Rajasthan Politics: राजस्थान में कांग्रेस के ड्रीम प्रोजेक्ट सृजन अभियान के तहत जिलाध्यक्षों के चयन में सोशल इंजीनियरिंग को लेकर पार्टी हाईकमान के सामने गंभीर चुनौती खड़ी हो गई है। दिल्ली में शुक्रवार को दिनभर चली बैठक में एससी-एसटी और माइनॉरिटी समुदाय को किन जिलों में प्रतिनिधित्व मिलेगा, इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका।
पार्टी हाईकमान की समीक्षा
राष्ट्रीय संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल ने प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली को एससी-एसटी और माइनॉरिटी प्रतिनिधित्व पर पुनः चर्चा करने को कहा है। इसके चलते कई जिलों में चयन प्रक्रिया में देरी की संभावना जताई जा रही है।
मौजूदा प्रतिनिधित्व
वर्तमान में नागौर, पाली और अन्य जिलों में अल्पसंख्यक वर्ग से जुड़े दो जिलाध्यक्ष और तीन कार्यकारी जिलाध्यक्ष हैं। वहीं टोंक, जालौर, जोधपुर देहात, करौली, बूंदी और बारां में एससी-एसटी वर्ग के प्रतिनिधि मौजूद हैं। संगठन विस्तार के बाद नए जिलों में प्रतिनिधित्व बढ़ाने की संभावना है।
ओबीसी प्रतिनिधित्व चुनौती
ओबीसी वर्ग की विभिन्न जातियों जैसे जाट, गुर्जर, सैनी, विश्नोई, सैन, कुमावत आदि के नेताओं ने भी जिलाध्यक्ष बनने के लिए आवेदन किया है। कांग्रेस ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर राजेंद्र सेन के अनुसार, राहुल गांधी ने कहा है कि संगठन में जातिगत आबादी के अनुसार हिस्सेदारी दी जाएगी।
सोशल इंजीनियरिंग पैनल
जिलाध्यक्षों के चयन के लिए भेजे गए पर्यवेक्षकों को 6-6 नाम का पैनल तैयार करने को कहा गया, जिसमें सभी वर्गों के उम्मीदवार शामिल थे। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के अनुसार, सोशल इंजीनियरिंग के आधार पर ही जल्द ही चयन की घोषणा की जा सकती है।
विश्लेषक का मत
राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि राजस्थान में जातिगत समीकरण जटिल हैं। कांग्रेस के लिए सोशल इंजीनियरिंग के आधार पर जिलाध्यक्षों का चयन करना चुनौतीपूर्ण होगा और प्रक्रिया लंबी खिंच सकती है।
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