प्रदेश में छात्रसंघ चुनावों पर लगे प्रतिबंध को लेकर दायर याचिकाओं पर राजस्थान हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई पूरी कर ली। जस्टिस समीर जैन की एकलपीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान अदालत ने यूनिवर्सिटी प्रशासन और सरकार की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणियां कीं।
सुनवाई में अदालत ने मौखिक रूप से कहा इस समय राजस्थान यूनिवर्सिटी अर्श से फर्श का सफर तय कर रही है लोकसभा–विधानसभा चुनाव के दौरान आरयू अपने भवन करीब दो महीने के लिए सरकार को किराए पर देती है। क्या उस दौरान छात्रों की पढ़ाई बाधित नहीं होती? मगर सत्र के कैलेंडर को समय पर लागू करने की जिम्मेदारी नहीं निभाई जाती।”
‘चेक एंड बैलेंस के लिए छात्रसंघ चुनाव जरूरी’
याचिकाकर्ता जय राव सहित अन्य की ओर से अधिवक्ता शांतनु पारीक ने बहस करते हुए कहा कि छात्रसंघ चुनावों को रोकना न केवल छात्र हितों के खिलाफ है बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक ‘चेक एंड बैलेंस’ को भी खत्म कर देता है। पारीक ने दलील दी कि यूनिवर्सिटी ऑफ केरला के फैसले में छात्रसंघ चुनाव को छात्रों के अधिकार के रूप में माना गया है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनी लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें स्पष्ट करती हैं कि सत्र शुरू होने के 6–8 सप्ताह के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य है। छात्र नेता यूनिवर्सिटी प्रशासन और छात्रों के बीच पुल का काम करते हैं, जिससे संस्थानों का संचालन पारदर्शी और जवाबदेह रहता है। उन्होंने कहा कि सरकार संवैधानिक प्रावधानों और सर्वोच्च अदालत के निर्देशों की पालना कराने में असफल रही है।
‘छात्रसंघ चुनाव मौलिक अधिकार नहीं’
सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि छात्रसंघ चुनाव को छात्रों का मौलिक या विधिक अधिकार नहीं माना जा सकता। उन्होंने तर्क दिया कि लिंगदोह कमेटी सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के तहत गठित की गई थी। अब वे मूल याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में लंबित नहीं हैं, इसलिए उसकी सिफारिशें वर्तमान में लागू मानने योग्य नहीं हैं। इस आधार पर अब याचिका दायर नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट जल्द ही इस महत्वपूर्ण मामले पर अपना निर्णय सुनाएगा, जो प्रदेश में छात्र राजनीति की दिशा तय करेगा।
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