राजस्थान का जलियांवाला बाग’ कहे जाने वाले मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग वर्षों से उठ रही हैं. सैकड़ों आदिवासियों के बलिदान का प्रतीक यह स्थल आज भी इस दर्जे का इंतजार कर रहा है. लेकिन राजस्थान की स्कूली किताबों में इस संबंध में गलत तथ्य जोड़ते हुए बताया गया है कि इस धाम को 3 साल पहले यानी साल 2022 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया. जबकि आदिवासी अंचल को आज भी स्मारक घोषित होने का इंतजार है. हालांकि साल 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां आए थे और उनसे आस भी लगाई गई कि वर्षों पुरानी यह मांगी पूरी होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब राजस्थान के स्कूलों में कक्षा-5 की EWS विषय में “हमारे प्रेरक” चैप्टर जोड़ा गया है. इस चैप्टर में गोविंद गिरी की प्रेरणादायक कहानियां शामिल हैं. इसमें 17 नवंबर 1913 के दिन मानगढ़ में हुए हत्याकांड को भी शामिल किया गया है. साथ ही अंत में चैप्टर के मुख्य बिंदु लिखते हुए बताया गया कि राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा (2022)- मानगढ़ धाम को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया.
1 नवंबर 2022 को पीएम मोदी ने दौरा किया, लेकिन घोषित नहीं किया स्मारक
दरअसल, 1 नवंबर 2022 को पीएम मोदी के दौरे से पहले यह उम्मीद जताई जा रही थी कि ऐतिहासिक मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. प्रधानमंत्री लगभग दस साल बाद मानगढ़ धाम पहुंचे और यहां उन्होंने 1500 आदिवासियों की शहीद स्थली को नमन कर आदिवासियों के बलिदान और संघर्ष को याद भी किया. लेकिन आदिवासियों को एक बार फिर बड़ी मायूसी हाथ लगी.
बीजेपी सांसद तो खुद सदन में मांग उठा रहे
इसी साल लोकसभा सत्र में मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग डॉ. मन्नालाल रावत ने भी उठाई थी. उन्होंने कहा था कि स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1908 से 1913 के दौरान राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश की सीमा पर मानगढ़ आंदोलन हुआ था. यह उस वक्त औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन था. यहां जो आदिवासी सनातनी भक्त हुए है. उनकी शहादत की गाथा पूरे विश्व के सामने नहीं आ पाई है. जब बीजेपी सांसद सदन में खड़े होकर मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग उठा रहे हैं तो 2022 में स्मारक घोषित होने का तथ्य क्यों किताब में जोड़ा गया?
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