राजस्थान विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम से समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले का अध्याय हटाए जाने को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। इस फैसले के बाद शैक्षणिक जगत में हलचल मच गई है और राजनीतिक व सामाजिक संगठनों की ओर से भी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस कदम को BJP और RSS की साजिश बताते हुए कहा कि यह शिक्षा के साथ खिलवाड़ है और महात्मा फुले के योगदान को नकारने की कोशिश है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह के फैसले समाज सुधारकों की विरासत को कमजोर करने के लिए लिए जा रहे हैं।
वहीं, विश्वविद्यालय के छात्र, शोधार्थी और कई सामाजिक संगठन इस फैसले के विरोध में एकजुट हो गए हैं। उनका कहना है कि महात्मा ज्योतिबा फुले भारतीय समाज सुधार आंदोलन के प्रतीक हैं और उन्हें पाठ्यक्रम से हटाना शिक्षा जगत और समाज दोनों के साथ अन्याय है। आंदोलनरत छात्रों और संगठनों ने मांग की है कि पाठ्यक्रम में ज्योतिबा फुले को पुनः शामिल किया जाए। उनका कहना है कि अगर इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं हुआ, तो विरोध और तेज होगा।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X के जरिए कड़ा रुख अपनाया और BJP-RSS पर गंभीर आरोप लगाए। सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने तथा बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आजीवन कार्य करने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले जी के चैप्टर को राजस्थान यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस पाठ्यक्रम से हटाया जाना बेहद निंदनीय है एवं महात्मा फुले जी के विचारों से प्रेरणा लेने वालों के लिए बड़ा आघात है।
सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने तथा बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आजीवन कार्य करने वाले महात्मा ज्योतिबा फुले जी के चैप्टर को राजस्थान यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस पाठ्यक्रम से हटाया जाना बेहद निंदनीय है एवं महात्मा फुले जी के विचारों से प्रेरणा लेने वालों के लिए बड़ा आघात…
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) September 17, 2025
उन्होंने लिखा कि भाजपा और आरएसएस एक विचारधारा को पोषित करने की कोशिश में शिक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। यह इनकी भूल है कि वंचितों और शोषितों के कल्याण के लिए कार्य करने वाले महात्मा फुले जी के चैप्टर को हटाने से ये अपने एजेंडे में सफल हो जाएंगे। भाजपा सरकार को अविलंब इस चैप्टर को वापस सिलेबस में जोड़ना चाहिए। आज सभी पार्टियां एवं संगठन फुले दंपत्ति को अपना आदर्श स्वीकार कर चुके हैं। आरएसएस-बीजेपी को इस विषय पर जवाब देकर अपना विचार स्पष्ट करना चाहिए।
पाठ्यक्रम से हटा महात्मा फुले का अध्याय
राजस्थान विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग ने सत्र 2025-26 के लिए पाठ्यक्रम में बड़ा बदलाव करते हुए ‘इंडियन पॉलिटिकल थॉट’ विषय से समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले का अध्याय हटा दिया है। सत्र 2023-24 और 2024-25 में फुले का अध्याय पढ़ाया जा रहा था, जिसमें उनके सामाजिक सुधार आंदोलनों, सत्यशोधक समाज की स्थापना, जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष तथा सामाजिक असमानता को खत्म करने के प्रयासों को विस्तार से शामिल किया गया था। लेकिन इस बार के बदलाव से छात्र-छात्राएं इन महत्वपूर्ण पहलुओं से वंचित रह जाएंगे। इससे शैक्षणिक जगत के साथ ही सामाजिक संगठनों में भी असंतोष गहराता जा रहा है।
विश्वविद्यालय के शोध छात्रों ने कुलपति को ज्ञापन सौंपकर इस निर्णय पर आपत्ति जताई और अध्याय को पुनः शामिल करने की मांग की। छात्रों का कहना है कि फुले के विचार और योगदान को हटाना शिक्षा जगत के लिए एक गलत कदम है। इससे न केवल सामाजिक समानता और सुधार की दिशा में उनके प्रयासों को कमतर किया जा रहा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण सीख से वंचित किया जाएगा।
टीकाराम जूली बोले- यह कदम BJP और RSS की उस विचारधारा
विपक्षी दलों का कहना है कि यह कदम BJP और RSS की उस विचारधारा का हिस्सा है, जिसके तहत सामाजिक सुधारकों और प्रगतिशील विचारों को दबाने की कोशिश की जा रही है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने इस फैसले को निंदनीय और शर्मनाक बताया। उन्होंने कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले ने महिला शिक्षा को प्रोत्साहन देने में अपना जीवन खपा दिया, सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया और समाज सुधार के लिए त्याग किए। ऐसे महान समाजसेवक के अध्याय को पाठ्यक्रम से हटाना शिक्षा और समाज दोनों के साथ अन्याय है।
उन्होंने कहा कि भाजपा- आरएसएस विश्वविद्यालयों एवं अन्य शिक्षण संस्थानों में अपना एजेंडा चलाने का प्रयास कर रहे हैं, राजस्थान में इनकी किसी भी ऐसी कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। नई पीढ़ी को उनके कृतित्व, व्यक्तित्व के बारे में जानने का हक है। ज्योतिबा फुले हम सभी के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं, उनका अपमान नहीं होने दिया जाएगा।
जहां विपक्षी नेता और सामाजिक संगठन इसे निंदनीय बता रहे हैं, वहीं अब छात्र और शिक्षक भी खुलकर सामने आ गए हैं। हालांकि, इस पूरे मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। कुलपति और विभागाध्यक्ष भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। छात्रों और शिक्षकों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन को इस विवाद पर स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए और महात्मा ज्योतिबा फुले के अध्याय को पुनः शामिल करने पर विचार करना चाहिए।