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Thursday, October 30, 2025

क्या देश भर में लड़कों या लड़कियों के लिए कोई अलग स्कूल नहीं होने चाहिए? महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले ने देशभर में क्यों छेड़ दी बहस?

OP-EDक्या देश भर में लड़कों या लड़कियों के लिए कोई अलग स्कूल नहीं होने चाहिए? महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले ने देशभर में क्यों छेड़ दी बहस?

Co-ed स्कूल्स पर महाराष्ट्र के ताजा फैसले ने देशभर में शिक्षा, समाज और नीति को लेकर नई बहस शुरू कर दी है. राज्य सरकार ने साफ निर्देश दिए हैं अब महाराष्ट्र में अलग-अलग लड़कों या लड़कियों के लिए कोई स्कूल नहीं होगा. हर स्कूल को को-एजुकेशन सिस्टम में बदलना जरूरी है. सरकार का तर्क है कि यह कदम समानता, संवाद और सामाजिक समावेशिता की नींव को मजबूत करेगा.

देश की स्कूलिंग व्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में तेजी से Co-ed मॉडल की ओर बढ़ी है. UDISE+ 2024-25 के मुताबिक, भारत में 15 लाख से अधिक स्कूल हैं, जिनमें 70% से ज्यादा को-एजुकेशन मॉडल अपनाया गया है. शेष लगभग 4.5 लाख स्कूल अब भी सिंगल-जेंडर पैटर्न पर हैं, लेकिन इनकी संख्या लगातार गिर रही है. टॉप 10 राज्यों—यूपी, महाराष्ट्र, बंगाल, राजस्थान, एमपी, तमिलनाडु, बिहार, कर्नाटक, गुजरात, ओडिशा—में Co-ed स्कूल्स का अनुपात सबसे ऊंचा है. राजस्थान में 65% और महाराष्ट्र में 76% स्कूल ऐसे हैं.

मुस्लिम समुदाय में संस्कार और अनुशासन को लेकर विरोध

महाराष्ट्र में 2025 तक करीब 7,500 सिंगल-जेंडर स्कूल थे—जिनमें लगभग 4,100 बालिका स्कूल और 3,400 बालक स्कूल शामिल थे. अब राज्य ने इनमें से सभी को को-एजुकेशन मॉडल में तब्दील करने का निर्देश जारी किया है. इस नीति परिवर्तन ने जाति, संस्कृति, और सामाजिक सुरक्षा को लेकर विवाद पैदा कर दिया. कई अभिभावक और समुदायों का मानना है कि Co-ed क्लासरूम में अनुशासन, सुरक्षा, और पारंपरिक संस्कारों पर असर पड़ सकता है. खासकर ग्रामीण, मुस्लिम और पारंपरिक समाज में यह चिंता गहराई से महसूस की जा रही है.

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Co-ed स्कूल्स का बोर्ड रिजल्ट बेहतर

दूसरी ओर, शिक्षा नीति विशेषज्ञों का मत है कि Co-ed स्कूल्स बच्चों में संवाद, टीम वर्क, समानता और समझ पैदा करते हैं. जब लड़के-लड़कियां साथ में पढ़ते हैं तो सामाजिक भेदभाव टूटता है. पासिंग रेट, रचनात्मकता और जिम्मेदारी की भावना में भी सुधार देखा गया है. दिल्ली समेत कई राज्यों का डेटा बताता है कि Co-ed स्कूल्स के रिजल्ट बोर्ड एग्जाम में सिंगल-जेंडर स्कूल्स की तुलना में बेहतर है.

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बालिका शिक्षा को मिल सकता है नया संबल

महाराष्ट्र, राजस्थान और अन्य राज्यों के लिए यह नीति समाज के भीतर गहराई से बदलाव लाने का रास्ता है. खासतौर पर विविधता, परंपरा, और सामाजिक संरचना वाले प्रदेशों में Co-ed शिक्षा समावेशिता और बालिका शिक्षा का मजबूत माध्यम साबित हो सकता है. हालांकि, स्थानीय चिंताओं, सुरक्षा, और जागरूकता जैसे पहलुओं पर राज्य सरकारों को संवाद और विश्वास के साथ आगे बढ़ना होगा.

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NEP 2020 बना बदलाव की प्रेरणा

फैसले के पीछे NEP 2020, बालिका शिक्षा अभियान, और जेंडर इनक्लूसिव नीति की सिफारिश रही है—स्कूल स्तर पर लड़के-लड़कियों के बीच सहयोग और संवाद से समाज में समानता को मजबूत किया जा सकता है. जब Co-ed स्कूल्स में पढ़ाई होती है तो छात्र-छात्राओं के दृष्टिकोण, रचनात्मकता और जिम्मेदारी में भी सुधार आता है.

Co-ed मॉडल दे सकता है शिक्षा को नया भविष्य

महाराष्ट्र केस स्टडी दिखाती है—स्कूलों में समावेशिता, लैंगिक न्याय और शिक्षा प्रणाली में बदलाव सिर्फ नीतिगत नहीं, समाज के बड़े हिस्सों में सोच, सहूलियत और संवाद की असली कसौटी बनता जा रहा है. देशभर में यह बहस बताती है कि बदलाव आसान नहीं, पर अगर सही संवाद, जागरूकता, और लागू करने की नीति अपनाई जाए, तो Co-ed मॉडल शिक्षा और समाज दोनों को नया भविष्य दे सकता है.

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