Kerala vs Rajasthan Education: केरल आने वाले वर्षों में शिक्षा के मामले में ग्लोबल स्टैंडर्ड सेट कर सकता है, इसके लिए रोड़मैप तैयार करते हुए ‘एजुकेशन विजन- 2031’ लॉन्च भी कर दिया है. आखिर राजस्थान का एजुकेशन मॉडल क्या है और क्या केरल के इन मॉडल से हम कुछ सीख सकते हैं?
चलिए, बात आज इसी मुद्दे पर…
सिर्फ केरल नहीं बल्कि देश के हर राज्य के लिए ये बेहतर मॉडल हो सकता है. भारतीय शिक्षा क्षेत्र की सबसे बड़ी जरूरत समावेशी, तकनीकी, क्रिएटिव और डेटा-सक्षम नीति का परिचायक है. अपने राज्य की सीमाओं से परे, यह मॉडल देशभर के लिए एक नई राह खोल सकता है. यही शिक्षा की असली लोकतांत्रिक पहचान है, जिसमें हर बच्चा, हर वर्ग, हर क्षेत्र है और सबको समान अवसर मिलेगा.
शिक्षा के क्षेत्र की कमियों को दूर करना सबसे पहली प्राथमिकता है. जाहिर तौर पर अब सरकारी स्कूलों में स्मार्ट क्लासरूम, रोबोटिक लैब्स कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि मूलभूत जरूरत है. इसका सीधा फायदा तमाम वर्गों दिव्यांग, आदिवासी, तटीय, प्रवासी बच्चों को मिलेगा. नामांकन को गति देने के लिए डीप डेटा विश्लेषण का इस्तेमाल किया जाएगा. स्कूल के प्रत्येक बच्चे की लिंग, जाति, वर्ग, विकलांगता जैसी विविधताओं को ध्यान में रखते हुए परिणाम तय करने का प्रयास होगा.
राजस्थान जैसे राज्यों को क्या सीखना चाहिए?
राजस्थान जैसे राज्य जहां शिक्षा की सामाजिक विविधता, ग्रामीण-शहरी अंतर, बजट की कमी, और संस्थागत असमानता की समस्याएं हैं, वहां केरल का विजन एक आदर्श मॉडल है. समावेश, शिक्षक ट्रेनिंग, डिजिटल क्लासरूम, खेल-समावेश, जीवन कौशल पर निवेश और डेटा आधारित शिक्षा नीति को राजस्थान भी अपनाए तो सरकारी स्कूलों की हालत पूरी तरह बदल सकती है. यहाँ भी शिक्षा का स्तर, समाज की भागीदारी और बच्चे का विकास मजबूती पा सकता है.
आखिर केरल एजुकेशन का अगला रोडमैप है क्या?
राज्य स्तरीय ‘विजन 2031’ के बाद पाठ्यक्रम, मूल्यांकन, शिक्षक व्यावसायिकता में तमाम बुनियादी कमियां पहचानी गईं. अब शिक्षक ट्रेनिंग, क्लासरूम टेक्नोलॉजी, जीवन कौशल और नवाचार पर सबसे ज्यादा निवेश किया जा रहा है. केरल सरकार ने पिछले दो वर्षों में सार्वजनिक शिक्षा संरक्षण अभियान और विद्याकिरणम मिशन के तहत 5000 करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश किया है. 55,000 हाईटेक क्लासरूम तैयार किए हैं, 597 किताबों का समयानुसार संशोधन किया गया है.
अगर यह मॉडल देशभर में लागू किया जाए तो इस शिक्षा नीति के जरिए सामाजिक विविधता, सबको समान अवसर और डिजिटल क्रांति का उदाहरण बन सकती है. समावेशी शिक्षा, डिजिटल क्लासरूम, पाठ्यक्रम में नवाचार, और शिक्षक प्रशिक्षण का राष्ट्रीय विस्तार किया जाए तो भारत की शिक्षा व्यवस्था छवि, गुणवत्ता और रोजगार में अद्वितीय हो जाएगी. छात्र केवल रटने के बजाय, क्रिएटिविटी, नवाचार, खेल और जीवन-प्रबंधन में दक्ष होंगे.
एक्सपर्ट्स की राय है कि यह किसी भी राज्य की शिक्षा प्रणाली के विकास, शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम संशोधन, पेशेवर दक्षता और सार्वजनिक भागीदारी की जरूरतों को सामने रखती है. उनका मानना है कि डिजिटल, रचनात्मक और कौशल विकास आधारित शिक्षा ही आज के दौर में सफलता की कुंजी बनेगी.
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