सर्दियों की शुरुआत होते ही उत्तर भारत में जिस मिठाई का नाम सबसे पहले याद आता है, वह गजक है। ठंड बढ़ते ही लोग इसकी गर्माहट भरी मिठास का इंतजार करने लगते हैं।
लेकिन राजस्थान के करौली जिले की कुटेमा गजक का स्वाद इस परंपरा को एक अलग ऊंचाई देता है। इसकी लोकप्रियता सिर्फ स्थानीय बाजारों तक सीमित नहीं है—देश के विभिन्न राज्यों और विदेशों में रहने वाले भारतीय भी इसके अनोखे स्वाद के मुरीद हैं।
सौ साल से अधिक पुराना स्वाद
कुटेमा गजक पूरी तरह हाथ से तैयार की जाती है और इसके स्वाद की परंपरा सौ साल से भी अधिक पुरानी मानी जाती है। इसकी खस्ताहट, भुरभुरी बनावट और तिल–गुड़ की सौंधी महक ने इसे दूर-दूर तक लोकप्रिय बना दिया है।
करौली जिले के प्रतिष्ठित मौला गजक भंडार में यह मिठाई पीढ़ियों से उसी पारंपरिक विधि से बनाई जा रही है। यही वजह है कि आज यह दुकान सिर्फ स्थानीय ग्राहकों ही नहीं, बल्कि देश–विदेश से आने वाले लोगों की भी पहली पसंद बनी हुई है।
हाथ से पीसकर बनती खास गजक
कुटेमा गजक की सबसे बड़ी पहचान उसका खस्ता स्वाद और मुंह में घुल जाने वाली मुलायम बनावट है, जो इसे पहली ही बाइट में खास बना देती है। इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण यह है कि इसे पूरी तरह पारंपरिक तरीके से हाथ से कुटाई कर तैयार किया जाता है,
न कि मशीनों से। इसी प्रक्रिया के कारण इसे कुटेमा गजक कहा जाता है और यही वजह है कि इसका स्वाद बाजार में मिलने वाली सामान्य गजक से बिल्कुल अलग और अधिक उम्दा माना जाता है।
ग्राहकों की कतारें लगी रहतीं
जिले के मुख्य बाजार में स्थित मौला गजक भंडार के सामने सर्दियों की शामों में लंबी-लंबी कतारें लगती हैं। स्थानीय लोग, जैसे चुन्नू, बताते हैं कि कुटेमा गजक का स्वाद सबसे अलग और बेहतरीन है।
विदेशों में रहने वाले रिश्तेदार भी जैसे ही सर्दी शुरू होती है, इसका ऑर्डर देना शुरू कर देते हैं। एक बार इसका स्वाद चखने के बाद इसे कोई भी आसानी से भूल नहीं पाता।
हाथों की मेहनत से तैयार
गजक बनाने वाले कारीगर बताते हैं कि करौली की कुटेमा गजक इतनी नरम और स्वादिष्ट इसलिए होती है क्योंकि इसे हाथ से बड़े प्यार और मेहनत से कूटा जाता है। तिल और गुड़ इतनी बारीकी से मिलाए जाते हैं
कि यह मुंह में डालते ही घुल जाती है। सर्दियों में इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है, क्योंकि ठंडी हवा गुड़ और तिल को खास बनावट देती है।
राजस्थान की गजक पहुंची विदेश
करौली की 100 साल पुरानी कुटेमा गजक आज भी मौला गजक भंडार में पुराने तरीके और पारंपरिक अंदाज में बनाई जाती है। संचालक पप्पू भाई बताते हैं कि इसकी खासियत और बेहतरीन स्वाद की वजह से यह गजक सिर्फ राजस्थान ही नहीं, बल्कि जर्मनी, लंदन, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया तक भेजी जाती है।
गजक की कीमत ₹290 से ₹380 प्रति किलो है और इसकी परंपरा और स्वाद के कारण आज भी यह लोगों की पहली पसंद बनी हुई है।
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