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Tuesday, November 4, 2025

Rajasthan News: गोचर बचाओ की हुंकार! संतों ने दी सरकार को चेतावनी – अब आर-पार की लड़ाई तय

NewsRajasthan News: गोचर बचाओ की हुंकार! संतों ने दी सरकार को चेतावनी – अब आर-पार की लड़ाई तय

Rajasthan News: बीकानेर। बीकानेर विकास प्राधिकरण (BDA) द्वारा गोचर और ओरण भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ अब जनमानस और संत समाज पूरी तरह से एकजुट हो गया है। शनिवार को रानी बाजार स्थित आनंद आश्रम में आयोजित संत सम्मेलन में इस मुद्दे को लेकर तीखी चेतावनियाँ दी गईं। सम्मेलन से जुड़े संतों ने स्पष्ट कहा कि यदि सरकार ने अधिग्रहण का आदेश तुरंत वापस नहीं लिया, तो एक “गोचर बचाओ महाआंदोलन” शुरू किया जाएगा, जो किसी भी हद तक जा सकता है।

संतों की चेतावनी

संत क्षमाराम महाराज ने कहा कि, “बीकानेर की गोचर भूमि केवल जमीन नहीं, बल्कि गौवंश और समस्त प्राणी मात्र के जीवन का आधार है। सरकार द्वारा भूमि की किस्म बदलना प्रत्यक्ष रूप से जीवन पर हमला है। अंधाधुंध विकास विनाश को आमंत्रण दे रहा है।”

गौ, गोचर, गीता हमारी संस्कृति के प्रतीक’

स्वामी विमर्शानंद गिरि ने कहा कि बीकानेर, नथानियान, गंगाशहर, भीनासर, उदयरामसर सहित 188 गांवों की गोचर भूमि की किसी भी प्रकार की हानि बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा: “गौ, गोचर, गंगा, गीता, गायत्री और गोरी हमारी संस्कृति के मूल स्तंभ हैं। इन्हें बचाना धर्म और संस्कृति की रक्षा है।”

हजारों संत सड़कों पर उतरेंगे’

संत किशोरीदास महाराज ने आंदोलन को जनशक्ति से जोड़ते हुए कहा, “यह भूमि सरकारी नहीं, जनता की है, जिसे जनसहयोग से छुड़वाया गया था। अगर जरूरत पड़ी, तो हजारों संत बीकानेर में धरना और महापड़ाव करेंगे।”

यह सिर्फ विरोध नहीं, जनआंदोलन है’

योगी विलास नाथ महाराज ने कहा कि यह मुद्दा केवल जमीन का नहीं, बल्कि पर्यावरण, परंपरा और जनभावना से जुड़ा है। “सरकार अगर समय रहते नहीं जागी, तो संत समाज भी सड़कों पर उतरने को तैयार है।”

संघर्ष समिति ने दी आर-पार की चेतावनी

‘गोचर ओरण बचाओ संघर्ष समिति’ के संयोजक शिवकुमार गहलोत ने बताया कि अब तक इस अधिग्रहण के खिलाफ 37,000 से ज्यादा आपत्तियां आधिकारिक रूप से दर्ज हो चुकी हैं। उन्होंने कहा: “यदि जल्द सरकार ने अधिग्रहण वापस नहीं लिया, तो रेल रोको, बीकानेर बंद, आमरण अनशन जैसे कड़े कदम उठाए जाएंगे।”

आखिर क्या है गोचर और ओरण भूमि का महत्व?

  • गोचर भूमि: गांव या कस्बों के पास की वह सार्वजनिक भूमि, जो गौवंश व अन्य पशुओं के चरने के लिए सुरक्षित होती है। इसे सरकारी रिकॉर्ड में ‘चरागाह’ या ‘चरनोई’ कहा जाता है।
  • ओरण भूमि: यह भी चारागाह जैसी ही होती है, लेकिन इससे धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था जुड़ी होती है। अक्सर यह भूमि स्थानीय देवता के नाम पर आरक्षित होती है, जहाँ पेड़ काटना या निर्माण करना मना होता है। इन दोनों भूमियों को गौवंश के जीवन, पर्यावरण और ग्रामीण संस्कृति का आधार माना जाता है। इन्हीं कारणों से इनका अधिग्रहण करने के प्रयासों पर तेज विरोध देखने को मिल रहा है।

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