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Thursday, October 30, 2025

1 लाख से ज्यादा एकल स्कूल देश में सबसे बड़ा मजाक है, सरकारी स्कूलों की यह तस्वीर कब बदलेगी?

OP-ED1 लाख से ज्यादा एकल स्कूल देश में सबसे बड़ा मजाक है, सरकारी स्कूलों की यह तस्वीर कब बदलेगी?

देश की शिक्षा नीति की सबसे गहरी और खामोश चुनौती—एकल शिक्षक स्कूलों की हकीकत है, जो ‘सबको शिक्षा’ के वादे का सबसे बड़ा मज़ाक बन चुकी है. शिक्षा मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2024-25 शैक्षणिक वर्ष में पूरे भारत में 1,04,125 स्कूल ऐसे हैं जहां केवल एक ही शिक्षक है, और इनमें 33,76,769 छात्र नामांकित हैं. यानी हर स्कूल में औसतन 34 छात्र हैं और उन पर सिर्फ एक शिक्षक की जिम्मेदारी है. सबसे ज्यादा ऐसे स्कूल आंध्र प्रदेश (12,912), उत्तर प्रदेश (9,508), झारखंड (9,172), महाराष्ट्र (8,152), कर्नाटक (7,349), मध्य प्रदेश और लक्षद्वीप (7,217-7,217), पश्चिम बंगाल (6,482), राजस्थान (6,117), छत्तीसगढ़ (5,973), तेलंगाना (5,001) में हैं. दिल्ली में ऐसे सिर्फ नौ स्कूल हैं, और कई केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी नहीं.

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR) 30:1 (कक्षा 1-5) और 35:1 (कक्षा 6-8) तय करता है. मगर भारत के लाखों दूरदराज़, ग्रामीण, आदिवासी और छोटे शहरों के स्कूलों में सिर्फ एक ही अध्यापक होता है, उस पर न सिर्फ पढ़ाई, बल्कि प्रशासन, मिड-डे मील, सर्वे, डाटा फीडिंग, स्कूल खुलाने-बंद करने, खेल आयोजनों और हर सरकारी आदेश को लागू करवाने की जिम्मेदारी भी डाल दी जाती है.

स्कूली बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़!

यह शिक्षा की गुणवत्ता, बच्चों की व्यावहारिक सामर्थ्य और बाकी सपनों पर सीधा हमला है. सवाल है, यह जड़ समस्या कैसे सिस्टम के हर हिस्से में घर कर गई? सबसे बड़ा कारण राज्य सरकारों का बजट में कटौती और शिक्षा को प्राथमिकता न देना है. अक्सर स्कूल खोले जाते हैं, लेकिन पद सृजित नहीं होते. भर्ती नहीं होती. कई जगह मान्यता सिर्फ कागज़ पर ही रहती है. ट्रांसफर पॉलिसी, शिक्षकों की नियुक्ति की जटिलता और ग्रामीण-सीमांत क्षेत्रों में पोस्टिंग को लेकर चुनावी/प्रशासनिक राजनीति, बेरोजगारी और अप्रशिक्षित स्टाफ का संकट भी बढ़ता है.

एकल शिक्षक स्कूलों का सीधा नुकसान यह है कि बच्चों के पास न विषय-विशेषज्ञता का विकल्प रहता है, न व्यक्तिगत मार्गदर्शन का मौका. एक ही शिक्षक सब विषय—गणित, विज्ञान, हिंदी, सामाजिक विज्ञान, अंग्रेज़ी—सब पढ़ाता है, लेकिन उसका काम महज बेसिक पढ़ाई या किताब के शब्द सुनाने तक सीमित रह जाता है. क्लास 1-5 के बच्चों का एक ही रूम में बैठना, सिर्फ बोर्ड बदलना—मल्टीग्रेड टीचिंग का नाम तो है, पर हकीकत में ऐसे बच्चों की नींव कमजोर रह जाती है.

बच्चों की पढ़ाई का स्तर, अनुशासन, तर्क, सृजनात्मकता—सब एकल विद्यालयों में कम होना तय है. ग्रामीण और सीमांत गाँवों में पढ़ाई, टीचर की अनुपस्थिति, छुट्टियों, मौसम या परेशानी पर क्लास बंद. कई जगह महीने में कुछ ही दिन नियमित पढ़ाई. ऐसे में शिक्षा का अधिकार, समावेशी शिक्षा, विशेष बच्चों, बालिकाओं, प्रवासी बच्चों के लिए किसी तरह की अतिरिक्त सुविधा या सलाह लगभग असंभव हो जाती है.

प्रभाव साफ दिखता है, जब देश के सबसे बड़े राज्यों में स्कूली ड्रोपआउट, पढ़ाई में पीछे रहना, और उच्च शिक्षा के लिए तैयार करने का माहौल कम हो जाता है. परीक्षा पास करना, अंकों के लिए काम करना या भर्ती का इंतजार करना एकल शिक्षक सिस्टम का मुख्य उद्देश्य बन जाता है. बच्चों पर मानसिक दबाव, सामाजिक व्यवहार का अभाव, शिक्षक के काम का बोझ, और पढ़ाई की गुणवत्ता में लगातार गिरावट—ये देश के लाखों स्कूलों की सच्चाई है.

मानकों को लागू किया जाए तो रोजगार भी बढ़ेगा

अगर शिक्षा मंत्रालय के दिए गए PTR (30:1 या 35:1) अनुसार सभी स्कूलों में शिक्षकों की पूर्ण भर्ती हो तो सीधे तौर पर लाखों सरकारी नौकरियों का सृजन संभव है. एकल स्कूलों में तो कम से कम एक और शिक्षक तत्काल निर्धारित किया जाए, बाकियों में हर विषय के लिए अलग शिक्षक हो. इसपर काम हो तो देश की युवा बेरोजगारी बड़ी मात्रा में घट सकती है, और शिक्षा का आधार ही बदल जाएगा.

राजस्थान जैसे राज्यों में तो यह समस्या और गंभीर है. रेगिस्तानी, आदिवासी, सुदूर ग्राम पंचायत क्षेत्रों में बच्चे एक शिक्षक के सहारे पूरी पढ़ाई करते हैं. ट्रांसफर या अवकाश के मामले में स्कूल बंद पड़े रहते हैं. बालिका शिक्षा, समावेशी काउंसलिंग, तकनीक या डिजिटल शिक्षा सब हाशिये पर चली जाती है. एकल विद्यालयों की वजह से न केवल विद्यार्थी बल्कि समाज भी शिक्षा के अधिकार से वंचित रह जाता है.

सरकार, शिक्षा विभाग और नीति निर्माताओं को अब ध्यान देना चाहिए—यह संकट केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि पूरे देश के भविष्य के लिए खतरे की घंटी है. बजट, भर्ती और शिक्षा का नियमन सुधार कर हर स्कूल में क्वालिटी शिक्षा की गारंटी जरूरी है. बच्चों को सक्षम, जिम्मेदार और रचनात्मक नागरिक बनाने के लिए शिक्षकों की संख्या बढ़ाना, PTR का पालन और मल्टी-टीचर बहाली जरूरी है.

भारत की शिक्षा व्यवस्था का सबसे क्रिटिकल मोड़ यही है—’सबको शिक्षा’ का सपना तभी पूरा होगा, जब हर बच्चे के पास पर्याप्त शिक्षक, बेहतर पढ़ाई, और पूर्ण अधिकार होंगे. एकल शिक्षक स्कूलों का संकट अब तंत्र और सरकार की प्राथमिक परीक्षा है.

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