Rajasthan Politics: राजस्थान में पंचायत और निकाय चुनावों में दो से अधिक संतान वाले उम्मीदवारों पर प्रतिबंध हटाने की संभावनाएं तेज हो गई हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सरकार इस नियम में संशोधन पर विचार कर रही है, जो पिछले लगभग 30 वर्षों से लागू है।
टिकट मिला, नामांकन भी भरा… पर
तीन दशक से भाजपा में सक्रिय नरेंद्र चावरिया बताते हैं कि 2020 में उन्हें जयपुर नगर निगम ग्रेटर के वार्ड 147 से टिकट मिला था। नामांकन दाखिल कर प्रचार शुरू हो चुका था, लेकिन अंतिम समय पर टिकट बदल दिया गया। वजह थीं उनकी तीन संतानें।
“जब पता चला कि टिकट रद्द हुआ है तो सब खत्म सा हो गया। तीन महीने सदमे में रहा, पांच किलो वजन कम हो गया,” चावरिया याद करते हैं। अब जब सरकार इस नियम को हटाने पर विचार कर रही है, चावरिया जैसे कई कार्यकर्ताओं में उम्मीद की नई किरण जगी है। उनका मानना है कि पाबंदी हटने से नए चेहरे सामने आएंगे और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
अफसरों को छूट, नेता क्यों नहीं?
इस नियम के कारण कई उम्मीदवारों की शिकायतें लंबी जांच में उलझ जाती हैं और कार्यकाल समाप्त हो जाता है। वहीं दूसरी ओर, सरकारी नौकरी में तीसरी संतान होने पर प्रतिबंध पहले ही समाप्त किए जा चुके हैं। 2002 में लागू हुआ था कि तीसरा बच्चा होने पर नौकरी नहीं मिलेगी।
वहीं नौकरी में तीसरा बच्चा होने पर 5 साल प्रमोशन रुकेगा और अधिक बच्चे होने पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति तक का प्रावधान। 2018 में वसुंधरा सरकार ने इसे खत्म किया। अब न प्रमोशन रुकता है, न सेवा पर असर पड़ता है। सवाल उठ रहा है — जब सरकारी कर्मचारी को राहत मिल चुकी है, तो जनप्रतिनिधियों पर ही क्यों रोक?
क्या कहता है कानून?
- 27 नवंबर 1995 के बाद तीसरी संतान होने वाले पंचायत/निकाय चुनाव नहीं लड़ सकते
- झूठी जानकारी देने पर पद जाता है और जेल भी हो सकती है
- जुड़वां बच्चों को एक इकाई माना जाता है
- बच्चे को गोद देने पर भी संख्या गिनी जाएगी। यह नियम भैरोंसिंह शेखावत सरकार के समय लागू किया गया था।
सरकार की तैयारी
स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने पुष्टि की कि इस पर विभागों से अनौपचारिक रिपोर्ट मांगी गई है। सहमति बनी तो प्रस्ताव कैबिनेट में जाएगा और 2025–26 के पंचायत चुनाव से पहले संशोधन संभव है। “कर्मचारी और जनप्रतिनिधियों में बड़ा भेदभाव नहीं रख सकते। मांगे उठी हैं, उस पर विचार करना ही होगा।” सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री से भी प्रारंभिक चर्चा हो चुकी है।
प्रभाव क्या होगा?
- ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े परिवार आम — कई योग्य लोग बाहर रह जाते हैं
- नियम हटने पर प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, नए नेता सामने आएंगे
- जनसंख्या नियंत्रण समर्थक इसे अनुशासन का प्रतीक बताते हैं
नतीजा
राजस्थान में यह बदलाव स्थानीय राजनीति का चेहरा बदल सकता है। सवाल अब यह है कि परिवार नियंत्रण नीति और राजनीतिक अधिकार — कौन ज़्यादा अहम? आने वाले महीनों में इस बहस पर बड़ा फैसला संभव है।
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