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Sunday, November 30, 2025

CBSE फिर बदलाव की राह पर! दो दशक में क्यों नहीं टिक पाया एक भी सिस्टम?

OP-EDCBSE फिर बदलाव की राह पर! दो दशक में क्यों नहीं टिक पाया एक भी सिस्टम?

CBSE Board Exams 2026: CBSE ने एक बार फिर बोर्ड परीक्षाओं में बदलाव किया गया है. जिनमें 2026 से लागू हो रही दो बार बोर्ड परीक्षा सबसे नई पहल है. 2026 में, CBSE दोनों कक्षाओं की परीक्षाएं 17 फरवरी से शुरू करेगा, और दसवीं के विद्यार्थियों को साल में दो बार बोर्ड परीक्षा देने का विकल्प मिलेगा. ऐसा जैसा कि NEP-2020 की अनुशंसा के चलते किया जा रहा है. CBSE ने पिछले दो दशकों में शिक्षा प्रणाली में बोर्ड परीक्षाओं के स्वरूप में कई बड़े प्रयोग किए हैं. 2026 में कक्षा 10 और 12 के लिए साल में दो बार बोर्ड परीक्षा कराने का ऐलान NEP-2020 की सिफारिशों के बाद सबसे नया और बड़ा कदम है. पर क्या इतने बार और इतने बड़े पैमाने पर बदलाव सही हैं? यह समीक्षा इसी सवाल पर केंद्रित है

बोर्ड परीक्षाओं के प्रमुख प्रयोग और सुधार पर नजर 

  • 2009 में CCE (Continuous and Comprehensive Evaluation) लागू हुआ, जहां साल में कई मूल्यांकन होते थे और बोर्ड परीक्षा कक्षा 10 के लिए वैकल्पिक बना दी गई थी.
  • 2017 से कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा फिर से अनिवार्य की गई, CCE हटा दिया गया.
  • 2020 में NEP-2020 के अनुसार परीक्षा पैटर्न में बड़े बदलावों की प्रक्रिया शुरू हुई. इसमें मूल दक्षताओं पर आधारित पेपर, कोर-सब्जेक्ट्स का फोकस के अलावा इस बात पर जोर दिया गया कि कोचिंग केंद्रित रटन विद्या वाला कल्चर खत्म हो.
  • अब अगले साल से कक्षा 10 के लिए साल में दो बार बोर्ड परीक्षा देने की योजना. पहली मुख्य परीक्षा और दूसरी ‘इंप्रूवमेंट’ परीक्षा होगी. दोनों का स्कोर ‘best of two’ के सिद्धांत पर मान्य रहेगा और छात्रों को एक ही अकादमिक सत्र में दो अवसर मिलेंगे.

CCE: क्रांतिकारी कदम, लेकिन 10 साल में ही बंद 

अगर बात करें 2009 की तो CCE (Continuous and Comprehensive Evaluation) की शुरुआत में बोर्ड परीक्षा वैकल्पिक कर दी गई और छात्रों का मूल्यांकन पूरे साल किया जाने लगा. इसके ज़रिए पढ़ाई का दबाव कम करने, समग्र कौशल पर ध्यान देने और आउटकम-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने का लक्ष्य था. परन्तु, इसकी कार्यवाही अधूरी और शिक्षकों की कमी के कारण कमजोर साबित हुई.

तकनीकी रूप से इसे सफलतापूर्वक लागू नहीं किया जा सका और फिर साल 2017 में इसे खत्म कर दिया गया. इसके बाद 2017 से पारंपरिक बोर्ड परीक्षा पुनः अनिवार्य हुई, जिससे विद्यार्थियों और अभिभावकों में स्थिरता आई. लेकिन NEP-2020 ने फिर से लचीलापन और व्यावहारिकता की मांग की और अब 2026 में CBSE ने साल में दो बार बोर्ड परीक्षा देने की योजना घोषित की.

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लेकिन सवाल यह है कि क्या एजुकेशन सिस्टम में इस तरह बार-बार प्रयोग सही है? एक पक्ष यह है कि लंबे समय तक एक ही परीक्षा प्रणाली को बनाए रखना जरूरी होता है, ताकि सभी पक्ष उसके अनुसार खुद को ढाल सकें. साथ ही नए बदलाव के परिणामों का मूल्यांकन कर सुधार करने के लिए भी पर्याप्त समय चाहिए. बिना पर्याप्त परीक्षण के लगातार बड़े पैमाने पर बदलाव शिक्षा प्रणाली को अस्थिर बनाते हैं. इसलिए, बोर्ड परीक्षाओं के सुधार में जरूरी है कि एक संतुलित योजना बनाई जाए. एक ऐसा खाका तैयार हो, जहां बदलाव की गति तो कम से कम नियंत्रित हो और उनकी गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाए.

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ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि छोटे-छोटे पायलट प्रोजेक्ट्स के माध्यम से नीतियों का परीक्षण होना और फिर सफलतापूर्वक सिद्ध होने पर ही व्यापक स्तर पर लागू करना चाहिए. बावजूद इसके शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव से इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन इसके क्रियान्वयन में विद्यार्थियों का हित और शिक्षकों की दक्षता का भी ख्याल रखा जाना चाहिए.

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