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Tuesday, June 17, 2025

“ईरान में जंग के बीच फंसे कोलकाता के प्रोफेसर, बोले- अब सड़क से भागने पर विचार कर रहा हूं”

Fast News"ईरान में जंग के बीच फंसे कोलकाता के प्रोफेसर, बोले- अब सड़क से भागने पर विचार कर रहा हूं"

(सौगत मुखोपाध्याय)

कोलकाता, 17 जून (भाषा) ईरान की राजधानी तेहरान के मध्य में स्थित एक होटल के कमरे में फंसे फाल्गुनी डे (40) पिछली छह रातों से शायद ही सो पाए हैं। डे दक्षिण कोलकाता स्थित एक महिला क्रिश्चियन कॉलेज में सहायक प्रोफेसर हैं और शौकिया तौर पर एक पर्वतारोही भी हैं। फिलहाल वह यह उपाय ढूंढ़ने में असमर्थ हैं कि घर कैसे लौटें।

इजराइली हथियारों के कारण लगातार सुनाई देने वाले धमाकों (खासकर रात के दौरान) और तेहरान स्थित लक्ष्य पर हमले के बाद निकलने वाले घने काले धुएं के दृश्य, जो दिन में होटल की खिड़की से दिखाई देते हैं, ने डे की पीड़ा और बेचैनी को और बढ़ा दिया है।

फिलहाल कोई राहत नजर नहीं आ रही है और पैसे भी तेजी से खत्म हो रहे हैं, इसलिए साहसिक खेलों के शौकीन डे अब हताश होकर ईरान से सड़क मार्ग के रास्ते भागने और तुर्किये, आर्मेनिया, अजरबैजान, अफगानिस्तान या यहां तक कि पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में जाने के लिए एक खतरनाक उपाय पर विचार कर रहे हैं।

डे ने कहा, ‘‘मेरा इतने लंबे समय तक तेहरान में रहने का कोई इरादा नहीं था। मेरे पास इस होटल में रहने के लिए मुश्किल से कुछ पैसे बचे हैं, जहां मैं फंसा हुआ हूं। मैं घर से पैसे नहीं मंगा सकता क्योंकि यहां बैंक बंद हैं। मैं अपने होटल में अकेला भारतीय हूं और मुझे अभी तक भारत सरकार से निकासी का कोई आश्वासन नहीं मिला है।’’

हताश डे ने तेहरान से ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा,‘‘ मेरे पास सड़क मार्ग से पड़ोसी देश में जाने का निर्णय लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं है ताकि वहां से मैं विमान के जरिये स्वदेश वापस आ सकूं। यहां मेरे स्थानीय ट्रैवल एजेंट ने मुझे इसमें मदद करने का आश्वासन दिया है।’’

वह ईरान की राजधानी के उत्तरपूर्वी किनारे पर 5,610 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एशिया की सबसे ऊंची ज्वालामुखी चोटी ‘दामावंद’ को फतह करने के उद्देश्य से पांच जून को तेहरान पहुंचे थे।

यह डे का किसी ज्वालामुखी पर्वत के शिखर पर चढ़ने का तीसरा प्रयास था, इससे पहले उन्होंने पूर्वी गोलार्ध के सबसे ऊंचे निष्क्रिय ज्वालामुखी पर्वत की दो चोटियों ‘किलिमंजारो’ और ‘एल्ब्रस’ पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की थी।

हालांकि, ईरान में डे की उम्मीदें अधूरी रह गईं, क्योंकि एक भयानक बर्फीले तूफान ने उन्हें शिखर से बमुश्किल 400 मीटर नीचे चढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।

डे ने कहा, ‘‘मैं भारी मन से तेहरान लौटा। लेकिन जिस क्षण मैंने शहर में पैर रखा, मुझे एहसास हुआ कि यहां कुछ आतंकित करने वाली गड़बड़ी है। शहर पर बमबारी हो रही थी और मैं एक बड़े युद्ध के बीच में फंस गया। मुझे अगले दिन अपनी वापसी की उड़ान पकड़नी थी, लेकिन तब तक ईरानी हवाई क्षेत्र बंद कर दिया गया और तेहरान से आने-जाने वाली सभी उड़ानें रद्द कर दी गईं।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या वह ईरान में भारतीय दूतावास से संपर्क करके अधिकारियों को अपनी पीड़ा के बारे में बताने में कामयाब रहे, इस पर डे ने कहा कि वह दूतावास के साथ लगातार संपर्क में हैं, जो अब तक निकासी का भरोसा नहीं दे पाया है और इसके बजाय पालन करने के लिए कुछ प्रोटोकॉल तय किए हैं।

डे ने कहा, ‘‘मैंने सुना है कि ईरान में करीब 10,000 भारतीय फंसे हुए हैं, जिनमें कश्मीर के करीब 4,000 छात्र शामिल हैं। लेकिन मैं उनमें से किसी को नहीं जानता। मैं यहां अकेला हूं। दूतावास ने मुझे अपने होटल से बहुत दूर न जाने के लिए कहा है। यहां लोग बमबारी के बावजूद अपने दैनिक जीवन में व्यस्त हैं।’’

भाषा संतोष नरेश

नरेश

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