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Wednesday, October 8, 2025

कठिनाइयों को मात देकर अंजू यादव बनीं टीचर और फिर आरपीएस की प्रेरक महिला अधिकारी

Newsकठिनाइयों को मात देकर अंजू यादव बनीं टीचर और फिर आरपीएस की प्रेरक महिला अधिकारी

एक होनहार बेटी, जिसे संसाधनों की कमी के कारण कॉलेज छोड़ना पड़ा। एक पत्नी, जिसने ससुराल में तानों और मुश्किलों का सामना किया। और एक मां, जिसने अपने दुधमुंहे बेटे को छोड़कर पढ़ाई जारी रखी ताकि अपने और बेटे के भविष्य को संवार सके। यह तीन अलग-अलग कहानियां नहीं, बल्कि राजस्थान पुलिस सेवा की 55वें बैच की महिला अधिकारी अंजू यादव की संघर्ष भरी यात्रा का हिस्सा हैं। अभाव, उपेक्षा, तानों और तिरस्कार के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और विपरीत परिस्थितियों में भी डटकर मुकाबला किया। आज अंजू यादव युवाओं के लिए प्रेरणा और रोल मॉडल बन चुकी हैं। ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने अपने जीवन के कई पहलुओं पर खुलकर बात की।

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कठिनाइयों से संघर्ष की शुरुआत

ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रोबेशनर आरपीएस अधिकारी अंजू यादव ने अपनी जीवन कहानी साझा की। उनका जन्म हरियाणा के नारनौल जिले के छोटे से गांव धोलेड़ा में हुआ। वे अपने माता-पिता की सबसे बड़ी संतान हैं और उनकी तीन छोटी बहनें हैं। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने गांव के सरकारी स्कूल से पूरी की और फिर नारनौल के सरकारी गर्ल्स कॉलेज में दाखिला लिया। आर्थिक तंगी के कारण कॉलेज छोड़ना पड़ा, लेकिन उन्होंने डिस्टेंस लर्निंग के जरिए स्नातक की पढ़ाई पूरी की। शादी के बाद बीएड किया, तब तक पुलिस सेवा में आने का ख्याल भी नहीं था।

संघर्ष और संकल्प

अंजू यादव बताती हैं कि शादी के बाद परिस्थितियां उनके लिए आसान नहीं रहीं। ससुराल में उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिला और जीवन घर के कामकाज और मवेशियों तक सिमट गया। साल 2012 में बेटे के जन्म के बाद उन्होंने अपने और बेटे के भविष्य के लिए कुछ करने का निर्णय लिया। उनके सामने दो ही विकल्प थे—जैसा चल रहा है, वैसे ही चलने देना या मेहनत करके सरकारी नौकरी हासिल करना। अपने एक महीने के बेटे को लेकर वे मायके आ गईं और बच्चे को माता-पिता के पास छोड़कर जयपुर चली आईं, जहां उन्होंने शिक्षक भर्ती की तैयारी शुरू की।
चूल्हे पर खाना बनाती अंजू यादव की पुरानी तस्वीर

मां और बेटे की कुर्बानी

अंजू यादव बताती हैं कि बेटे को लेकर जब वे ससुराल से पीहर आईं, तो उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं थे। आर्थिक कठिनाइयों और बेटे के भविष्य की चिंता ने उन्हें मजबूर किया कि वे अपने बच्चे से दूर रहें। जयपुर आकर उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। यह उनके जीवन का बेहद कठिन दौर था। शुरुआत में लंबे समय तक वे अपने बेटे से नहीं मिल पाईं और कई जन्मदिन बेटे ने मां का चेहरा देखे बिना ही मनाए। इस पूरे सफर में, अंजू मानती हैं कि उनसे ज्यादा तकलीफ बेटे ने सहा।

शिक्षक बनने का संघर्ष

अंजू यादव ने बताया कि साल 2016 में उनका चयन जवाहर नवोदय विद्यालय, भिंड (मध्यप्रदेश) में हुआ। इसके बाद उन्हें राजस्थान की शिक्षक भर्ती में भी सफलता मिली और बाद में वे दिल्ली की सरकारी स्कूल में शिक्षक बनीं। इस दौरान उनके व्यक्तिगत जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए और समाज के ताने भी सहने पड़े। माता-पिता और बेटे को भी लोग ताने कसते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की दिशा में लगातार मेहनत करती रहीं।

प्रेरणा और आरपीएस की ओर कदम

यही वह समय था जब अंजू यादव को कई बार सरकारी कार्यालयों में चक्कर लगाना पड़ा। उन्होंने महसूस किया कि पढ़ी-लिखी महिला को भी इतनी मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं, तो अनपढ़ लोगों के लिए जीवन कितना कठिन होगा। इसी अनुभव ने उन्हें प्रेरित किया और 2021 में जब राजस्थान पुलिस सेवा (आरपीएस) में वैकेंसी आई, तो उन्होंने आवेदन किया।

सम्मान और पहचान की भावना

अंजू यादव बताती हैं कि आरपीएस में चयन के बाद समाज का नजरिया उनके प्रति बदल गया है। इससे पहले उन्हें जीवन में सम्मान की कमी महसूस होती थी और अपने अस्तित्व की लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती थी। गांव में लोग तरह-तरह के सवाल पूछते और महिलाएं कानाफूसी किया करती थीं। अब जब वे घर जाती हैं, तो प्यार और सम्मान मिलता है। वही लोग अब उनके संघर्ष को सलाम करते हैं। सबसे ज्यादा खुशी उन्हें तब होती है जब लोग उनके पिता को बधाई देते हैं।

सपनों को पूरा करने की जिद

अंजू यादव मानती हैं कि जीवन का लंबा समय उन्होंने खुद को पीड़ित समझते हुए बिताया। इसी वजह से वे पीड़ित महिलाओं की पीड़ा को न केवल समझ सकती हैं, बल्कि महसूस भी कर सकती हैं। ग्रामीण महिलाओं को उतनी आजादी नहीं मिलती और अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्हें अनुकूल माहौल नहीं मिलता। सामाजिक और आर्थिक कारण अक्सर बाधा बनते हैं और कई बंधन भी होते हैं। लेकिन अंजू का मानना है कि अगर आपने सपने देखें हैं, तो उन्हें पूरा करने की जिद रखनी चाहिए।

लगन और मेहनत से सफलता

अंजू यादव बताती हैं कि जीवन में परेशानियां आएंगी और उनसे लड़ना ही पड़ेगा, तभी आगे के रास्ते खुलेंगे। वे बच्चियों की शिक्षा को बेहद जरूरी मानती हैं, क्योंकि शिक्षित होने पर ही बेटियां मुश्किल समय में खुद को संभाल सकती हैं। युवाओं को संबोधित करते हुए वे कहती हैं कि जो ठान लिया है, उसे पूरा करने के लिए लगन और अनुशासन के साथ जी-जान लगाकर मेहनत करनी चाहिए। परेशानियां थोड़े समय की होती हैं, लेकिन सफलता मिलने पर जीवन पूरी तरह बदल जाता है और अपने आप तथा अपने परिजनों को गर्व महसूस होता है।

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