आज राजस्थान की अर्थव्यवस्था करीब 220 बिलियन डॉलर यानी 19 लाख करोड़ रुपए है। अब राजस्थान को 350 बिलियन डॉलर का मुकाम पाने का इंतजार है। आज राजस्थान की जो प्रगतिशील अर्थव्यवस्था है, उसकी नींव 1970 के दशक में रखी गई थी। वो वक्त, जब देश को आजाद हुए और राजस्थान के गठन को डेढ़ या 2 दशक ही बीते थे। उस समय प्रदेश में एक भी आधुनिक औद्योगिक इकाई स्थापित नहीं थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया चाहते थे कि कोटा को कानपुर की तर्ज पर विकसित किया जाए, क्योंकि वहां पानी की प्रचुरता थी।
कई कारोबारियों का राज्य को मिला साथ
राजस्थान जस्ता, तांबा, चांदी, जसपर, रॉक फास्फेट, फ्लोराइट, एसबेस्टस, तामड़ा, बैण्टोनाइट, अभ्रक, सोप स्टोन, टंगस्टन तथा जिप्सम उपलब्धता की दृष्टि से समृद्ध राज्य है। इसके चलते सुखाड़िया ने राजस्थान के प्रसिद्ध मारवाड़ी सेठों या यूं कहिए घरानों से बात की। उन्होंने बिड़ला, बजाज, मित्तल, रुइया, गोयनका, बांगड़, कानोड़िया, पीरामल, धूत, फिरोदिया, तोषनीवाल, खेतान, पोद्दार, सिंघानिया, केडिया, शोभासरिया, आबूसरिया और झुनझुनवाला से निरन्तर सम्पर्क बनाए रखा, नतीजा राज्य में छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां स्थापित होने लगी।
सुखाड़िया के प्रयासों से चित्तौड़गढ़ में बिड़ला समूह, निम्बाहेड़ा में जेके समूह के सीमेंट प्लांट, कांकरोली (राजसमंद) में जेके टायर, उदयपुर में नेवटिया-बजाज सीमेण्ट (अब जेके), भरतपुर में सिमको, भीलवाड़ा में एलएन झुनझुनवाला की राजस्थान स्पिनिंग और वीविंग मिल, भवानीमण्डी में बिड़ला टेक्सटाईल और किशनगढ़ में कानोड़िया समूह की आदित्य मिल्स स्थापित हुई।
चमड़ा उद्योग को मिला बढ़ावा
इसी दौर में चूरू, लाडनू, उदयपुर और बांसवाड़ा में स्पिनिंग मिल, बीकानेर में ऊनी मिल, टोंक में चमड़ा कारखाना, डबोक (उदयपुर) और चित्तौड़गढ़ में सीमेंट कारखाने लगे। सवाईमाधोपुर और चित्तौड़गढ़ में लगी सीमेण्ट फैक्ट्रियां एशिया में सबसे बड़ी फैक्ट्रियां थीं। सुखाड़िया के शासनकाल में सन् 1963 में ‘हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड’ (HCL) के द्वारा खेतड़ी (झुंझुनूं) में ताम्बा खनन कार्य शुरू हुआ और हजारों लोगों को रोजगार मिला।
उसी वर्ष डीडवाना (नागौर) में सोडियम सल्फेट का कारखाना स्थापित किया गया। सन् 1964 से सांभर साल्ट लिमिटेड शुरू हुआ। अगले ही साल 1965 में ‘हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड’ (HZL) ने देबारी (उदयपुर) में जिंक स्मेल्टर का कारखाना स्थापित किया गया। 1966 में डेगाना (नागौर) में डेगाना टंगस्टन परियोजना शुरू हुई। देश का उत्तम टंगस्टन इसी क्षेत्र में पाया जाता है। इसी तरह पलाना लिग्नाइट खान से ओपनकट विधि से कोयला खनन कर विद्युत परियोजना का प्रारम्भिक चरण भी 70 के दशक में ही शुरू हुआ। कोटा में ‘उर्वरक कारखाना’ स्थापित होने के अलावा राज्य में चीनी, यूरिया, वनस्पति घी, रेलवे वैगन, पानी के मीटर, नायलॉन धागा, सूती वस्त्र, सूती धागा, संगमरमर, ग्रेनाइट, खनन कार्य तथा मशीनी उपकरणों के कई कारखाने स्थापित हुए, जिनसे राज्य की अर्थव्यवस्था को गति मिली।
10 साल के भीतर ही 4 गुना तक बढ़ गईं फैक्ट्रियों की संख्या
आधुनिक राजस्थान के निर्माण के इस दौर में फैक्ट्रियों की संख्या 4 गुना तक पहुंच गईं। साल 1954 में राज्य में 324 फैक्ट्रियां थीं, जो सन् 1964 में 1238 तक हो गई। इसी बीच जयपुर में 28 मार्च, 1969 को ‘राजस्थान राज्य औद्योगिक एवं खनिज विकास निगम’ की स्थापना की गई, जिसके चलते 10 साल के भीतर ही इसी निगम में से कालान्तर (सन् 1979) में ‘राजस्थान राज्य खनिज विकास निगम लिमिटेड’ (RSMDC) और ‘राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं विनियोजन निगम लिमिटेड’ (RIICO) जैसी दो सरकारी कंपनियां अस्तित्व में आई। आज इसी ‘रीको’ के माध्यम से राजस्थान में सैकड़ों औद्योगिक क्षेत्र विकसित हुए हैं और हजारों कारखाने राजस्थान के विकास चक्र को गति दे रहे हैं।
इसी दौरान कुछ कम्पनियों की राज्य के नियंत्रण में भी किया गया। 1945 से कार्यरत ‘द बीकानेर इण्डस्ट्रीज कॉर्पोरेशन लिमिटेड, बीकानेर, को 1 जनवरी, 1956 को राज्य स्वामित्व में लिया गया और ‘द गंगानगर शुगर मिल्स लिमिटेड’ नाम दिया, जो आज स्प्रिंट उत्पादन में राज्य की मुख्य फैक्ट्री है। सन् 1961 में ‘राजस्थान लघु उद्योग निगम लिमिटेड’, सन् 1965 में ‘राजस्थान राज्य होटल निगम लिमिटेड’ और, सन् 1969 में ‘स्टेट एग्रो इण्डस्ट्रीज कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ की स्थापना की गई।