Ajmer Dargah Case: अजमेर। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की विश्वविख्यात दरगाह और कथित संकट मोचन महादेव मंदिर को लेकर चल रहा विवाद एक बार फिर गहरा गया है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर की सिविल कोर्ट पश्चिम (संख्या प्रथम) में एक नई अर्जी दायर कर विवादित क्षेत्र को तत्काल सील करने और वहां निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने की मांग की है।
कोर्ट से क्या है मांग?
गुप्ता ने कोर्ट से मांग की है कि उस क्षेत्र को तत्काल प्रभाव से सील किया जाए, जहां भगवान शिव का चित्र दीवार पर उकेरा हुआ है और एक शिवलिंग सहित अन्य हिंदू प्रतीकों के होने का दावा किया गया है। उन्होंने कहा कि इस स्थान पर हो रही गतिविधियों से वहां मौजूद संभावित ऐतिहासिक साक्ष्य नष्ट हो सकते हैं, जिससे निष्पक्ष जांच बाधित हो सकती है।
दरगाह कमेटी पर गंभीर आरोप
अर्जी में विष्णु गुप्ता ने दरगाह कमेटी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि वह निर्माण और मरम्मत के नाम पर साक्ष्य मिटाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि जब तक मामले की निष्पक्ष जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक विवादित स्थल की निगरानी आवश्यक है।
अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को
इस मामले में अगली सुनवाई 17 अक्टूबर 2025 को तय की गई है। कोर्ट के समक्ष यह निर्णय लेना होगा कि क्या विवादित स्थल को सील किया जाए और सीसीटीवी निगरानी की अनुमति दी जाए।
क्या है पूरा मामला?
यह विवाद सितंबर 2024 में तब शुरू हुआ था, जब विष्णु गुप्ता ने अजमेर की सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर कर दावा किया कि ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह परिसर में संकट मोचन महादेव मंदिर स्थित है। उन्होंने आरोप लगाया कि दरगाह के निचले हिस्से में शिवलिंग और भगवान शिव का चित्र मौजूद है, जो मंदिर के ऐतिहासिक अस्तित्व की पुष्टि करता है।
इस याचिका में दरगाह कमेटी, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को पक्षकार बनाया गया है। इस मामले में कई संगठनों और व्यक्तियों ने भी कोर्ट में पक्षकार बनने के लिए आवेदन दिए हैं।
मामला संवेदनशील मोड़ पर
यह मामला धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत संवेदनशील होता जा रहा है। हिंदू पक्ष का कहना है कि ऐतिहासिक तथ्यों की रक्षा के लिए तत्काल हस्तक्षेप जरूरी है, वहीं दरगाह कमेटी की ओर से अभी तक इस अर्जी पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। कोर्ट के अगले आदेश पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं, क्योंकि यह फैसला न सिर्फ कानूनी दिशा तय करेगा, बल्कि सामाजिक सौहार्द्र को लेकर भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
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