Ajmer Sharif Dargah: नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने दरगाह ख़्वाजा साहब, अजमेर के प्रबंधन से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि दरगाह समिति का गठन दरगाह ख़्वाजा साहब अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के अनुसार शीघ्र किया जाए। अदालत ने माना कि समिति का कार्यकाल समाप्त होने के बाद नए सदस्यों की नियुक्ति में देरी से प्रबंधन और संचालन प्रभावित हो रहा है।
पूर्व समिति का कार्यकाल समाप्त
सुनवाई के दौरान यह दलील दी गई कि पूर्व समिति का कार्यकाल वर्ष 2022 में समाप्त हो चुका है, लेकिन अब तक नई समिति का गठन नहीं हुआ। इस कारण दरगाह से जुड़े प्रशासनिक और प्रबंधन संबंधी निर्णय अनिश्चितता में फंसे हुए हैं।
कानूनी प्रावधानों का हवाला
याचिकाकर्ता सैयद मेहराज मियां की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासत ने तर्क दिया कि दरगाह ख़्वाजा साहब अधिनियम, 1955 की धारा 4 और 6 के तहत समिति गठन अनिवार्य है और प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। इसके साथ ही, अधिनियम की धारा 10 में नाज़िम की सहायता के लिए एक सलाहकार समिति (Advisory Committee) गठित करना भी आवश्यक है, जो कई वर्षों से लंबित है।
केंद्र सरकार ने दिया आश्वासन
केंद्र सरकार के स्थायी अधिवक्ता अमित तिवारी ने अदालत को बताया कि दरगाह समिति के लिए नियुक्ति प्रक्रिया विचाराधीन है और इसे वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप शीघ्र पूरा किया जाएगा। इस पर अदालत ने केंद्र से कहा कि प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाया जाए ताकि धार्मिक स्थल के प्रबंधन में पारदर्शिता और निरंतरता बनी रहे।
CCTV विवाद पर अदालत की स्पष्टता
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया था कि दरगाह के गर्भगृह (अस्ताना शरीफ़) में CCTV कैमरे लगाए गए हैं, जो श्रद्धालुओं की निजता और धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन करते हैं। इस पर केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि “CCTV कैमरे केवल सार्वजनिक पहुंच वाले क्षेत्रों में लगाए गए हैं, गर्भगृह के भीतर कोई रिकॉर्डिंग नहीं होती।” सरकार ने बताया कि कैमरे केवल सुरक्षा कारणों से उन रास्तों और स्थानों पर लगाए गए हैं, जो गर्भगृह तक पहुंचने के मार्ग में आते हैं — ताकि चोरी, भगदड़ या अव्यवस्था जैसी घटनाओं को रोका जा सके।
“गर्भगृह के भीतर रिकॉर्डिंग नहीं होगी” — कोर्ट
अदालत ने इस स्पष्टीकरण को स्वीकार करते हुए कहा कि “चूंकि यह सुरक्षा ऑडिट के आधार पर लिया गया निर्णय है, इसमें न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।” साथ ही अदालत ने यह स्पष्ट निर्देश दिया कि किसी भी परिस्थिति में गर्भगृह (अस्ताना शरीफ़) के भीतर रिकॉर्डिंग नहीं की जाएगी। सुनवाई के अंत में अदालत ने कहा कि यदि भविष्य में कोई नई परिस्थितियाँ या विवाद उत्पन्न होते हैं, तो याचिकाकर्ता नई याचिका दायर कर सकता है।
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