चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने सीकर और भरतपुर में बच्चों की मौत के डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन दवा से होने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। जांच में निर्माता दवा कंपनी, जयपुर की सरना डूंगर की केयसंस फार्मा को क्लीन चिट दी गई है। विभाग को यह जांच रिपोर्ट शुक्रवार को मिली।
सरकारी लैब द्वारा करवाई गई जांच में पता चला है कि कंपनी की इस दवा में डायथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी) या एथिलीन ग्लाइकोल (ईजी) जैसे घातक रसायन मौजूद नहीं हैं। ये दोनों रसायन किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं।
औषधि आयुक्तालय ने राजस्थान में खांसी की दवा पीने से हुई दो मौतों के मामले में स्पष्ट किया है कि जिन बच्चों की मौत का संदेह दवा से जुड़ा था, उनमें हानिकारक प्रोपाइलीन ग्लाइकोल नहीं पाया गया। यह रसायन दूषित होने या डीईजी/ईजी का संभावित स्रोत हो सकता था। हालांकि, यह दवा डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन आधारित पाई गई, जो बच्चों के लिए अनुशंसित नहीं है।
कंपनी की दवाओं की जांच होगी
जानकारी के अनुसार, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग कंपनी केयसंस की सभी दवाओं की जांच करवाएगा। जांच रिपोर्ट आने तक कंपनी की दवाइयों का नि:शुल्क दवा योजना में उपयोग नहीं किया जाएगा। औषधि नियंत्रक राजाराम शर्मा ने बताया कि राजस्थान में पहले भी कफ सिरप के सैंपल अमानक पाए गए थे, लेकिन उनमें ब्रेक ऑयल जैसे सॉल्वेंट नहीं मिले।
खांसी की दवा से जुड़ी सुरक्षा निर्देश
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4 साल से कम उम्र के बच्चों को यह दवा बिल्कुल न दें; बड़े बच्चों को भी सावधानी से ही दें।
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दवा लिखते समय चिकित्सक परिजनों को सुरक्षित खुराक और संभावित दुष्प्रभाव की जानकारी दें।
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फार्मासिस्ट डॉक्टर की पर्ची के बिना यह दवा न दें।
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घर-घर सर्वे के दौरान आशा, एएनएम और स्वास्थ्य कार्यकर्ता बच्चों में खांसी, जुकाम या बुखार के लक्षण मिलने पर डॉक्टर से परामर्श करने की सलाह दें।
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पंजीकृत चिकित्सक की सलाह पर ही तय खुराक में दवा दें।
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दवा की तय खुराक से अधिक कभी न दें।
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दवा को हमेशा बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
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किसी भी समस्या पर परिजन तुरंत जिला कंट्रोल रूम (फोन: 0141-2225604) पर सूचना दें।