विश्व प्रसिद्ध पुष्कर पशु मेले में इस बार पशुधन बाजार के दो अलग-अलग रंग दिखाई दे रहे हैं। एक तरफ मुर्रा नस्ल के भैंसे और उम्दा नस्ल के घोड़े करोड़ों रुपये में बिक रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर राजस्थान की शान माने जाने वाले ऊंटों को खरीदार नहीं मिल रहे। ऊंटों की कीमतें जहां ₹10,000 से शुरू हो रही हैं, वहीं व्यापार ठप-सा नजर आ रहा है। ऊंट परिवहन पर लगी पाबंदी हटने के बावजूद बाजार में रौनक नहीं लौट पाई है, जिससे पशुपालकों की उम्मीदें फीकी पड़ गई हैं।
करोड़ों के ‘सुपरस्टार’: बलबीर, बादल और नगीना
पुष्कर पशु मेले में इस साल बलबीर, बादल, नगीना और शहजादी जैसे पशु नए आकर्षण का केंद्र बने हैं, जिनकी कीमत ₹1 करोड़ से भी ऊपर है.

डीडवाना के पशुपालक डूंगाराम का 35 महीने का मुर्रा नस्ल का भैंसा ‘बलबीर’ इस बार पुष्कर मेले का सबसे चर्चित और महंगा पशु बना हुआ है। इसकी कीमत ₹1 करोड़ तक लग चुकी है। 800 किलो वजनी और करीब 5 फीट 8 इंच ऊंचा ‘बलबीर’ अपनी ताकत और उच्च दुग्ध उत्पादन क्षमता के लिए खास पहचान रखता है। डूंगाराम बताते हैं कि उसे घी, दूध, हरा चारा और प्रोटीन युक्त खल खिलाया जाता है, जिस पर हर महीने लगभग ₹35,000 का खर्च आता है। ‘बलबीर’ फिलहाल प्रजनन के काम में इस्तेमाल होता है और महीने में करीब ₹80,000 तक की आमदनी करा देता है। डूंगाराम को उम्मीद है कि चार साल की उम्र पूरी होने तक इसकी कमाई तीन गुना तक बढ़ जाएगी।
2. घोड़े और घोड़ियां: सोशल मीडिया सेंसेशन

अजमेर के केकड़ी इलाके का घोड़ा ‘बादल’ इस बार पुष्कर मेले में सबका ध्यान खींच रहा है। अपनी लंबी कद-काठी और आकर्षक अंदाज़ की वजह से ‘बादल’ सोशल मीडिया पर सेंसेशन बन चुका है। इसके मालिक राहुल का कहना है कि ‘बादल’ को एक बॉलीवुड फिल्म में काम करने का ऑफर मिला है, जिसकी कुल कीमत ₹15 लाख तय हुई है और ₹10 लाख एडवांस मिल भी चुके हैं। वहीं, सफेद रंग की घोड़ी ‘शहज़ादी’ अपने लाजवाब डांस मूव्स से दर्शकों का दिल जीत रही है—जिसकी कीमत ₹51 लाख आंकी गई है। पंजाब से आई ‘नगीना’ नाम की घोड़ी भी चर्चा में है, जो अपने एसी युक्त खास वाहन में पुष्कर पहुंची है और जिसकी कीमत ₹1 करोड़ से ज्यादा बताई जा रही है।
‘रेगिस्तान के जहाज’ का अनिश्चित भविष्य
मेले में जहां घोड़े और भैंसे लाखों-करोड़ों रुपये में बिक रहे हैं, वहीं राजस्थान की शान माने जाने वाले ऊंटों का बाजार इस बार फीका नजर आ रहा है। ऊंटों की कीमतें फिलहाल ₹20,000 से ₹1 लाख के बीच सिमटी हुई हैं। पिछले साल परिवहन प्रतिबंध के चलते कई ऊंट मात्र ₹1,500 तक में बिक गए थे, जिससे पशुपालकों को भारी नुकसान झेलना पड़ा था। हालांकि इस बार प्रतिबंध हटने से थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन बाजार अब भी अस्थिर है और खरीदारों की संख्या उम्मीद से काफी कम है।
प्रतिबंध हटा, पर मुश्किलें जारी
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में ऊंटों की घटती संख्या को देखते हुए राज्य से बाहर उनके परिवहन पर रोक लगाई गई थी। 2019 की पशुगणना में ऊंटों की संख्या घटकर करीब दो लाख रह गई थी। हालाँकि अब सरकार ने यह प्रतिबंध हटा दिया है, लेकिन परिवहन से जुड़ी कड़ी शर्तें अभी भी ऊंट व्यापारियों के लिए बड़ी बाधा बनी हुई हैं। इसी वजह से ऊंट मालिकों की उम्मीदें मेले में भी फीकी पड़ती दिख रही हैं।

जटिल परिवहन नियम
लोक पशुपालक समिति के सचिव हनुवंत सिंह ने बताया कि ऊंटों की बिक्री में सबसे बड़ी बाधा परिवहन से जुड़ी जटिल प्रक्रियाएं हैं। खरीदारों को ऊंट को राज्य से बाहर ले जाने के लिए अब भी एसडीएम की अनुमति, स्वास्थ्य प्रमाणपत्र और परिवहन का स्पष्ट कारण बताना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार से कई खरीदार पुष्कर मेले में पहुंचे हैं, लेकिन सख्त नियमों के कारण अधिकांश लोग ऊंट खरीदने से हिचक रहे हैं।
तस्करी का डर, सतर्कता जरूरी
हनुवंत सिंह ने यह आशंका भी जताई कि कुछ खरीदार नर ऊंटों को वध के उद्देश्य से ले जा सकते हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने सरकार से मांग की कि ऊंटों के परिवहन और बिक्री पर सख्त निगरानी रखी जाए, ताकि कोई भी पशु अवैध गतिविधियों का शिकार न बने।

विवाद और गिरफ्तारी
इसी बीच, ऊंटों के परिवहन को लेकर विवाद भी सामने आ रहा है। बुधवार को दिल्ली मार्ग पर बेहरोर के पास गौ रक्षक दलों ने एक पिकअप वाहन को रोक लिया, जिसमें पुष्कर मेले से खरीदे गए आठ ऊंट फिरोजपुर ले जाए जा रहे थे। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर ड्राइवर जावेद को पशु क्रूरता अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया और सभी ऊंटों को जब्त कर लिया।
पशुपालन विभाग ने स्पष्ट किया है कि भले ही ऊंटों के परिवहन पर लगी रोक हटा ली गई हो, लेकिन उन्हें राज्य से बाहर ले जाने के लिए तय प्रक्रिया का पालन अनिवार्य रहेगा। विभाग के अनुसार, पशु मेले से ऊंट बाहर ले जाने के लिए पहले संबंधित अधिकारी से स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और परिवहन के उद्देश्य का लिखित विवरण देना होगा, जिसके बाद ही अनुमति पत्र जारी किया जाएगा।
‘कीमतें फिर से गिरने का डर’
पाली जिले के चांदावाल गांव के ऊंट पालक किशनजी ने बताया कि उन्होंने अपना चार साल का नर ऊंट ‘मोती’ 35 हजार रुपये में बेचा, जो उनके अनुसार अच्छी कीमत है। किशनजी का कहना है कि पहले ऊंट इतने दामों में नहीं बिकते थे, लेकिन अब भी बाजार में अस्थिरता बनी हुई है। उनका मानना है कि यदि ऊंटों के परिवहन की अनुमति प्रक्रिया सरल नहीं हुई
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