(स्लग में सुधार के साथ रिपीट)
गोलपाड़ा (असम), 16 जून (भाषा) असम सरकार ने सोमवार को गोलपाड़ा जिले में 667 परिवारों के कथित अतिक्रमण को हटाने के लिए अभियान शुरू किया जिनमें से अधिकतर प्रवासी बांग्ला भाषी समुदाय से हैं।
अधिकारियों ने बताया कि भारी सुरक्षा तैनाती के बीच बलिजाना राजस्व क्षेत्र के तहत हसिलाबील गांव में सुबह सात बजे अभियान शुरू हुआ।
गोलपाड़ा के उपायुक्त खानिंद्र चौधरी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘अतिक्रमणकारियों की ओर से कोई प्रतिरोध नहीं किया गया और अब तक किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली है।’’
एक अधिकारी ने बताया कि 1,555 बीघा क्षेत्र में से 45 प्रतिशत क्षेत्र से लोगों को हटाया गया, जबकि शेष क्षेत्र एक जल निकाय है।
गांव में पांच प्राथमिक विद्यालय हैं, जिनके भवनों को गिराया जाना है। उन्होंने बताया कि इस काम के लिए करीब 20 बुलडोजर और अन्य मशीनें लगाई गई हैं।
चौधरी ने बताया कि ग्रामीणों को 2023 और 2024 में भी नोटिस दिए गए थे, लेकिन उन्होंने इलाका नहीं छोड़ा।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने शुक्रवार को फिर उन्हें नोटिस दिया और सोमवार सुबह तक घर खाली करने को कहा। इसी संदेश के साथ विभिन्न स्थानों पर तख्तियां और पोस्टर भी लगाए गए थे।’’
चौधरी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नवनीत महंत के साथ सुबह से ही गांव में डेरा डाले हुए हैं, जबकि आईजीपी (कानून व्यवस्था) अखिलेश कुमार सिंह स्थिति की समीक्षा करने के लिए बाद में पहुंचे।
अधिकारियों के अनुसार, कई नागरिकों ने अपने सामान के साथ गांव छोड़ दिया, जबकि शेष परिवारों ने जिला प्रशासन से उनका पुनर्वास कराने का अनुरोध किया है।
एक स्थानीय निवासी ने कहा, ‘‘मैं यहां पैदा हुआ था, और मेरे पिता भी यहीं जन्मे थे। जब जोगीघोपा पुल का निर्माण किया जा रहा था, तब मेरे दादाजी यहां आकर बस गए थे। हम अधिकारियों के साथ सहयोग कर रहे हैं और उनसे अनुरोध किया है कि वे हमें रहने के लिए एक वैकल्पिक स्थान प्रदान करें।’’
मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने हाल ही में कहा था कि अतिक्रमित भूमि को खाली कराने के लिए अभियान जारी रहेगा।
शर्मा ने कहा कि पिछले चार वर्षों में कई अभियान चलाए गए हैं, और उनकी सरकार ने सुनिश्चित किया है कि खाली कराई गई भूमि पर फिर से अतिक्रमण न हो।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने प्रत्येक जिले में कम से कम एक अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया है और हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि अब लोग अतिक्रमण वाली जमीन पर बसने से डरते हैं।’’
भाषा वैभव नरेश
नरेश
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