देश में साइबर क्राइम एक नए और खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। अब ठग पारंपरिक ट्रिक छोड़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं
राजनेताओं और बॉलीवुड सितारों की तरह दिखने वाली वीडियो व उनकी आवाज की नकल बनाकर वे खासकर शुगर (डायबिटीज) के मरीजों को निशाना बना रहे हैं। इन नकली ऑडियो-वीडियो के जरिये फर्जी दवाइयां, ‘चमत्कारिक’ इलाज और निवेश के झांसे दिए जा रहे हैं, जिनमें लोग करोड़ों रुपये का नुकसान उठा रहे हैं।
डायबिटीज के मरीज क्यों बन रहे निशाना?
देश में डायबिटीज (शुगर) के मरीजों की बढ़ती संख्या अब साइबर ठगों के लिए नया निशाना बन गई है। इलाज की तलाश में रहने वाले कई लोग जल्द राहत पाने की उम्मीद में ऑनलाइन मिलने वाले विज्ञापनों पर भरोसा कर लेते हैं।
ठग इसी भरोसे और भावनात्मक कमजोरी का फायदा उठाकर उन्हें फर्जी इलाज और दवाइयों के नाम पर ठग रहे हैं।
‘सेलिब्रिटी देख झांसे में जा जाते हैं लोग’
जयपुर साइबर क्राइम ऑफेंस के एसीपी सोन चंद ने बताया कि अब ठगों ने धोखाधड़ी का नया तरीका अपना लिया है। वे मशहूर हस्तियों के डीपफेक वीडियो तैयार करते हैं,
जिनमें यह दिखाया जाता है कि उस सेलिब्रिटी ने कोई खास दवा लेकर डायबिटीज जैसी बीमारी से तुरंत राहत पा ली। इन फर्जी क्लिप्स को सोशल मीडिया पर वायरल किया जाता है और साथ में एक लिंक दिया जाता है,
जिस पर क्लिक कर लोग दवा खरीद सकते हैं। बड़े सेलिब्रिटीज का चेहरा और आवाज देखकर आम लोग इन वीडियो पर यकीन कर लेते हैं और ठगों के जाल में फंस जाते हैं।
AI से कैसे बन रहे हैं नकली वीडियो?
साइबर ठगों का तरीका बेहद सोचा-समझा और चरणबद्ध है: पहले वे किसी मशहूर शख्स—मुख्यमंत्री, फिल्म स्टार या अन्य सार्वजनिक हस्ती—के इंटरव्यू, वीडियो और सोशल पोस्ट से ऑडियो-वीडियो डेटा इकट्ठा कर लेते हैं;
फिर डीपफेक तकनीक से उस व्यक्ति का चेहरा नए क्लिप पर चढ़ाया जाता है और वॉइस-क्लोनिंग सॉफ्टवेयर से उनकी आवाज हूबहू बनाकर उसमें ऐसे शब्द बोलवाए जाते हैं
कि मानो उन्होंने कोई डायबिटीज कंट्रोल कैप्सूल या शुगर-फ्री गारंटी वाली दवा ली और तुरंत फायदा हुआ; अंत में उन नकली वीडियो के साथ कॉल-टू-एक्शन, लिंक या व्हाट्सऐप नंबर जोड़ दिए जाते हैं
ताकि लोग बिना परखे ही खरीद या पेमेंट कर दें — यही प्रक्रिया व्हाट्सऐप, फेसबुक और यूट्यूब पर तेजी से फैलकर बड़ी ठगी का कारण बन रही है।
नकली वीडियो को पहचानने के तरीके
साइबर पुलिस ने लोगों को डीपफेक और फर्जी वीडियो से सतर्क रहने के लिए कुछ अहम संकेत बताए हैं, जिनकी पहचान कर ठगी से बचा जा सकता है।
अधिकारियों के अनुसार, ऐसे वीडियो में अक्सर होंठों की हरकत और आवाज में हल्का असंतुलन या देरी नजर आती है। इसके अलावा, चेहरे के किनारों पर या त्वचा पर अप्राकृतिक धुंधलापन और चमक दिखाई देती है,
जो असली वीडियो में नहीं होती। सबसे अहम बात यह है कि ऐसे वीडियो किसी भी सेलिब्रिटी के आधिकारिक या सत्यापित सोशल मीडिया चैनल पर उपलब्ध नहीं होते।
इनमें आमतौर पर तुरंत पैसे भेजने या किसी प्राइवेट लिंक या व्हाट्सऐप नंबर पर संपर्क करने का दबाव बनाया जाता है — जबकि कोई भी नामी ब्रांड या मशहूर शख्सियत ऐसा नहीं करती।
जयपुर साइबर पुलिस ने जनता से अपील की है कि सोशल मीडिया पर वायरल ऐसे वीडियो पर विश्वास न करें, किसी अनजान लिंक पर क्लिक न करें और ठगी से बचने के लिए हमेशा सूचना की पुष्टि करें।
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