राजस्थान में कांग्रेस संगठन को नई दिशा देने की प्रक्रिया अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुँच चुकी है। प्रदेश की 50 से अधिक जिला इकाइयों में चल रही रायशुमारी लगभग पूरी हो चुकी है। दिल्ली से भेजे गए केंद्रीय पर्यवेक्षक जिलों में कार्यकर्ताओं और स्थानीय समाज के प्रतिनिधियों से संवाद कर 6-6 नामों की पैनल रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। इसी आधार पर प्रदेश कांग्रेस को नए जिलाध्यक्ष मिलेंगे।
राजनीतिक सिफारिशों पर लगी रोक
पार्टी आलाकमान ने इस बार स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति केवल जमीनी कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोकप्रियता के आधार पर की जाएगी। किसी भी सांसद, विधायक या वरिष्ठ नेता की सिफारिश को इस प्रक्रिया में प्राथमिकता नहीं दी जाएगी। इस फैसले ने संगठन में सक्रिय, लेकिन बिना सिफारिश के काम करने वाले कार्यकर्ताओं को नया उत्साह दिया है। वहीं, कई मौजूदा और पूर्व जनप्रतिनिधियों के लिए यह चिंता का कारण बन गया है।
हर जिले में 7 दिन तक गहन संवाद
केंद्रीय पर्यवेक्षक हर जिले में कम से कम एक सप्ताह रुककर कार्यकर्ताओं, समाजसेवियों और प्रबुद्धजनों से फीडबैक ले रहे हैं। प्राप्त सुझावों और चर्चाओं के आधार पर 6 संभावित नामों की सूची बनाकर उसे एआईसीसी को सौंपा जा रहा है। इसी सूची से अंतिम चयन होगा और जल्द ही नई जिलाध्यक्षों की घोषणा की जाएगी।
AICC की मंशा: संगठन को मिले नई ऊर्जा
AICC का मानना है कि संगठन की असली ताकत जिलों में होती है। इसीलिए जिलाध्यक्षों के चयन को अधिक पारदर्शी और भागीदारीपूर्ण बनाया गया है। कांग्रेस नेतृत्व चाहता है कि जिला इकाइयाँ न केवल संगठन की रीढ़ बनें, बल्कि चुनावी रणनीति में भी अहम भूमिका निभाएं।
जिलाध्यक्षों को मिलेगी अहम जिम्मेदारी
राहुल गांधी की पहल पर तैयार किए गए नए फॉर्मूले के अनुसार, जिलाध्यक्षों को अब केवल औपचारिक पदधारी न मानकर संगठन की ताकत का केंद्र बनाया जाएगा। उनकी राय न केवल संगठनात्मक निर्णयों में, बल्कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के प्रत्याशियों के चयन में भी अहम मानी जाएगी। पार्टी के भीतर यह विश्वास जताया जा रहा है कि इस नए मॉडल से न केवल संगठन को नई मजबूती मिलेगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर नेतृत्व को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
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