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Monday, December 1, 2025

Rajasthan: कांग्रेस ने जारी की 45 जिलाध्यक्षों की सूची, 5 पर सस्पेंस…डोटासरा की पकड़ या पायलट–गहलोत की खींचतान?

OP-EDRajasthan: कांग्रेस ने जारी की 45 जिलाध्यक्षों की सूची, 5 पर सस्पेंस…डोटासरा की पकड़ या पायलट–गहलोत की खींचतान?

Rajasthan News: राजस्थान कांग्रेस ने 50 में से 45 जिलाध्यक्षों की सूची जारी कर दी है। यह सूची बताती है कि पार्टी ने जातीय-सामाजिक संतुलन, गुटीय समीकरण, स्थानीय प्रभाव और संगठन की प्राथमिकताओं के बीच बेहद सटीक संतुलन साधने की कोशिश की है। सूची में प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की पकड़ साफ दिखती है और अधिकांश जिलों में उनका सुझाव प्रभावी रहा।

जाट समुदाय और सभी गुटों को मिला प्रतिनिधित्व

इस बार जाट समुदाय को उल्लेखनीय हिस्सेदारी दी गई है। पायलट और गहलोत दोनों गुटों को वाजिब प्रतिनिधित्व मिला है। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली की एससी वर्ग से जुड़े जिलाध्यक्षों के लिए की गई पैरवी भी सूची में परिलक्षित होती है। एससी व एसटी वर्ग में नए चेहरे शामिल कर संगठन ने बदलाव का संकेत दिया है। बाड़मेर और बालोतरा में हरीश चौधरी की सिफारिशें भी प्रभावशाली रहीं।

जातीय समीकरण: OBC सबसे आगे, महिलाओं को भी बड़ा मौका

  • OBC से 16 नाम (जिनमें 10 जाट)
  • जनरल वर्ग से 8
  • SC से 9
  • ST से 8
  • मुस्लिम समाज से 4
  • महिलाओं से 7 नाम

42 नए चेहरे और 8 दोबारा मौका पाए नेताओं के साथ यह सूची संतुलित बदलाव का संकेत देती है। खास बात यह है कि पहली बार जिलाध्यक्षों में महिलाओं की संख्या एक से बढ़कर 7 हो गई है। युवाओं को भी संगठन में मजबूत स्थान दिया गया है। लक्ष्मण गोदारा, बलराम यादव, हनुमान बांगड़ा, किशोर चौधरी और मनीष मक्कासर जैसे युवा नाम भविष्य की रणनीति तय करने वाले माने जा रहे हैं। पार्टी ने 45 में से 12 विधायकों को जिलाध्यक्ष बनाया है, ताकि जिलों की कमान अनुभवी और जनस्वीकृति रखने वाले नेताओं को मिल सके।

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5 जिलों में घोषणा पर रोक

पांच जिलों—बारां, झालावाड़, जयपुर शहर, प्रतापगढ़ और राजसमंद—में जिलाध्यक्षों की घोषणा को रोक दिया गया है। बारां और झालावाड़ में अंता उपचुनाव की वजह से फीडबैक अधूरा था। जयपुर, प्रतापगढ़ और राजसमंद में गुटीय टकराव से सहमति नहीं बन पाई।

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प्रतापगढ़: 2010 से जिलाध्यक्ष रहे भानुप्रताप पर विवाद

प्रतापगढ़ का मामला सबसे पेचीदा रहा। यहां 2010 से जिलाध्यक्ष बने भानुप्रताप सिंह राणावत ही फिर से दावेदार थे। उनके साथ दिग्विजय सिंह और ओमप्रकाश ओझा भी मैदान में थे। भानुप्रताप सिंह पायलट समर्थक माने जाते हैं। रामलाल मीणा ने दिग्विजय सिंह का समर्थन किया, जबकि ओझा पूर्व मंत्री उदयलाल आंजना के करीबी हैं। तीनों के बीच संतुलन साधना मुश्किल रहा, इसलिए प्रतापगढ़ की घोषणा रोक दी गई।

राजसमंद: जातीय संतुलन नहीं बनने से रुक गई नियुक्ति

राजसमंद में भी स्थिति प्रतापगढ़ जैसी रही। 42 संगठनात्मक मतदाताओं में से 40 ने आदित्य प्रताप सिंह चौहान का समर्थन किया था। पीसीसी सदस्यता और डॉ. सीपी जोशी का समर्थन उनके साथ था। लेकिन सबसे बड़ी बाधा सामाजिक संतुलन बनी।

राजसमंद में राजपूत मतदाता सबसे अधिक हैं। पूर्व जिलाध्यक्ष हरी सिंह राठौड़ और संभावित नए जिलाध्यक्ष आदित्य प्रताप सिंह—दोनों ही राजपूत समुदाय से हैं। लगातार एक ही समाज को जिलाध्यक्ष बनाए जाने से OBC और SC वर्ग में असंतोष बढ़ा। संगठन ने इसे गंभीरता से लेते हुए घोषणा पर रोक लगा दी।

जयपुर शहर: सुनील शर्मा बनाम पुष्पेंद्र भारद्वाज

जयपुर शहर में सुनील शर्मा और पुष्पेंद्र भारद्वाज की टक्कर ने मामला उलझाया। लोकसभा टिकट कटने के बाद सुनील शर्मा को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देने की चर्चाएं थीं। दूसरी ओर, संगठन में सक्रियता के कारण पुष्पेंद्र की दावेदारी भी मजबूत थी। सूत्रों के मुताबिक सुनील शर्मा का नाम लगभग तय था, लेकिन अंतिम समय में एक धड़े ने पुष्पेंद्र का नाम आलाकमान तक पहुंचा दिया। किसी एक नाम पर घोषणा करने से असंतोष बढ़ने की आशंका को देखते हुए पार्टी ने फैसला रोक दिया।

संतुलन की कोशिश जारी, गुटीय खिंचतान भी बरकरार

कुल मिलाकर कांग्रेस की सूची यह दर्शाती है कि संगठन नई और पुरानी पीढ़ी को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहा है। हालांकि पांच जिलों में अटकी नियुक्तियां बताती हैं कि पार्टी के भीतर गुटीय खिंचतान अब भी उतनी ही है जितनी पहले थी।

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