अंटार्कटिका में पेंगुइन की आबादी में भयावह गिरावट देखी जा रही है, जो पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बन गया है. हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन और बर्फ के पिघलने के कारण इन अनोखे प्राणियों का अस्तित्व खतरे में है. बढ़ता तापमान और समुद्री बर्फ का तेजी से पिघलना उनके प्राकृतिक आवास को नष्ट कर रहा है. ये पेंगुइन बर्फ पर प्रजनन करते हैं, जहां वे अपने बच्चों को ठंड से बचाने के लिए बड़े समूहों में इकट्ठा होते हैं. लेकिन बर्फ के असामयिक पिघलने से उनके बच्चे समय से पहले समुद्र में बह जाते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो रही है. साल 2022 की बात करें तो कई कॉलोनियों में हजारों पेंगुइन चूजों की मृत्यु दर्ज की गई, जो एक चेतावनी है कि स्थिति कितनी गंभीर है. 1950 के दशक के मध्य में, अफ्रीकी पेंगुइन के अनुमानित 141,000 प्रजनन जोड़े थे, जो ज़्यादातर नामीबिया और दक्षिण अफ़्रीका के तटों से दूर छोटे द्वीपों पर थे. साल 2023 तक, यह संख्या गिरकर लगभग 9,900 जोड़े रह गए यानी लगभग 70 वर्षों में 93% जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गई. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि यही रुझान जारी रहा, तो अगले कुछ दशकों में पेंगुइन की आबादी में 90% तक की कमी आ सकती है.
यह सिर्फ पेंगुइनों की कहानी नहीं है; यह पूरी पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन का सवाल है.
पेंगुइन के लुप्त होने से अन्य प्रजातियों पर भी असर पड़ेगा. जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कदम उठाने की जरूरत पर बात भी होती है, जैसे कार्बन उत्सर्जन को कम करना और संरक्षण प्रयासों को बढ़ाना. लेकिन पर्यावरण के ये खतरे बदस्तूर जारी है.
पर्यावरण के खतरों पर प्रभावी ढंग से कब बात होगी?
पेंगुइन की घटती आबादी हमें यह सवाल पूछने पर मजबूर करती है: क्या हम अपनी धरती को बचाने के लिए तैयार हैं? यह केवल एक प्रजाति की कहानी नहीं है; यह हमारे ग्रह के भविष्य की कहानी है. पेंगुइन हमें याद दिलाते हैं कि प्रकृति का हर हिस्सा आपस में जुड़ा हुआ है. यदि हम आज यूंही असंवेदनशील रहे, तो कल हम न केवल इन खूबसूरत प्राणियों को, बल्कि अपने पर्यावरण का एक बड़ा हिस्सा खो सकते हैं.
इस खतरे को कई संदर्भों में समझना होगा
वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, पेंगुइन की जनसंख्या 1990 से गिरना प्रारंभ हुई थी. यह वही समय था जब अलनीनो प्रभाव हुआ था. भूमध्य रेखा के आसपास के क्षेत्र में प्रशांत महासागर के वातावरण में अलनीनो एक अस्थायी परिवर्तन है. इसके कारण पेंगुइन का भोजन, जैसे मछली तथा अन्य प्राणी उनकी कॉलोनी से दूर दक्षिण में चले जाते हैं. आसानी से मिलने वाला भोजन अलनीनो प्रभाव के कारण दूभर हो जाता है.
पेंगुइनों का संकट केवल स्थानीय नहीं है; यह वैश्विक जैव विविधता और जलवायु संतुलन से जुड़ा है. यदि ये प्रजातियां लुप्त हो जाती हैं, तो इसका असर अन्य प्रजातियों, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और यहां तक कि मानव जीवन पर भी पड़ेगा. उदाहरण के लिए, समुद्री बर्फ का पिघलना न केवल पेंगुइनों के लिए, बल्कि समुद्री स्तर में वृद्धि के लिए भी जिम्मेदार है, जो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ाता है.