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Thursday, October 30, 2025

NSUI की तरह राजस्थान कांग्रेस को वैचारिक संघर्ष से परहेज क्यों? 2028 के लिए अभी से गुटबाजी में उलझी है कांग्रेस

OP-EDNSUI की तरह राजस्थान कांग्रेस को वैचारिक संघर्ष से परहेज क्यों? 2028 के लिए अभी से गुटबाजी में उलझी है कांग्रेस

दो दिन पहले, 30 सितंबर की शाम NSUI के कार्यकर्ताओं ने RSS के कार्यक्रम का विरोध किया तो उनके घायल होने और हॉस्पिटल में भर्ती होने की तस्वीरें भी सामने आई. इस मामले को वैचारिक संघर्ष के तौर पर देखा गया, लेकिन यह संघर्ष उसके मातृ संगठन यानि कांग्रेस में नजर नहीं आता. राजस्थान में तमाम मुद्दों के बीच बीजेपी के खिलाफ माहौल तैयार करने की बजाय कांग्रेस के दिग्गज सोशल मीडिया पर धड़ल्ले एक्टिव हैं.

यह बात राजनीतिक चर्चा का विषय है कि NSUI का पोस्टर फाड़ना सही था या गलत. लेकिन सोचकर देखिए, जब NSUI के साथ ऐसा हुआ तो कांग्रेस की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए थी? जब ABVP या संघ के साथ बंगाल या केरल में घटनाएं हुई तो बीजेपी समेत तमाम दक्षिणपंथी संगठनों ने पिछले 10 वर्षों के दौरान देशभर में जमकर विरोध- प्रदर्शन किए और होना भी चाहिए, तभी कैडर आधारित पार्टी जिंदा रहती है. लेकिन मृत विपक्ष के तौर पर काम कर रही

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राजस्थान कांग्रेस को सोचना होगा कि हॉस्पिटल में भर्ती NSUI कार्यकर्ताओं की आवाज सिर्फ सोशल मीडिया पर उठाने से क्या होगा? क्या प्रदेशभर में सांकेतिक प्रदर्शन करके कांग्रेस को समर्थन नहीं देना था. ना राजस्थान और ना देश के किसी कोने में, ऐसे प्रदर्शन की स्थिति दिखी.

राजस्थान में मुद्दों की भरमार भी कांग्रेस में जान नहीं फूंक पा रहे

झालावाड़ स्कूल हादसा हो, समरावता हिंसा का मामला हो, कपासन में सूरज माली की पिटाई या डूंगरी बांध के चलते विस्थापन का मुद्दा, प्रदेश में तमाम मुद्दों की गुंजाइश है. हनुमान बेनीवाल और नरेश मीणा जैसे नेता इन मुद्दों को जमकर भुना रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के नेता 2028 के ताज को अपने सिर पर सजाने के लिए गुटबाजी के ही रथ में सवाल है.

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जबकि कांग्रेस का छात्र संगठन NSUI, राजस्थान में अक्सर ही सीमित आंदोलन तक सक्रिय रहता था. लेकिन हाल के कुछ महीनों में एनएसयूआई ने संगठन को मजबूत किया और आंदोलन का झंडा भी बुलंद किया. प्रदेश अध्यक्ष गोविंद डोटासरा कह रहे हैं कि NSUI कार्यकर्ताओं को जब RSS के कार्यकर्ताओं ने पीटा तो दौरान पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रही. लेकिन क्या कांग्रेस भी मूकदर्शक नहीं बनी हुई? अपने कार्यकर्ताओं के लिए सड़क पर उतरने की बजाय गहलोत महज घटनाक्रम की निंदा तक सीमित रहे. यही हाल सचिन पायलट का भी है.

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सेवादल कहां है……?

प्रदेश हो या राष्ट्रीय स्तर की बात, कांग्रेस का मुख्य संगठन वहां भी प्रदर्शन को विरोध-प्रदर्शन को जमीन पर उतार पाने में नाकाम रहा है. राहुल गांधी के साल 2019 में अध्यक्षीय भाषण को याद किया जाना चाहिए, जब उन्होंने अजमेर में कांग्रेस सेवादल के कार्यक्रम में कहा था कि आपको जो आदर, जो सम्मान मिलना चाहिए था, वो नहीं मिला. उन्होंने कहा था कि आगे से ऐसा नहीं होगा और कांग्रेस अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री से आपको सम्मान मिलेगा.

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राजस्थान में दिए गए इस भाषण की खास बात यह थी कि तब प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस थी. लेकिन उन 5 सालों में भी कांग्रेस के सेवादल ऊर्जावान नजर नहीं आए और अब हालत ऐसी है कि शायद ही किसी सिर पर कांग्रेस सेवादल की टोपी नजर आती हो. इन तमाम विसंगतियों को दूर करने के लिए एनएसयूआई की कार्यशैली की तरह ही कांग्रेस के संगठन में जान फूंकने की जरूरत है. यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि जितना एक सरकार लोकतांत्रिक सिस्टम को बनाए रखने की जिम्मेदारी है, उससे कही ज्यादा सरकार पर दबाव बनाए रखते हुए लोकतंत्र की पहरेदारी की जिम्मेदारी विपक्ष पर है.

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