दावणगेरे (कर्नाटक), 16 जून (भाषा) कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोमवार को स्पष्ट किया कि उनकी सरकार द्वारा किया जाने वाला आगामी सामाजिक-शैक्षणिक और जातिगत सर्वेक्षण केंद्र सरकार की जाति जनगणना से मूल रूप से भिन्न है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्य की यह पहल सामाजिक न्याय की आवश्यकता से प्रेरित है।
उनकी यह टिप्पणी एक राजपत्र अधिसूचना के बाद आयी है जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना एक मार्च, 2027 से शुरू होगी, जबकि बर्फबारी वाले क्षेत्रों केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कुछ क्षेत्रों में यह जनगणना 1 अक्टूबर, 2026 से शुरू होगी।
सिद्धरमैया ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘केंद्र जाति जनगणना कर रहा है, जिसे 2027 से शुरू किया जाएगा। हालांकि, यह नहीं कहा गया है कि वह सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण करेगा। हम जो करने जा रहे हैं, वह एक सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण है। जाति जनगणना भी इसके दायरे में आएगी।’
उन्होंने दोहराया कि कर्नाटक सरकार को केंद्र की जनगणना पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उन्होंने राज्य की कवायद के दायरे और इरादे को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र केवल जाति जनगणना कर रहा है, जबकि हम एक व्यापक सामाजिक-शैक्षणिक और जातिगत सर्वेक्षण कर रहे हैं। यह अंतर महत्वपूर्ण है।’ सिद्धरमैया के अनुसार, राज्य के सर्वेक्षण का उद्देश्य आंकड़े एकत्र करना है, जो पिछड़े और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए प्रभावी कल्याणकारी उपायों की जानकारी दे सकता है।
उन्होंने कहा, ‘हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि सामाजिक न्याय के लिए हमें लोगों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का पता होना चाहिए। यह जाने बिना सार्थक कल्याणकारी कार्यक्रमों को लागू करना मुश्किल हो जाता है।’’
पिछले सर्वेक्षण पर आपत्ति जताने वाले प्रभावशाली समुदायों के दबाव के बारे में पूछे जाने पर, मुख्यमंत्री ने आरोप को खारिज किया और कहा कि पिछले सर्वेक्षण पर आपत्ति प्रभावशाली और वंचित दोनों समुदायों की ओर से आयी थी।
उन्होंने कहा, ‘‘इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 10 साल हो चुके हैं, जब पिछला सर्वेक्षण शुरू किया गया था। कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, हर 10 साल बाद एक नयी रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए। नये सर्वेक्षण का आदेश देने के हमारे फैसले का यही कानूनी और प्रशासनिक आधार है।’’
सिद्धरमैया ने कहा कि उन्होंने कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को बिना देरी किए सर्वेक्षण कार्य शुरू करने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा, ‘मैंने पिछड़ा वर्ग आयोग को तुरंत यह काम करने का आदेश दिया है।’
मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी जाति आधारित गणना और नीति निर्माण पर इसके प्रभाव को लेकर जारी राष्ट्रीय चर्चा के बीच आयी है।
कर्नाटक ने 2015 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना की थी, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों से विवाद और विरोध के कारण इसके निष्कर्ष कभी आधिकारिक रूप से प्रकाशित नहीं किए गए।
राज्य मंत्रिमंडल ने 12 जून को एक नया सर्वेक्षण करने का फैसला किया, जिसका उद्देश्य अद्यतन आंकड़े एकत्र करना था।
यह कदम कांग्रेस आलाकमान के निर्देश के बाद उठाया गया है, जिसमें राज्य से फिर से जातिगत गणना शुरू करने का आग्रह किया गया था, क्योंकि कई समुदायों की ओर से चिंता जतायी गई थी कि एक दशक पहले किए गए सर्वेक्षण में उन्हें बाहर रखा गया था।
यह घोषणा ऐसे समय में की गई है, जब मंत्रिमंडल पहले से ही सरकार को सौंपे गए सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण के निष्कर्षों की समीक्षा कर रहा था, जो 2015 के आंकड़ों पर आधारित था।
भाषा अमित दिलीप
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