरी नदी का मुद्दा...क्या राजस्थान में फिर से पांव जमाने के लिए बैचेन हैं हनुमान?

राजस्थान की राजनीति में हनुमान बेनीवाल अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. नागौर के खींवसर से अपनी सियासी पारी शुरू करने वाले बेनीवाल ने राजस्थान से दिल्ली में देश की सबसे बड़ी पंचायत तक का सफर तय किया है. कभी भाजपा के मजबूत सहयोगी रहे तो कभी कांग्रेस का साथ लेकर चुनावी बिसात जमा ली. पिछले कुछ सालों में बेनीवाल की सियासत सहयोग से कब विरोध में बदल जाती है इसका पता लगाना आसान नहीं रहा है.

बेनीवाल के सियासी उदय और इतिहास में ना जाते हुए फिलहाल आज हम 2019 के घटनाक्रमों से ही समझने की कोशिश करेंगे कि किन सियासी डवलपमेंट के बाद बेनीवाल की जमीन राजस्थान में खत्म हो गई और 2024 के उपचुनावों में अपना गढ़ हाथ से चले जाने के बाद बेनीवाल कैसे अपनी राजनीतिक स्टाइल को बदलने की दिशा में आगे बढ़े हैं और फिर से सूबे में पांव जमाने का खाका बुन रहे हैं. आइए समझते हैं.

2024 में खींवसर ने दिया घाव!

दरअसल बेनीवाल ने साल 2019 का लोकसभा चुनाव में नागौर सीट से भाजपा के समर्थन से जीता था. एक समय था जब सूबे में तीसरे मोर्चे का आह्वान करने वाले बेनीवाल साल बीतने के साथ ही जो कुछ सहयोगी थे उनसे बिछड़ते चले गए. 2018 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी के 3 विधायक थे उनका गणित 2023 आते-आते महज एक पर रह गया.

इस बीच 2020 के किसान आंदोलन के दौरान ही बेनीवाल और भाजपा के रिश्तों में दरार आ गई और तीन कृषि कानूनों के विरोध में उन्होंने एनडीए से खुद को अलग कर लिया. अब आया राजस्थान में विधानसभा चुनावों का मौका तो खुद ने खींवसर से ताल ठोकी और सीट बचा ली लेकिन अगले ही साल सांसदी चुनाव में कांग्रेस के गठबंधन से जीते तो खींवसर में हुए उपचुनाव और इस बार 20 सालों से जिस सीट पर बेनीवाल परिवार की तूती बोलती थी वो हाथ से खिसक गई.

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2024 के उपचुनाव में BJP के रेवंतराम डांगा ने उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल को 13,870 वोटों से हराकर जीत हासिल की. यह हार बेनीवाल के लिए एक बड़ा झटका थी क्योंकि यह सीट 2008 से उनके या उनके परिवार के पास थी. बेनीवाल ने खुद इस हार को अपने 20 साल के राजनीतिक संघर्ष के लिए खतरे के रूप में देखा.

तीसरे मोर्चे का सपना हवा-हवाई…!

एक समय था जब 3 विधायकों वाली आरएलपी पार्टी वर्तमान में विधानसभा तक नहीं पहुंच पाई. तीसरा मोर्चा बनाने का सपना देखने वाले बेनीवाल के सामने अपनी पार्टी की राजनीतिक जमीन फिर से तैयार करने की चुनौती आन पड़ी. खींवसर उपचुनाव में बेनीवाल ने हार के बाद कई अलग-अलग तरीकों से पार्टी का आधार फिर खड़ा करने की कोशिश की जिसमें अलग-अलग मुद्दों पर आंदोलन, कैडर तैयार करना, कोई जातिगत मसले की सुरसुरी छेड़ना, राजस्थान में मारवाड़, राजधानी जैसे इलाकों में टिके रहना, दिल्ली तक विरोध दर्ज करवाना, भजनलाल सरकार की घेराबंदी आदि.

राजनीतिक जानकारों का कहना है भाजपा और कांग्रेस दोनों से अलग दिखने का परसेप्शन ही उनके वोटबैंक का एक आधार है और इसी रणनीति के तहत वे अपने राजनीतिक कदम उठाते हैं जैसे उनके सियासी करियर की शुरूआत में अगर गौर करेंगे तो पाएंगे कि वसुंधरा-गहलोत के गठजोड़ की सियासी चर्चा शुरू करने के पीछे बेनीवाल की अहम भूमिका रही है.

सक्रियता, सड़क, आंदोलन…और क्या?

राजस्थान में सालों से बीजेपी-कांग्रेस दोनों पार्टियों को घेरने वाले बेनीवाल के विरोध दर्ज करवाने के लिए खुला मैदान था जहां उन्होंने शुरूआत की एसआई भर्ती से की क्योंकि ये एक ऐसा मुद्दा था जो सीधा लाखों युवाओं से जुड़ा था और कटघरे में किसी को खड़ा करना हो तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर सवालिया निशान लगते हैं. हालांकि अभी भी बेनीवाल प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को मुखरता से नहीं घेरते हैं.

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ऐसे में अप्रैल में बेनीवाल ने इस भर्ती को लेकर बिगुल बजाया जिसके बाद रैली, धरना, घेराव कई एक्टिविटी कर चुके हैं और इस मुद्दे पर जहां कांग्रेस ने चतुराई चुप्पी साध रखी है तो बेनीवाल के लिए जगह बनाना आसान था. एसआई भर्ती में बेनीवाल ने कई युवा चेहरे हैं जिनको हमेशा फ्रंट पर रखा और इस आंदोलन को किसी ना किसी रूप में बनाए रखा. अब जब प्रदेश में फिर से पार्टी को जिंदा करना है तो किसी एक मुद्दे से काम चलने वाला नहीं था.

इसके बाद हाल में बेनीवाल ने औद्योगिक इकाइयों से होने वाले प्रदूषण, विशेष रूप से जल प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठाई है जहां बालोतरा जिले के कल्याणपुर क्षेत्र में औद्योगिक इकाइयों के केमिकल युक्त जल और अपशिष्ट के कारण पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के खिलाफ आंदोलन का समर्थन किया.

बेनीवाल ने बालोतरा जिले के डोली गांव से शुरू हुआ जोजरी बचाओ आंदोलन शुरू किया जहां उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि जब तक जोजरी नदी में बह रहे प्रदूषित पानी का स्थाई हल नहीं निकलेगा तब तक संघर्ष रुकने वाला नहीं है. हालांकि बेनीवाल ऐसे मुद्दों पर पहले भी बोलते रहे हैं लेकिन अब उनके सामने कैडर बनाना और युवाओं के अलावा आम जनमानस में भी सक्रियता बनाए रखना जैसी दोहरी चुनौती है. जोजरी का मुद्दा आम जनमानस से सीधा जुड़ा है.

क्या बदल लिया है राजनीतिक स्टाइल?

बता दें कि खींवसर की हार के बाद बेनीवाल ने अपनी छवि को एक आंदोलनकारी नेता के रूप में और तेज किया है. उन्होंने पर्यावरण, किसानों और स्थानीय विकास जैसे मुद्दों पर जन-आंदोलनों का समर्थन करके अपनी जमीनी पकड़ को बनाए रखने की कोशिश की है क्योंकि वर्तमान सरकार में विपक्ष के नाम पर कांग्रेस सड़कों से नदारद है ऐसे में बेनीवाल इस मौके को पुरजोर तरीके से भुनाना चाहते हैं.

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इसके साथ ही बेनीवाल ने अपनी बात को जनता तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल तेज किया है. बीते दिनों मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को लेकर एक विरोधी ट्रेंड चलवाने में आरएलपी कार्यकर्ताओं का ही जिक्र आया था और वह ट्रेंड राष्ट्रीय पटल पर छा गया था. वहीं खींवसर उपचुनाव में कांग्रेस के साथ इंडिया गठबंधन टूटने के बाद बेनीवाल ने अपनी पार्टी को स्वतंत्र रूप से मजबूत करने पर फिर से ध्यान दिया है जहां उनकी बयानबाजी, रणनीतिक दांवपेंच से लग रहा है कि वह RLP को एक स्वतंत्र क्षेत्रीय ताकत के रूप में स्थापित करने की दिशा में जोर लगा रहे हैं.

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