NSS Education Survey 2025: राष्ट्रीय सैंपल सर्वे (NSS) की 80वें राउंड के “Comprehensive Modular Survey: Education” की रिपोर्ट भारत की स्कूली शिक्षा के हकीकत को बयां करती हैं. इसमें सरकारी और निजी स्कूलों में साफ अंतर नजर आता है, जिसका सीधा असर कई परिवारों के जेब पर पड़ता है.
इस सर्वे में 52 हजार 85 परिवारों और 57 हजार 742 छात्रों के साक्षात्कार को शामिल किया गया. इसके रिजल्ट स्कूल एजुकेशन की संरचना में बदलाव की दिशा, अवसर और गहराते सामाजिक-आर्थिक अंतर पर नई बहस पैदा करते हैं. सर्वे में सामने आए आंकड़े बतलाते हैं कि अगले दशक में भारत को शिक्षा नीति में कड़े और व्यवहारिक परिवर्तन जरूरी हैं. भविष्य की नींव के लिए शिक्षा के क्षेत्र में सही बजट, पारदर्शिता, सोशल ऑडिट, लोक भागीदारी और सशक्त सरकारी शिक्षा प्रणाली ही सही कदम होगा.
इस सर्वे के आंकड़ों पर नजर डालिए….
अहम सवाल- सरकारी बनाम निजी स्कूलों की व्यवस्था किसके लिए?
देश के 55.9% बच्चों का नामांकन सरकारी स्कूलों में है. ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 66% तक है यानी हर दो में एक बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ता है. लेकिन शहरी इलाकों में 30.1% नामांकन ही सरकारी स्कूलों में है. एक औसत सरकारी स्कूल का खर्च ₹2,863 है तो प्राइवेट स्कूल में यह ₹25,002 तक है यानी दस गुना. शहरी स्कूल के कोर्स फीस का औसत ₹15,143, जबकि ग्रामीण में यह ₹3,979. निजी स्कूल की फीस, किताब, स्टेशनरी, यूनिफॉर्म, ट्रांसपोर्ट, हर मद में खर्च ग्रामीण के मुकाबले शहरी स्कूलों में कई गुना ज़्यादा है.
ऐसा ही कुछ मामला कोचिंग संस्थानों का भी है. करीब 27% छात्र (30.7% शहरी और 25.5% ग्रामीण) निजी कोचिंग ले रहे हैं. शहरी उच्च माध्यमिक में कोचिंग खर्च ₹9,950 तक पहुंच जाता है, जो ग्रामीण में ₹4,548 तक है. रिपोर्ट दर्शाती है कि आस-पास संसाधन और गुणवत्ता की कमी से सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले अभिभावक भी प्राइवेट कोचिंग को प्राथमिकता दे रहे हैं. जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों के लिए यह कड़ी चुनौती और असमानता का कारण बन रहा है.
1.2 फीसदी विद्यार्थियों को ही मिल पाती है छात्रवृत्ति
शिक्षा के क्षेत्र में स्कॉलरशिप जैसी सुविधाएं भी देश के 95 फीसदी बच्चों को नहीं मिलती. इन बच्चों का खर्च परिवार के कंधों पर ही होता है. जबकि 1.2% छात्र सरकारी या संस्थागत स्कॉलरशिप का लाभ ले पाते हैं. अमूमन ग्रामीण-शहरी दोनों में यही रुझान दिखता है. जाहिर तौर पर सरकारी योजनाएं, छात्रवृत्ति या अन्य बेनिफिट्स का लाभ अब भी बहुत सीमित दायरे तक सीमित हैं.
इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि शिक्षा खर्च में असमानता, शहरी-ग्रामीण क्षेत्रों में खाई, निजी कोचिंग के बढ़ते खर्च, सरकारी स्कॉलरशिप की सीमाएं और डिजिटल संसाधन के अभाव स्कूल एजुकेशन में चुनौती हैं. अगर सरकार स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश, शिक्षकों की गुणवत्ता, मुफ्त किताब और यूनिफॉर्म, समावेशी नीति, डिजिटल लर्निंग, और कोचिंग कल्चर की विसंगति जैसी चुनौतियों को प्राथमिकता दे तो स्कूलों की भूमिका नए सिरे से परिभाषित की जा सकती है.
यह भी पढ़ें: स्कूल एजुकेशन का Future अब AI! आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की एंट्री से स्कूल के सिलेबस में बड़ा बदलाव हो सकता है


